Ads (728x90)


प्रतापगढ़ | हिन्दुस्तान की आवाज | मोहम्मद मुकीम शेख

सीडब्ल्यूसी मेंबर ने राज्यसभा मे बारह सदस्यों के निलंबन के सरकार के प्रस्ताव को भी बताया तानाशाही का वीभत्स स्वरूप

लालगंज, प्रतापगढ़। केन्द्रीय कांग्रेस वर्किग कमेटी के सदस्य एवं यूपी आउटरीच एण्ड कोआर्डिनेशन कमेटी के प्रभारी प्रमोद तिवारी ने मोदी सरकार द्वारा गैरजरूरी तीन काले कृषि कानूनों को अलोकतांत्रिक ढंग से लाये जाने के साथ इसकी वापसी की प्रक्रिया को भी अलोकतांत्रिक व असंसदीय हथकण्डा करार दिया है। श्री तिवारी ने संसद सत्र मे हंगामे की स्थिति के लिए भी केंद्र सरकार की हठवादिता को ही पूरी तरह से जिम्मेदार करार दिया है। उन्होनें कहा कि मोदी सरकार को संसद मे चर्चा के जरिए यह स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर वह आखिर तीन के तीन इन काले किसान विधेयकों को क्यूं ले आयी थी। वहीं उन्होनें सरकार से सवाल उठाया कि अब देश की जनता संसद सत्र मे चर्चा के जरिए जानना चाहती है कि इन कृषि विरोधी विधेयक की खामी के चलते उसकी वापसी को लेकर भी सरकार की जबाबदेही क्या है। सीडब्ल्यूसी मेंबर प्रमोद तिवारी ने स्पष्ट कहा कि सरकार संसद मे भी विधेयक वापसी के समय पूंजीपतियों के दबाव मे किसानों की लगातार मांग के बावजूद न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून को लेकर चर्चा से भागने की जिद मे अडी हुई है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि कृषि व उपज विरोधी किसान विधेयक सरकार किसानों के लिए नही ले आयी थी। सीडब्ल्यूसी मेंबर प्रमोद ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर तल्खी के साथ कहा कि वह  तो अडानी जैसे पूंजीपतियों के हित साधने के लिए ही इन काले कानूनों को देश के किसानो पर जबरिया थोप रही थी। उन्होंने मोदी सरकार की कडी घेराबंदी करते हुए कहा कि इस सरकार ने चंद पूंजीपतियों का हित साधने मात्र के लिए पहले रेल बेंचा, मंहगे तेल बेंचे, खेल तक बेंचे और तो और इन्हीं पूंजीपति मित्रों को खुश करने के लिए समुद्र और आसमान तक के संसाधन बेंच दिये। उन्होने जोर देकर कहा है कि सरकार संसद के इसी सत्र मे खेती तथा उपज की सुरक्षा का किसानो को विश्वास दिलाने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून ले आये। वहीं प्रमोद तिवारी ने सरकार से सवाल दागा कि साल भर से जारी किसान संघर्ष के दौरान मृतक किसानों के परिजनों को जीवन निर्वहन के लिए मुआवजो तथा एक आश्रित को सरकारी नौकरी को लेकर भी आखिर मोदी सरकार ऐलान करने से क्यूं कतरा रही है। उन्होने बेवाक कहा है कि तीन के तीनों काले कृषि कानूनों को भी मोदी सरकार सार्वजनिक संस्थानो के बेचने की प्रक्रिया मे अपने चंद पूंजीपति मित्रों की किसान के खेत पर लगी नजर को लेकर ही आयी थी। वहीं वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने कहा कि बीजेपी सरकार को जब किसान आन्दोलन को लेकर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा पंजाब समेत पांच राज्यों के आसन्न विधानसभा चुनावों मे अपनी जमीन पूरी तरह खिसकती दिखी तो उसने मजबूरी मे किसान विरोधी विधेयको को वापस लेने की बाध्यता स्वीकार की। इधर संसद सत्र के दौरान राज्यसभा के बारह सदस्यों के भी सरकार के निलंबन प्रस्ताव को प्रमोद तिवारी ने भाजपा सरकार की तानाशाही का एक और वीभत्स स्वरूप करार दिया है। उन्होनें कहा कि निलंबित किये गये राज्यसभा सदस्यो ने करोड़ो किसानो के हित को गिरवी रखने के खिलाफ आवाज उठाकर विपक्ष की जिम्मेदारी का निर्वहन किया था। ऐसे मे निलंबन से पूर्व बकौल प्रमोद तिवारी सरकार को मिल बैठकर इसका हल निकालने का प्रयास करना चाहिये था। मीडिया प्रभारी ज्ञानप्रकाश शुक्ल के हवाले से मंगलवार को यहां जारी बयान मे प्रमोद तिवारी ने कहा कि भाजपा कृषि क्षेत्र मे अपने थोपे गये जबरिया कानूनों के साथ कोरोना काल की अक्षमता व मंहगाई को लेकर अब शिखर से ढ़लान की ओर आ गई है। श्री तिवारी ने कहा कि कांग्रेस यूपी चुनाव मे मुददो पर जनता के बीच अपने दम पर भाजपा की तानाशाही के खिलाफ आवाज बुलन्द कर इसे सत्ता से बेदखल करेगी।

Post a Comment

Blogger