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-ठेकेदारी प्रथा के चलते श्रमिक बने बंधुआ मजदूर

श्रमिक शोषण और उन्हें बन्धक बनाकर बंधुआ मजदूरों की तरह काम कराने की प्रथा अंग्रेजों के जमाने से लेकर वर्तमान स्वाधीन राष्ट्र में भी कायम है। अंगरेजी शासनकाल में हिन्दुस्तानियों के साथ अमानवीय व्यवहार करते हुए उनका और उनके श्रम का शोषण अंग्रेज किया करते थे चाहे वह देश में रहा हो या अन्य मुल्कों में ले जाकर श्रम कानून की अनदेखी कर हिन्दुस्तानियों का शोषण करना आम बात रही। तब की बात और थी तब देश गुलाम था लेकिन अब स्वाधीन भारत में यदि ब्रितानियाँ हुकूमत के कारनामों की पुनरावृत्ति हो तो यह अवश्य ही शोचनीय विषय बन जाता है।
विदेशों में ले जाए गए हिन्दुस्तानी श्रमिकों को गिरमिटिया कहा गया जो कालान्तर में उन मुल्कों में रहकर अपनी नई जिन्दगी जीने लगे जहाँ उन्हें मजदूर बनाकर ले जाया गया था। बहरहाल वे लोग तो अब बेहतर जिन्दगी जी रहे हैं परन्तु गुजरात के औद्योगिक क्षेत्रों में देश के विभिन्न प्रान्तों से आए/बुलाकर रखे गए दिहाड़ी मजदूरों पर आर्थिक संकट बरकरार है। ये न तो अपने मूल घरों को मांगलिक अवसरों व तीज-त्यौहारों पर जा सकते हैं और न ही अपना परिवार लाकर साथ रख सकते हैं। क्योंकि इतने अल्प मजदूरी में अकेले का ही गुजारा बड़ी मुश्किल से होता है ऐसे परिवार का भरण-पोषण कैसे हो पाएगा। परिणाम यह होता है कि इन कम्पनियों में पैसा कमाने की हसरत संजोए जो लोग दूर-दराज से आकर श्रम कर रहे हैं मन मसोसकर एक कम्पनी से दूसरी कम्पनी में कुछ अधिक पैसा कमाने की गरज से चक्कर लगाते हैं।
40 वर्षीय टिल्ठू ने बताया कि उसे 8 हजार 500 रूपए प्रति 30 दिन की दिहाड़ी मिलती है उसमें खाए क्या? पहने क्या? आवासीय किराया कितना दे और बचाए क्या? इसी तरह शिब्बू (20 वर्षीय) के अनुसार उसे एक पुराने श्रमिक ने उसके घर से यह झांसा देकर बुलवाया कि यहाँ आओं अच्छी नौकरी है 10 हजार रूपए शुरूआती महीने मिलेंगे, ट्रेन्ड हो जाओगे तो हर महीने तुम्हारी पगार बढ़ती रहेगी लेकिन साल भर से अधिक हो गया अभी तक उसे 8 हजार 500 प्रति 30 दिन की मजदूरी के हिसाब से ही पैसा मिल रहा है। उसने कहा कि यदि इतनी मेहनत और पसीना मैं अपने गाँव में बहा दूँ तो मेरी शारीरिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुदृढ़ हो जाए।
देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी गुजरात के मूल निवासी हैं और पी.एम. बनने के पूर्व वह इस प्रान्त के सी.एम. भी रह चुके हैं। मोदी जी के राज और राज्य में गरीब श्रमिकों का हक मारने की घटना की जाँच होनी चाहिए। मोरबी/वांकानेर जिसे टाइल्स हब के नाम से जाना जाता है में स्थापित टाइल्स निर्माण इकाइयों पर कार्य करने वाले मजदूरों की संख्या उन्हें दिया जाने वाला प्रतिदिन के हिसाब से दिहाड़ी मजदूरी का लेखा-जोखा की जाँच होनी चाहिए। ऐसा होने पर वास्तविकता सामने आएगी और इन औद्योगिक इकाइयों में अपना पसीना बहाने वाले मजदूरों को न्याय मिल सकता है।
