भिवंडी ।एम हुसेन। श्रीमदभागवत कथा की महत्व बताते हुये काशी से आये पं. दिनेशचंद्र पाठक ने कहा कि श्रीमदभागवत कथा के एक बार के श्रवण मात्र से ही सारे पाप कट जाते हैं । राजा परीक्षित को सर्प काटने के बाद भी श्रीमदभागवत कथा के श्रवण से उन्हें मोक्ष मिला है, अकाल मृत्यु के बाद भी श्रीमदभागवत कथा अलौकिक गति देती है,संसार के सभी प्राणियों को उनके कर्मों के अनुसार ही दुःख और सुख मिलता है। पं. रविशंकर मिश्र के आचार्यवत्व एवं पं. रघुवंश दिवेदी के सानिध्य में अशोकनगर में आयोजित साप्ताहिक श्रीमदभागवत कथा ज्ञान यज्ञ में पं. दिनेशचंद्र पाठक भागवत कथा की महत्व पर प्रकाश डाल रहे थे ।
उन्होंने गोकरण,धुंधकारी एवं धुंधली की कथा बताते हुये कहा कि यह आत्मदेव ही आत्मा है,दुर्बुद्धि धुंधकारी है,संशय ही धुंधली है और विवेक ही गोकरण है। जिसके जीवन में विवेक रूपी गोकरण होगा, उस आत्मदेव पिता को वैराग्य से ही मोक्ष हो जायेगा । उन्होंने इसी प्रकार तुंगभद्रा के किनारे की व्याख्या करते हुये कहा कि तुंग माने श्रेष्ठ और भद्र माने कल्याणकारी, उन्होंने कहा कि यह शरीर ही कल्याणकारी है ।उन्होंने कहा कि इस युग में कलुषित प्राणियों को पापों से बचने के लिये सबसे सरल उपाय एवं उत्तमगति प्राप्त करने के लिये ही भगवती रूपी गंगा का अवतरण हुआ है,इसलिये जितना हो सके उतना श्रवण करना चाहिये ।
उन्होंने कहा कि हम भगवती रूपी कथा के माध्यम से जानें कि हमें भगवान से क्या मांगना चाहिये और कैसे मांगना चाहिये? भगवान कृष्ण जब पांडवों से विदा लेकर द्वारिका जा रहे थे तो उसी समय एक बाल विधवा स्त्री रोती हुई आई और भगवान से कहती है कि हे केशव मेरे गर्भ की रक्षा करो , भगवान कृष्ण देखते हैं कि यह तो अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा है ,उन्होंने ध्यान लगाकर देखा कि अश्वस्थामा ने ब्रह्मास्त्र से गर्भपात में संधान कर दिया था। उसी समय भगवान कृष्ण सूक्ष्मरूप धारण करके उत्तरा के गर्भ में गदा से रक्षा करते रहे, और उस समय भगवान कृष्ण के पूछने पर उत्तरा कहती है कि भगवान आराम हो रहा है ।इस राज को किसी ने जाना नहीं, लेकिन इस राज को भगवान की बुआ कुंती जानती थी, कुंती ने जब स्तुति करने लगी तो भगवान कृष्ण ने कहा कि बुआ तुझे यह क्या हो गया है, तुम अपने भतीजे की ही स्तुति कर रही हो, मैं तो तुम्हारे भाई का ही पुत्र हूं, मैं भगवान नहीं हूं,मैं तुम्हारा भतीजा हूं, कुंती ने कहा कि अब मैं तुम्हारे बहकावे में आने वाली नहीं हूं। मैं अपने उसी परमात्मा की स्तुति कर रही हूं जो प्रकृति से परे है । प्रकृति की जिससे उतपत्ति होती है उसी परमात्मा की स्तुति कर रही हूं ,भगवान कृष्ण विवश हो गये ।
भगवान कृष्ण ने कुंती से कहा कि बुआ तुम क्या चाहती हो मांगो , उस समय युधिष्ठिर राजा बन गये थे। इसलिये भगवान कृष्ण के कहने पर सबसे पहले युधिष्ठिर ने वरदान मांगा कि प्रभु मैं अपनी जिंदगी में कभी सत्य से विचलित न हूं, हमेशा सत्य ही बोलता रहूं, इसी प्रकार भीम ने हमेशा प्रभु का नाम लेने, अर्जुन ने भगवान के साथ हमेशा गुरु-शिष्य का भाव बना रहे और नकुल, सहदेव ने अपने बड़े भाइयों के प्रति सेवत्व का भाव बना रहे और प्रभु का नाम लेने का वरदान मांगा ।द्रौपदी ने जन्म जन्मांतर तक सखत्व भाव और सुभद्रा ने भगवान की भक्ती मांगा, और अंत में कुंती ने भगवान से दुःख मांगा , लेकिन भगवान कृष्ण ने उन्हें भी सुख दिया, क्योंकि भगवान के पास दुःख नहीं सुख ही है। भगवान सबको सुख ही देते हैं, संसार के सभी प्राणियों को अपने कर्मों के अनुसार ही दुःख मिलता है ।
