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राजगढ़, हिन्दुस्तान की आवाज, अमन जैन

वर्तमान में प्लास्टिक कचरा बढऩे से जिस प्रकार से प्राकृतिक हवाओं में प्रदूषण बढ़ रहा है वह मानव जीवन के लिए तो अहितकर है ही साथ ही हमारे स्वच्छ पर्यावरण के लिए भी विपरीत स्थितियां पैदा कर रहा है। हालांकि इसके लिए समय-समय पर सरकारी सहयोग लेकर गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा जागरण अभियान भी चलाए जा रहे हैं परंतु परिणाम उस गति से मिलता दिखाई नहीं देता। ऐसे में प्रश्न यह आता है कि गैर सरकारी संस्थाओं के यह अभियान अपेक्षित परणिाम क्यों नहीं दे पा रहे हैं। इसके पीछे की कहानी कहीं केवल कागज तो नहीं हैं। भारत में कागजों में काम होने की बीमारी लगातार बढ़ रही है। कागजों के आंकड़ों को वास्तविक धरातल पर उतारा जाता है, तो कहीं भी काम दिखाई नहीं देता। प्लास्टिक मुक्ति का अभियान गैर सरकारी संस्थाओं ने बलि चढ़ा दिया। ऐसे में यह भी चिंतन का विषय है कि हमारी सामाजिक चेतना के कम होने के कारण हम चैतन्यता के नाम पर शून्य की तरफ ही बढ़ते जा रहे हैं। अगर प्लास्टिक प्रदूषण बढऩे की यही गति बरकरार रही तो एक दिन हमें शुद्ध हवा से वंचित होना पड़ सकता है हम जानते हैं कि वर्तमान में वायु प्रदूषण के चलते हमारे शरीर में कई प्रकार के विषैले कीटाणु प्रवेश कर रहे हैं जो हमारे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं और नई-नई बीमारियां जन्म ले रही हैं। भारत में कई बीमारियां केवल गंदगी के कारण हो रही हैं चाहे वह प्लास्टिक कचरे से उत्पन्न गंदगी हो या फिर इसके कारण जाम नालियों के गंदे पानी से प्रदूषण से पैदा होने वाले वातावरण से पैदा होने वाली गंदगी हो। प्लास्टिक पॉलीथिन में बहुत से लोग घर का कचरा भरकर बाहर फैंक रहे हैं, जिसे हमारी गौमाता खाती है और हम जाने-अनजाने में गौहत्या का पाप कर रहे हैं। इसके साथ ही बहुत बड़ा सच यह भी है कि प्लास्टिक पॉलीथिन और खाद्य सामग्री में उपयोग आने वाले प्लास्टिक के सामान रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल के कारण हमें जहर भरे खाना खाने के लिए विवश कर रहे हैं। इसके कारण हमारा स्वास्थ्य विकरालता की ओर जा रहा है। इसमें प्लास्टिक कचरे का बहुत बड़ा योगदान है। हालांकि हमारे देश में स्वच्छ भारत अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन क्या हम जानते हैं कि प्लास्टिक कचरा स्वच्छ भारत अभियान की दिशा में बहुत बड़ा अवरोधक बनकर सामने आ रहा है हम भारत देश के निवासी हैं। इसलिए हमारे आचरण और कार्य में भारतीय संस्कृति का प्रदर्शन होना चाहिए। हमारी संस्कृति यही कहती है कि सर्वे भवन्तु सुखिन: अर्थात सभी सुखी हों लेकिन आज के दौर में हमें यह भी चिंतन करना होगा कि क्या हमारे कार्यों से जनता को सुख की अनुभूति होती है हम देश को स्वस्थ बनाने के लिए अपनी ओर से कितना योगदान दे रहे हैं अगर इसका उत्तर नहीं में है तो हमारे अंदर भारतीयता का अभाव है। लोग कितना भी कहें कि हम भारतीय नागरिक हैं लेकिन जब तक हमारी दिनचर्या में भारतीयता दिखाई नहीं देगी तब तक हम भारतीय नहीं हैं। आज हम देख रहे हैं कि हम भारत के नागरिक ही जाने अनजाने में एक दूसरे के लिए समस्याओं का निर्माण करते जा रहे है। यह गति लगातार बढ़ती जा रही है। देश में वातावरणीय समस्याओं का प्रादुर्भाव हमारी अपनी देन है जो जाने या अनजाने में हमने ही पैदा की हैं। हम यह भी जानते हैं कि प्लास्टिक कचरे के कारण जिन बस्तियों में पानी भर जाता है उसका एक मात्र कारण भी तो हम ही हैं। नालियां जाम होने की वजह से ही ऐसे हालात बन रहे हैं। स्वच्छ हवा प्रदान करने वाले पेड़ पौधे भी प्रदूषित वातावरण का शिकार हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमें ताजी हवा कैसे मिल सकती है आज यह सबसे बड़ा सवाल है इस सवाल का एक मात्र जवाब यही है कि हमें चैतन्य शक्ति का जागरण करके देश को स्वच्छ वातावरण देने के लिए प्लास्टिक कचरे से मुक्ति पाना है। अगर हम ऐसा कर सके तो यह तय है कि हमारा देश फिर से तरो ताजा हवा प्रदान करने वाला देश बन जाएगा। इसके लिए सरकार की योजना में हमें भी पूरी तरह से सहभागी बनना होगा और इस समस्या का समाधान भी हम से ही शुरू होगा और हम से ही खत्म अब जरूरत है तो केवल जागरूक बनने की और सभी को जागरूक करने की और देश को एक नयी उचाईयो पर ले जाने की और स्वस्थ व स्वच्छ भारत बनाने की

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