गुजरात के टाइल्स उद्योग क्षेत्र मोरबी (वाँकानेर) में हजारों की संख्या में ठेकेदारों द्वारा देश के विभिन्न प्रान्तों के श्रमिकों को दिहाड़ी वेतन पर रखवाया जाता है। गरीब मजदूरों को यह भी जानकारी नहीं होती है कि उनकी दिहाड़ी मजदूरी कितनी है-? इन श्रमिकों से 12-14 घण्टे प्रतिदिन श्रम करवाया जाता है और इनके स्वास्थ्य और अन्य सुविधाओं की अनदेखी की जाती है। नए श्रमिक 2 सौ से लेकर 284 रूपए प्रतिदिन की दिहाड़ी पाते हैं। इन्हें यह पैसा 45 दिन काम करने के उपरान्त मिलता है वह भी मात्र 30 दिन का। 15 दिन से एक माह का पैसा ठेकेदारों द्वारा दबा कर अपने पास रखा जाता है, इसलिए कि ये श्रमिक काम छोड़कर बीच में ही न निकल जाएँ।
औद्योगिक क्षेत्रों में कार्य कर रहे देश के विभिन्न प्रान्तों से आए दिहाड़ी मजदूरों का शोषण ठेकेदार दिहाड़ी की आधी मजदूरी काटकर महीने के 10 से 15 दिन उपरान्त कथित वेतन देकर कर रहे है। मोरबी जिले के टाइल्स उद्योग में काम करने वाले हजारों मजदूरों के साथ ऐसा ही किया जा रहा है। हम यहाँ बात कर रहे हैं गुजरात प्रान्त के वांकानेर स्थित सिम्बोसा गैनिटो प्राइवेट लिमिटेड औद्योगिक इकाई की जो एक्सपोर्ट क्वालिटी टाइल्स का निर्माण कर विदेशों को भेजती है। जिसमें 200 कम्पनी के वेतनभोगी कर्मचारी कार्यरत हैं शेष हजारों मजदूर निर्माण कार्यशालाओं/मशीनों आदि का कार्य देख रहे हैं। इन कार्यशालाओं में दिहाड़ी मजदूरी पर श्रमिकों को काम पर रखा जाता है जो गर्द-गुबार और क्लिन भट्ठे की आंच में अपने श्रम से निकले पसीने को सुखाकर धन्ना सेठों की तिजोरियाँ भरते हैं। इन मजदूरों के साथ कथित सुपरवाइजर, मैनेजर व श्रमिक ठेकेदार एवं कम्पनी के ऊँचे ओहदेदार ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे अंगरेजी शासनकाल में अंग्रेज हिन्दुस्तानियों पर करते थे।
दिहाड़ी श्रमिकों की व्यवस्था करने वाले पुराने श्रमिकों कीे दिहाड़ी वृद्धि करके उन्हें सुपरवाइजर/मैनेजर (कथित रूप से) बना दिया जाता है, इनकी दिहाड़ी 400-600 प्रतिदिन और महीने के हिसाब से 12 से 18 हजार प्रतिमाह। ठेकेदार- महीने में दिहाड़ी मजदूरों को वेतन कहकर भुगतान देता है और हर माह के 40-45 दिन काम करवाने के बाद मात्र 30 दिन की दिहाड़ी हाथ पर दी जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि मजदूरों की मजदूरी रूकी रहे और ऐसी स्थिति में वे काम छोड़कर बीच में न जा सकें।
कई श्रमिकों ने बताया कि वह लोग सिम्बोसा वेट्रीफाइड टाइल्स के निर्माता सिम्बोसा गैनिटो प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी वांकानेर, गुजरात में काम करते हैं। उन्हें 283.33 के हिसाब से 40 दिन काम करवाने के उपरान्त 8500 रूपए दिए जाते हैं और यह कहा जाता है कि यह उनका मासिक वेतन है। वास्तविकता यह है कि यह उनकी दिहाड़ी मजदूरी होती है। नए श्रमिकों को 30 दिन काम करने के एवज में 6000 से 8500 रूपए दिए जाते हैं जबकि पुराने व घाघ किस्म के अन्य सुपरवाइजर व मैनेजर कहलाने वाले श्रमिकों को 12 