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भिवंडी। एम हुसेन। जीवन व्यतीत करने के लिए ईश्वर व रसूल ने एक नियमावली बनाई है परंतु स्वयं मुस्लिम समुदाय उसका पालन नहीं कर रहा है जिसकारण समाज अनेक प्रकार से परेशान हैं तथा महिलाओं को भी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है, सभी समस्याओं से निजात पाने के लिए ईश्वरीय उद्देश्य का पालन करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। इसी के उपलक्ष्य में जमाअत इस्लामी हिंद के केंद्रीय सचिव मौलाना वलीउल्लाह सईद फलाही का भिवंडी आगमन हुआ है। उक्त विषय को लेकर एक पत्रकार परिषद का आयोजन रीजेंट गार्डन होटल में किया गया। पत्रकारों को जानकारी देते हुए मौलाना वलीउल्लाह सईद फलाही ने बताया कि आज मुसलिम समाज का एक बडा हिस्सा इस्लामी पारिवारिक कानून के बारे में अज्ञानता से ग्रस्त है तथा समुदाय में बहुत से लोग इन कानूनों का उनके मूल रूप से पालन नहीं करते हैं। संविधानिक न्यायालय अक्सर मुसलिम पर्सनल लॉ (MPL) से संबंधित विवादों पर इस्लामी शरीयत के उसूलों के विपरीत निर्णय लेते हैं, जबकि मीडिया (MPL) की एक तरफा छवि पेश करत है। हालांकि यह सभी इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं के बारे में बहुत कम जानकारी रखते हैं, बल्कि वह आमतौर पर कुछ नादान मुसलमानों द्वारा किये गये दोषपूर्ण आचरण से आम लोगों को गुमराह कर देते हैं जो इस्लामी कानून की एक विकृत छवि प्रस्तुत करता है।
ज्ञात हो कि अंग्रेजों के शासनकाल में मुसलमानों की मांग पर सन 1937 में शरीयत एप्लीकेशन एक्ट पारित किया गया था। जिसके अनुसार निकाह, तलाक, खुला, जिहार, फस्ख निकाह (निकाह को खत्म करना), परवरिश का हक, विलादत (जन्म) , मीरास, वसीयत, हिबा और शुफआ से संबंधित मामलों में यदि दोनों पक्ष मुसलमान हों, तो शरीयते मुहम्मदी (सल्ल) के अनुसार उनका फैसला होगा, चाहे उनकी रीतिरिवाज और परंपरा कुछ भी हो। तलाक के विषय पर बोले कि छोटे छोटे घरेलू विवाद के कारण तलाक देना मूर्खता है, तलाक अंतिम निर्णय है यह इसलिए है कि किसी का जीवन नर्क न बन जाए सभी सुख शांति के साथ जीवन यापन करें, वहीं यह भी जानकारी दी कि महाराष्ट्र के न्यायालय में कुल 63500 तलाक का मामला विचाराधीन है जिसमें केवल 660 मामले मुसलमानों के हैं। अर्थात यह कि इस्लामी शरीयत के कानून को आम रीतिरिवाज पर प्राथमिकता प्राप्त होगी। भारतीय संविधान के अध्याय_3 (मौलिक अधिकार) में अकीदा, धर्म और अंतरात्मा की आजादी एक मौलिक अधिकार के तहत स्वीकार किया गया है। धर्म की स्वतंत्रता हमें इस बात की आजादी देती है कि हम अपने शरीयत के कानून का पालन कर सकते हैं और अल्लाह द्वारा प्रदत्त कानूनों में संशोधन करने का अधिकार किसी को नहीं है। इसी के मद्देनजर मुस्लिम समाज में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है, इसके साथ ही मुसलमानों को अपने अपने पसंद के धर्म का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध करने की आवश्यकता है। मुस्लिम समुदाय को शिक्षित करने की आवश्यकता है, स्वतंत्रता के बाद भारत के मुसलमानों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वे समान नागरिक सहिंता के विचार को अस्वीकार करते हैं। उन्होंने मुसलमानों के व्यक्तिगत कानून में हस्तक्षेप करने के लिए अदालतों या विधायी निकायों के सभी प्रयासों का विरोध किया है। लेकिन मुसलमान आंतरिक मोर्चे पर समान रूप से शतर्क नहीं रहे हैं। शरीयत के उल्लंघन को खत्म करने के लिए मुसलमानों को इस्लामी शिक्षाओं के बारे में शिक्षित करने और मुस्लिम समाज में सुधार करने के लिए उनके द्वारा पर्याप्त प्रयास नहीं किए गए हैं। यह जानना जरूरी है कि शरीयत के उल्लंघन का मूल कारण मुसलमानों की बडे पैमाने पर अज्ञानता और इस्लामी मानदंडो के प्रति गंभीर अप्रतिबद्धता है। मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा इस्लाम की मूलभूत बातें भी नहीं जानता है। कई मुसलमानों को नियमों और निर्देश का पता ही नहीं, जो उन्हें शादी, तलाक, विरासत जैसे मामलों में मार्गदर्शन करेंगे। इसलिए मुस्लिम समाज को शिक्षित करने, उत्थान और नैतिक रूप से सुधार करने की आवश्यकता है। उक्त अवसर पर मौलाना औसाफ फलाही, जावेद बेताब आदि उपस्थित थे।

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