उन्होंने गोकरण,धुंधकारी एवं धुंधली की कथा बताते हुये कहा कि यह आत्मदेव ही आत्मा है,दुर्बुद्धि धुंधकारी है,संशय ही धुंधली है और विवेक ही गोकरण है। जिसके जीवन में विवेक रूपी गोकरण होगा, उस आत्मदेव पिता को वैराग्य से ही मोक्ष हो जायेगा । उन्होंने इसी प्रकार तुंगभद्रा के किनारे की व्याख्या करते हुये कहा कि तुंग माने श्रेष्ठ और भद्र माने कल्याणकारी, उन्होंने कहा कि यह शरीर ही कल्याणकारी है ।उन्होंने कहा कि इस युग में कलुषित प्राणियों को पापों से बचने के लिये सबसे सरल उपाय एवं उत्तमगति प्राप्त करने के लिये ही भगवती रूपी गंगा का अवतरण हुआ है,इसलिये जितना हो सके उतना श्रवण करना चाहिये ।
उन्होंने कहा कि हम भगवती रूपी कथा के माध्यम से जानें कि हमें भगवान से क्या मांगना चाहिये और कैसे मांगना चाहिये? भगवान कृष्ण जब पांडवों से विदा लेकर द्वारिका जा रहे थे तो उसी समय एक बाल विधवा स्त्री रोती हुई आई और भगवान से कहती है कि हे केशव मेरे गर्भ की रक्षा करो , भगवान कृष्ण देखते हैं कि यह तो अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा है ,उन्होंने ध्यान लगाकर देखा कि अश्वस्थामा ने ब्रह्मास्त्र से गर्भपात में संधान कर दिया था। उसी समय भगवान कृष्ण सूक्ष्मरूप धारण करके उत्तरा के गर्भ में गदा से रक्षा करते रहे, और उस समय भगवान कृष्ण के पूछने पर उत्तरा कहती है कि भगवान आराम हो रहा है ।इस राज को किसी ने जाना नहीं, लेकिन इस राज को भगवान की बुआ कुंती जानती थी, कुंती ने जब स्तुति करने लगी तो भगवान कृष्ण ने कहा कि बुआ तुझे यह क्या हो गया है, तुम अपने भतीजे की ही स्तुति कर रही हो, मैं तो तुम्हारे भाई का ही पुत्र हूं, मैं भगवान नहीं हूं,मैं तुम्हारा भतीजा हूं, कुंती ने कहा कि अब मैं तुम्हारे बहकावे में आने वाली नहीं हूं। मैं अपने उसी परमात्मा की स्तुति कर रही हूं जो प्रकृति से परे है । प्रकृति की जिससे उतपत्ति होती है उसी परमात्मा की स्तुति कर रही हूं ,भगवान कृष्ण विवश हो गये ।
भगवान कृष्ण ने कुंती से कहा कि बुआ तुम क्या चाहती हो मांगो , उस समय युधिष्ठिर राजा बन गये थे। इसलिये भगवान कृष्ण के कहने पर सबसे पहले युधिष्ठिर ने वरदान मांगा कि प्रभु मैं अपनी जिंदगी में कभी सत्य से विचलित न हूं, हमेशा सत्य ही बोलता रहूं, इसी प्रकार भीम ने हमेशा प्रभु का नाम लेने, अर्जुन ने भगवान के साथ हमेशा गुरु-शिष्य का भाव बना रहे और नकुल, सहदेव ने अपने बड़े भाइयों के प्रति सेवत्व का भाव बना रहे और प्रभु का नाम लेने का वरदान मांगा ।द्रौपदी ने जन्म जन्मांतर तक सखत्व भाव और सुभद्रा ने भगवान की भक्ती मांगा, और अंत में कुंती ने भगवान से दुःख मांगा , लेकिन भगवान कृष्ण ने उन्हें भी सुख दिया, क्योंकि भगवान के पास दुःख नहीं सुख ही है। भगवान सबको सुख ही देते हैं, संसार के सभी प्राणियों को अपने कर्मों के अनुसार ही दुःख मिलता है ।
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