से 18 हजार रूपए दी जाती है। इनके दिहाड़ी का भुगतान भी 10 से 15 दिन तक रोका जाता है। यह लोग नए-नए श्रमिकों को अधिक पैसा मिलने का प्रलोभन देकर इन कम्पनियों में टाइल्स निर्माण इकाई में काम करवाते हैं। श्रमिकों के अनुसार कहने को तो उनकी मजदूरी वेतन के रूप में दी जाती है परन्तु अस्वस्थता या अन्य किसी कारण वश एक दिन भी नागा होने पर उनकी उतने दिन की मजदूरी का पैसा काट लिया जाता है साथ ही उन्हें कथित नौकरी से निकाल दिए जाने की चेतावनी भी दी जाती है। वांकानेर, मोरबी में निजी क्षेत्रों के चिकित्सकों द्वारा छोटे-मोटे इलाज करने पर भी श्रमिकों से हजारों रूपए लिए जाते हैं। इन चिकित्सकों की कम्पनी के ठेकेदारों से साठ-गांठ होती है।
स्थानीय श्रमिकों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, बंगाल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार के श्रमिकों का आर्थिक शोषण इन कम्पनियों द्वारा जारी है। ये श्रमिक अल्प शिक्षित अथवा अशिक्षित नवयुवक हैं। इनको बरगलाकर नौकरी दिलाने के नाम पर इन औद्योगिक इकाइयों में काम करने वाले पुराने श्रमिकों द्वारा कथित रूप से नौकरी पर रखवाया जाता है और दिहाड़ी मजदूरी कराकर इनसे सैकड़ों/हजारों रूपए के श्रम मेहनत का पैसा हड़प लिया जाता है। ऐसा करने वाले लोग कम्पनियों में सुपरवाइजर-इंचार्ज-मैनेजर के तथाकथित पदों पर काम करने वाले कहे जाते हैं। इस तरह से सैकड़ों श्रमिकों से हजारों/लाखों रूपए प्रतिदिन के हिसाब से दिहाड़ी श्रम-धन इन बिचौलियों द्वारा हड़पा जा रहा है। आश्चर्य की बात है कि इस तरह का कार्य काफी पुराना है परन्तु आज तक किसी भी श्रम संगठन ने इस शोषण के विरूद्ध आवाज नही उठाया है।
कुछ खास बातें जिस पर सेवा प्रदाताओं द्वारा ध्यान देने की आवश्यकता है:-
1- गुजरात के उक्त औद्योगिक क्षेत्रों में दिहाड़ी मजदूरी का सार्वजनीकरण किया जाए।
2- सेवा प्रदाता औद्योगिक इकाइयों द्वारा श्रमिकों का पंजीयन श्रम विभाग में कराया जाए।
3- ठेकेदारी प्रथा से श्रमिकों को मुक्त कराया जाए, जिससे उनका शोषण बन्द हो।
4- श्रमिकों के स्वास्थ्य की नियमित जाँच एवं बीमारियों के इलाज के लिए ई.एस.आई. अस्पतालों की सुविधा प्रदान की जाए।
5- श्रमिकों का नाम कम्पनी की पंजिका में दर्ज हो और प्रत्येक श्रमिक को परिचय-पत्र जारी किया जाए।
6- श्रमिकों के साथ किसी भी घटना-दुर्घटना व आपराधिक तत्वों से सुरक्षित किए जाने की व्यवस्था की जाए।
7- दूर-दराज के श्रमिकों को कम्पनियों द्वारा आवासीय व्यवस्था कराने के साथ-साथ सस्ते दर पर जल-जलपान हेतु कैन्टीन की व्यवस्था की जाए।
8- श्रमिकों को सप्ताह में एक बार साप्ताहिक अवकाश व पर्व-त्यौहारों पर भी अवकाश दिया जाए।
9- श्रमिकों को हर माह के अन्त में अथवा अगले माह के शुरूआती 5 तारीख तक मजदूरी दी जाए। 
10- श्रमिकों से 10 घण्टे से अधिक श्रम न कराया जाए साथ ही उनको उनके श्रम कार्य दिवस में 1 घण्टे का अल्पाहार अवकाश दिया जाए।

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