मुंबई,भारत सरकार के 2 विभाग में समन्वय नहीं होने से जमीन का कब्जा पाने के लिए कसरत कैसे करनी पड़ती हैं ? इसका ज्वलंत उदाहरण मुंबई के नौसेना की जमीन का हैं। गत 42 वर्षों से प्रत्यक्ष डिमार्केशन न होने से आज भी डाक विभाग को खरीदी हुई जमीन पर डाक विभाग की बिल्डिंग बनाना संभव नहीं हो पाने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को भारतीय डाक विभाग ने दी हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने भारतीय डाक विभाग को कांजूरमार्ग पश्चिम स्थित नौसेना के अधिकार वाली जमीन को लेकर जानकारी मांगी थी। भारतीय डाक विभाग के लीगल और बिल्डिंग विभाग ने अनिल गलगली को बताया कि रक्षा मंत्रालय से दिनांक 26 फरवरी 1973 को 13,200 वर्ग फूट जमीन भारतीय डाक विभाग ने खरीदी थी और उसका ताबा दिनांक 5 दिसंबर 1975 को भले ही लिया गया लेकिन कॉलनी में बड़े पैमाने पर निर्माण काम होने डाक विभाग को दी गई जमीन कहां पर हैं? इसे ढूंढना संभव नहीं हो पाया। दिनांक 7 फरवरी 1966 को रु 26,400/- इतनी रकम में पवई नौसेना कॉलनी में 13,200 वर्ग फूट जमीन नियोजित की गई थी। नौसेना ने जमीन का डिमार्केशन करने में बरती देरी से इस जमीन पर भारतीय डाक विभाग बिल्डिंग नहीं बना पाई। लगातार जद्दोजहद करने के बाद नौसेना के प्रशासकीय विभाग ने कौनसी जमीन देनी हैं, इसका सही स्थान दिखाने की तैयारी बताई। उसके बाद लीगल और बिल्डिंग विभाग के सहायक निर्देशक के मार्गदर्शन में भारतीय डाक विभाग की टीम और नौसेना के कमांडर- महा मुजावर ने संयुक्त तौर पर दिनांक 19 अप्रैल 2017 को जमीन का जायजा लेकर इस जमीन पर बिल्डिंग बनाने पर सहमति जताई। दिनांक 23 मई 2017 को उस जमीन का डिमार्केशन करने की बात तय हुई लेकिन फिर एक बार नौसेना के प्रशासकीय विभाग के असहयोग से बिल्डिंग का निर्माण अटक गया। भारतीय डाक विभाग ने इस जमीन पर 5,000 वर्ग फुट पर बिल्डिंग बनाने को मान्यता मिल गई हैं।
नौसेना के प्रशासकीय विभाग ने डिमार्केशन न करने से अब भारतीय डाक विभाग ने दिनांक 22 अगस्त 2017 को नौसेना के पश्चिम क्षेत्र के रिअर ऍडमिरल प्रदीप जोशी के पास गृहार लगाई हैं। वहां से अबतक किसी भी प्रकार का प्रतिसाद नहीं मिला हैं। इस जमीन पर 'आदर्श ' जैसी नई बिल्डिंग तो खड़ा करने की मंशा तो नहीं है ना? ऐसा संदेह इसलिए हो रहा हैं क्योंकि एक सरल डिमार्केशन करने के लिए नौसेना का प्रशासकीय विभाग इतनी देरी लगा रहा है।
अनिल गलगली ने जमीन का सरल डिमार्केशन करने के लिए नौसेना के प्रशासकीय अधिकारियों को शुरु धीमी कार्रवाई पर नाराजगी जताई। केंद्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारामन को भेजे हुए पत्र में अनिल गलगली ने धीमी गति से कारवाई करने वाले अधिकारियों की जांच कर ताबड़तोब जमीन देने की प्रक्रिया पूर्ण करने की मांग की हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने भारतीय डाक विभाग को कांजूरमार्ग पश्चिम स्थित नौसेना के अधिकार वाली जमीन को लेकर जानकारी मांगी थी। भारतीय डाक विभाग के लीगल और बिल्डिंग विभाग ने अनिल गलगली को बताया कि रक्षा मंत्रालय से दिनांक 26 फरवरी 1973 को 13,200 वर्ग फूट जमीन भारतीय डाक विभाग ने खरीदी थी और उसका ताबा दिनांक 5 दिसंबर 1975 को भले ही लिया गया लेकिन कॉलनी में बड़े पैमाने पर निर्माण काम होने डाक विभाग को दी गई जमीन कहां पर हैं? इसे ढूंढना संभव नहीं हो पाया। दिनांक 7 फरवरी 1966 को रु 26,400/- इतनी रकम में पवई नौसेना कॉलनी में 13,200 वर्ग फूट जमीन नियोजित की गई थी। नौसेना ने जमीन का डिमार्केशन करने में बरती देरी से इस जमीन पर भारतीय डाक विभाग बिल्डिंग नहीं बना पाई। लगातार जद्दोजहद करने के बाद नौसेना के प्रशासकीय विभाग ने कौनसी जमीन देनी हैं, इसका सही स्थान दिखाने की तैयारी बताई। उसके बाद लीगल और बिल्डिंग विभाग के सहायक निर्देशक के मार्गदर्शन में भारतीय डाक विभाग की टीम और नौसेना के कमांडर- महा मुजावर ने संयुक्त तौर पर दिनांक 19 अप्रैल 2017 को जमीन का जायजा लेकर इस जमीन पर बिल्डिंग बनाने पर सहमति जताई। दिनांक 23 मई 2017 को उस जमीन का डिमार्केशन करने की बात तय हुई लेकिन फिर एक बार नौसेना के प्रशासकीय विभाग के असहयोग से बिल्डिंग का निर्माण अटक गया। भारतीय डाक विभाग ने इस जमीन पर 5,000 वर्ग फुट पर बिल्डिंग बनाने को मान्यता मिल गई हैं।
नौसेना के प्रशासकीय विभाग ने डिमार्केशन न करने से अब भारतीय डाक विभाग ने दिनांक 22 अगस्त 2017 को नौसेना के पश्चिम क्षेत्र के रिअर ऍडमिरल प्रदीप जोशी के पास गृहार लगाई हैं। वहां से अबतक किसी भी प्रकार का प्रतिसाद नहीं मिला हैं। इस जमीन पर 'आदर्श ' जैसी नई बिल्डिंग तो खड़ा करने की मंशा तो नहीं है ना? ऐसा संदेह इसलिए हो रहा हैं क्योंकि एक सरल डिमार्केशन करने के लिए नौसेना का प्रशासकीय विभाग इतनी देरी लगा रहा है।
अनिल गलगली ने जमीन का सरल डिमार्केशन करने के लिए नौसेना के प्रशासकीय अधिकारियों को शुरु धीमी कार्रवाई पर नाराजगी जताई। केंद्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारामन को भेजे हुए पत्र में अनिल गलगली ने धीमी गति से कारवाई करने वाले अधिकारियों की जांच कर ताबड़तोब जमीन देने की प्रक्रिया पूर्ण करने की मांग की हैं।
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