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-मामूली मरीजों को भी कर दिया जाता है रेफर, दलालों की भेंट चढ़ चुकी है पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था

मीरजापुर,हिन्दुस्तान की आवाज, संतोष देव गिरी



मीरजापुर। अराजकता और अव्यवस्थाओं का केन्द्र बन चुके जिला अस्पताल में मरीजों की दुष्वारियां कम होने की बजाए दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। यहां आने वाले गंभीर मरीजों को बेहतर उपचार देने की बात कौन कहें भर्ती तो दूर की बात है उन्हें आते ही अन्यत्र के लिए रेफर कर दिया जा रहा है। जिससे गरीब मरीजों और उनके तिमारदारों को सरकारी स्वास्थ्य सेवा से पूरी तरह से महरूम होना पड़ जा रहा है। मजे कि बात है मीरजापुर जिला अस्पताल को मंडलीय अस्पताल का दर्जा देने के साथ इसे हाईटेक बनाया तो जरूर जा रहा है, लेकिन यहां की अव्यवस्थाएं और अराजकता का आलम कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। यों कह ले कि यह अस्पताल पूरी तरह से रेफर केन्द्र बनकर रह गया है। लोगों की माने तो मामूली घटनाओं में भी यहां आने वाले मरीजों, पीड़ितों को वाराणसी सहित इलाहाबाद के निजी चिकित्सालयों की राह दिखा उन्हें रेफर कर दिया जा रहा है। जिससे यहां आने वाले गरीब और परेषान लोगों की परेषानियों कम होने को कौन कहें बढ़ रही है। ऐसा ही कुछ नजारा पिछले दिनों देखने को मिला है बताते है कि पड़ोसी जनपद सोनभद्र के ग्रामीण अंचल से एक व्यक्ति अपनी पत्नी को पीलियां से पीड़ित होने की दषा में यहां लेकर आया तो तैनात चिकित्सक ने भर्ती कर उपचार की बजाए उसे वाराणसी के एक निजी चिकित्सालय की राह दिखा उसे रेफर कर दिया। मजे कि बात है उक्त गरीब मरीज को सरकारी एम्बुलेंस से भेजे जाने की बजाए प्राइवेट एम्बुलेंस के हवाले कर दिया। लेकिन मौके पर कुछ स्थानीय लोगों के पहुंच जाने और हो हल्ल मचाने पर उसे दलालों के चंगुल से बचाते हुए पुनः भर्ती कराया गया। यह बानगी कोई एक दो दिन की नहीं है बल्कि अक्सर ऐसा नजारा यहां आसानी से देखा जा सकता है। बताते चले कि जिला अस्पताल में तैनात कुछ चिकित्सकों की वाराणसी और इलाहाबाद के निजी चिकित्सालयों से सांठ गांठ है जिन्हें प्रति मरीज अच्छी खासी इनकम हो जाती है सो यह यहां आने वाले गंभीर तो गंभीर नार्मल मरीजों को भी वाराणसी, इलाहाबाद की राह दिखलाकर रेफर देते है। यहीं नहीं रेफर करने में प्राईवेट एम्बुलंेस चालकों के प्रति भी खासी दरियादिली दिखाई जाती है जिससे यह तो मालामाल होते ही है रेफर करने वाले चिकित्सक को भी को उसमें से एक हिस्सा आसानी से उनके पाकेट में आ जाता है। गौर करे तो जिला अस्पताल जिसे मंडलीय अस्पताल का दर्जा प्राप्त है जहां जिले के सूदूर अंचलों सहित मंडल के भदोही, सोनभद्र आदि जिलों से मरीजों आते है बेहतर उपचार की अपेक्षाओं के साथ लेकिन उन्हें यहां आने पर बेहतर उपचार को कौन कहे ज्यादातर मामलों में रेफर कर चिकित्सक अपना पिंड छुड़ाने का काम कर जाते है या नहीं अपने आवास पर देखना पसंद करते है। इस कार्य में महती भूमिका अदा करते है यहां सक्रिय दलाल जो मरीजों को अस्पताल से आवास पर पहुंचने से लेकर अन्यत्र रेफर करने में सक्रिय दिखलाई देते हैं। आष्चर्य की बात है मंडलीय अस्पताल परिसर में ही उप निदेषक स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण का भी कार्यालय है बावजूद इसके यहां की व्यवस्थाओं में सुधार होता दिखलाई नहीं दे पा रहा है। कहना गलत नहीं होगा कि पूर्व में जिला अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक रहे डा. षाही के समय में जिला अस्पताल की व्यवस्थाओं में न केवल काफी हद तक सुधार देखने को मिल रहा था, बल्कि लापरवाह चिकित्सकों पर नकेल कसने के साथ दलालों के लगने वाले जमघट आदि सहित अन्य अव्यवस्थाओं पर भी उन्होंने दण्नात्मक रूख अपना रखा था जिसका असर यह था कि अस्पताल की व्यवस्था सुव्यवस्थित होने के साथ पटरी पर नजर आ रही थी, लेकिन उनके निलंबन के बाद से ही यहां की व्यवस्था बेपटरी हो उठी है। जिस पर न तो यहां के जिला प्रषासन का नियंत्रण रहा है और ना ही जनप्रतिनिधियों का जिससे मरीजों और तीमारदारों की परेषानियों में इजाफा होता जा रहा है।

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