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मुंबई। भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा मुंबई मनपा के पूर्व उपमहापौर बाबूभाई भवानजी ने कहा है कि

शाहरुख खान होंगे भले ही सुपरस्टार, लेकिन कोई जरूरी नहीं कि दुनिया के सभी लोगों को वे पसंद आएं। अपने को भी वे कुछ कम ही पसंद है, लेकिन फिर भी उनका नाम लिखने की मजबूरी इसलिए है, क्योंकि इस लेख का जो शीर्षक है वह उनकी सन 1992 में आई फिल्म दीवाना के एक गीत की पैरोड़ी है। दिव्या भारती और शाहरुख पर फिल्माया एक बहुत सुपरहिट गीत ‘ऐसी दीवानगी देखी नहीं कभी.... मैंने इसलिए... जानेजाना, दीवाना, तेरा नाम लिख दिया’ आपको भी जरूर याद होगा। इसी गीत के शब्दों को तोड़ मरोडकर कोरोना काल की इस दीपावली के बारे में आपको भी यह बिल्कुल सही लग रहा होगा कि ‘ऐसी दीपावली देखी नहीं कभी...!’ भवानजी ने कहा कि दीपावली का अर्थ है, उजाले का अवसर, ज्योति का पर्व और रोशनी का त्यौहार। यह पर्व हमें खुशियां देता है, हमारे जीवन में नई मुस्कान लाता है और समस्त संसार के साये को एक नई चेतना देता है, लेकिन जब कोराना के महासंकट ने जीवन में हर तरफ जब खुशियों के दमन का ही निर्णय कर रखा हो, हमारे आसपास किसी के बीमार होने का दर्द या किसी की मौत का मातम पसरा हो, और धंधे की धमक और चमक दोनों ही सिरे से फुर्र हो गई हो, तो काहे की दीपावली और काहे का उत्सव। बाबूभाई भवानजी ने कहा कि जेब खाली है, जीवन में कंगाली है, मन में मौत का डर है और कहीं से भी किसी भी तरह के सकारात्मक संकेत नहीं हो, तो क्या तो दीपावली के दीए और क्या उनका उजाला! कुछ भी अच्छा नहीं लगता। लगभग एक सदी से भी ज्यादा लंबे वक्त बाद यह एक ऐसी दीपावली आई है, जब कहीं भी न तो रौनक है और न ही रोशनी की बहार, न किसी के चेहरे पर खिलखिलाहट है और न ही दिल में खुशी। अगर कहीं खुशी और खिलखिलाहट है भी, तो वह बिल्कुल नकली है। खाली जेब कोई भी क्या खाक दीपावली मनाएगा? भवानजी ने कहा कि कोरोना काल में अकेले हमारे हिंदुस्तान में ही कुल लगभग सवा दो करोड़ लोगों की चलती नौकरियां हाथ से सरक गईं। दुनिया भर में आठ महीनों का लंबा लॉकडाउन लग गया। इसी लॉकडाउन में हमारे देश में करीब 20 करोड़ से ज्यादा लोग बेकार हो गए। ऐसे में कोई कहां से पैसे लाए, कैसे दीपावली मनाए, सबसे बड़ा सवाल यही है। भवानजी ने कहा कि सबसे ज्यादा तकलीफ में मध्यम वर्ग है। यह वह वर्ग है, जो कमाता है, खाता है और जीता है। उस कमाई में से कुछ बचाता है, उस बचे हुए से छोटी मोटी खुशियां मनाता है, और खुशी से पहले कोई बीमारी आ जाए, तो बचत को वहां घुसा देता है, और कमाते-कमाते हांफता हुआ अंत में मर जाता है। इस बार की दीपावली पर मध्यम वर्ग की हालत पर जाने-माने गायक शैलेंद्र सिंह का एक गीत बिल्कुल फिट बैठता है। कोरोना तो अब आया है 2020 में, लेकिन  गीतकार इंदीवर को सन 1989 में ही शायद यह पता चल गया था कि 41 साल बाद एक ऐसी भी दीपावली आएगी, जब पूरा मध्यम वर्ग भयंकर मुश्किल दौर में रहेगा। इसीलिए फिल्म ‘अहसास’ के लिए उनका लिखा यह गीत... ‘जो न छोटे हैं ना बड़े बड़ी मुश्किल में वो पड़े, उनकी मुश्किलों का एहसास नहीं, उनके लिए शब्द किसी के पास नहीं’ आज की हकीकत पर बिल्कुल सही बैठता है। भवानजी ने यह भी कहा कि ऐसे दौर में यह कहने का किसी का दिल नहीं करता कि दीपावली ना आती तो अच्छा होता, लेकिन कोरोना ने जब लोगों के अंतर्मन तक को तोड़ कर रख दिया हो, तो दिल से बात तो यही निकलती है कि ऐसी दीपावली तो ना ही आती तो अच्छा होता...!  अब तो आपको भी लग ही रहा होगा कि... ऐसी दीपावली देखी नहीं कभी... !

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