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हेमेन्द्र क्षीरसागर, लेखक व विचारक,

तलाक, तलाक और तलाक की कानफोडू आवाज ने आवाम में कोहराम मचा के रखा है। जिधर देखे उधर तलाक ही तलाक नजर आता है। भाई-भाई, बाप-बेटा, मां-बेटी और मियां-बीवी जैसे पाक-साफ नाते-रिष्तें भी अछूते न रहकर तलाक की तकरार में जार-जार हुए। आगोष में कई जिदंगियां तहस-नहस हो गई। बलां ने सितम ऐसा ढाया कि भाईचारा भाई का चारा, यार मतलबी गद्दार और परिवार बेवजह का वार बन गया। खासतौर पर पति-पत्नी के रिष्तों में खलल डालने में तलाक ने अहम किरदार निभाया। बदस्तुर तलाक ने मजहबी दीवार फांदकर एक पल में सात जन्मों का नाता तार-तार कर दिया। बेरूखी में एक साथ तीन तलाक की बेवफाई से जोरू दर-दर की हो गई बजाय रहनुमाई के खाविंद ताव-तुर्रा में तलाक, तलाक व तलाक का फतवा जाहिर करतेे रहे। इस बेबसी के आलम में हिम्मतें मर्दा नहि जनाना तो मद्दें खुदा के इरादे से तलाक-ए-बिद्दत किवां तीन तलाक से व्यथित, पीडित और शोषित महिलाओं ने तलाक को तलाक देने का जंग-ए-एलान कर दिया।

तरजीह, दायर अर्जी पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने फिलवक्त अपने ऐतिहासिक फैसले में तीन तलाक को गैरकानूनी करार देते हुए 6 महिने की पाबंदी लगाकर सरकार को कानून बनाने का हुक्म सुनाया। पीठ ने पारित आदेष में कहा तीन तलाक की रिवाज कुराने पाक के मूल सिद्धांतों और शरियत के खिलाफ है। अनेक इस्लामिक मूल्कों में भी तीन तलाक पर मनाही है तो आजाद भारत में यह गुलामी की जंजीरों से क्यों जकडा हुआ हैं? यथा, सर्वोच्च अदालत के 5 जजों की बेंच ने 3ः2 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए एक झटके में शादीषुदा जीवन खत्म होने के डर से जी रही मुस्लिम महिलाओं को सबसे बडी राहत दी। साथ ही ट्रिपल तलाक को मुस्लिम महिलाओं के समानता व मौलिक अधिकारों का उल्लघंन मानकर खत्म कर दिया।

शुक्रगुजार, तलाक की रवानगी हो गई वरना हाल के एक सर्वे में तीन तलाक को लेकर कई चैकाने वाले खुलासे ने होस उडा दिए थे। लिहाजा, तलाक के सबसे अधिक मामलों मंे 7.96 फीसद पति के नाजायज संबंधों के चलते, 7.08 बे-औलाद, 2.65 लडकी की पैदाईस, 6.19 अच्छी गृहणी की अपेक्षा, 4.87 पति की बेरोजगारी, 4.42 यौवन की कमी, 0.44 बढावा और उकसावा, 13.27 परिवार व रिष्तेदारी, 0.88 पुरूष की नषाखोरी, 2.65 पत्नी की बीमारी तथा 37.61 प्रतिषत मुस्लिम अन्य वजहों से तीन तलाक की दहाड लगाते रहे।

हुबहू ऐसे ही मुकम्मल आंकडों पर और गौर फरमाये तो हिन्दुस्तान में अगर एक मुस्लिम तलाकषुदा मर्द है तो 4 औरतें हैं। सिखों को छोड दंे तो अन्य समुदायों में पुरूषों की बजाय तलाकषुदा महिलाओं की तादाद ज्यादा है। मुस्लिमों में ये अनुपात 79ः21 फीसद यानि 79 महिलाएं और 21 पुरू्रष तलाकषुदा है। अन्य धर्मो में 72ः28 और बौद्धों में 70ः30 है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, मूल्क में तलाकषुदा महिलाओं में 66 फीसद हिंदु और 24 फीसद मुस्लिम है। बहरहाल, देष में मुस्लिमों की आबादी 17 करोड है, इनमें करीब आधी आबादी 8.3 करोड महिलाएं है। बरबस महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 2.09 लाख तलाकषुदाओं में स्त्री 1.5 लाख मतलब 73.5 प्रतिषत है। वीभत्स, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन के मुताबिक भारत में 80 से 95 फीसदी तलाकी महिलाएं गुजारा भत्ताओं से महरूम रही है।

नाफरमानी में सोच-समझकर, सलाह-मषहवरा और जमात की रजामंदी से समयावधि में बोले जाने वाले कर्कषी तलाक के मायने बदल गए। एक बार में तीन तलाक का प्रलाप होने से तलाक, तलाक नहीं तत्काल बन गया। अलबत्ता हालातों में तलाक इंसानियत नहीं बल्कि हैवानियति है इसलिए तलाक को तलाक देना वक्त की निहायत जरूरत है। अब सब हमारे साथ है शासन, प्रषासन, न्यायालय, सिपहसालार, बिरादरी और मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड। फ्रिकमंदी में जुगलबंदी से बेहतरी की उम्मीद लगाए बैठी नारी शक्ति को क्या हासिल होता है? अभाव में आने वाली पीढी हमें कदापि माफ नहीं करेंगी।

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