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सौ साल पूरे होने में अब दो -तीन साल  ही बाक़ी   है अगर सब कुछ ठीक रहा तो मुलुंड ग्वानपाड़ा की रहिवासी द्वारका  बारकु दादा पाटिल (द्वारिका आजी यह भी पूरा कर देंगी साढ़े नौ दशक कोई कम नहीं होते जीवन के ,न जाने कितने सुखों के और दुःखों के पल आएं होंगे जीवन में क्या मिला क्या नहीं इसका लेखा जोखा कौन करे मौत कब आये की प्रतीक्षा अक्सर सभी उन वृद्धों की रहती होगी जो शरीर से अस्वस्थ हों अधिक उम्र वाले हों ,मगर करें तो क्या करें मौत के इंतजार में वर्तमान में मिल रहे क्षणों को भी उसी तरह से जीना जैसे शरीर स्वस्थ रहते जीते थे जी हाँ द्वारका आजी आज भी वह सब करती दिखेगी जो अक्सर कम ही लोग कर पाते हैं बीते पांच सालों पूर्व बिचले बेटे दो -दो बार  नगरसेवक  बेस्ट के चैयरमेन रहे सुरेश बारकु पाटिल   का आकस्मिक निधन और उससे पूर्व पति बारकु दादा पाटिल के चले जाने का गम आजी को आज भी  है उस जमाने में छोटी सी उम्र में   बारकु दादा पाटिल से शादी  हुई थी  तब द्वारका को शादी क्या होती है इसका भान भी नहीं था   घर की पूरी जिम्मेदारी स्वंय  उनको उठानी पड़ी क्योंकि बारकु दादा एक हरपन मौला मिजाज के जो थे गंगा मिले गंगादास जमुना मिले जमुना दास। दूसरों की खेती करना और मच्छी का धंदा साग सब्जी बेचकर   जीवन यापन करने के अलावा कोई साधन तो द्वारका के पास नहीं था उनके ससुर की ऐसी कोई जमीन जायदाद नहीं दी सबकी सब गिरवी रखी थी तब ऐसे समय में द्वारका ने जमकर मेहनत की एक -एक पाई इकठ्ठा कर  भारी गरीबी और जी तोड़ मेहनत करके आजी ने दिन रात मेहनत करके अपनी पाई पाई इकठ्ठा करके लगभग चालीस हजार रूपये में मुलुंड प स्थित द्वारिका बिलिडिंग खरीदी थी पाई पाई जमा कर पुस्तैनी जमीने खरीदी।  काफी समय बाद उनके तीन बेटे एक बेटी हुई बड़ा बेटा रमेश पाटिल ,सुरेश पाटिल ,गणेश पाटिल और बेटी प्रेमा पाटिल वैती परिवार में है  , धीरे धीरे कष्ट भरे दिन बीतने लगे बेटे बड़े हुए हर माँ -बाप की तरह सभी की अपनी गृहस्ती बन गयी खाते -कमाते सभी एक दूसरे से दूर होने लगे सजा संवारा परिवार वृहद तो हुआ मगर जिस मेहनत के साथ आजी ने बच्चों को सहेजा लालन पालन किया समय के साथ सब कुछ अलग सा हो गया सबको छोटा परिवार सुखी परिवार का घुन जो लग गया आज आजी की भी बहुत छोटी सी फैमली है वे अपने बिचले बेटे सुरेश पाटिल और बहु मीनाक्षी पाटिल के साथ ही रहती हैं मीनाक्षी  सुरेश पाटिल भी दो बार नगरसेविका रह चुकी हैं सेवाभावी मीनाक्षी पाटिल बताती हैं कि आजी का होना उनके लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं व्यस्तम से व्यस्तम काम भी क्यों न हो वह आजी के ख्याल रखने में कोई आलसी पना नहीं दिखाती सुरेश दादा की राजनितिक विरासत संभालने के बाद भी अब आजी का ध्यान पोते अमित की बहु कीर्ति दा बिल्कुल अपनी सास मीनाक्षी की तरह ही देती है अमित पेशेवर वकील है पढ़लिखा  नव युवा मगर अपनी दादी के लिए उतना ही फिक्रमंद जितना उसके पिता सुरेश दादा सुबह उठते ही पहले माँ के दर्शन से ही इनकी शुभप्रभात होती थी अब अमित  कहीं बाहर जाओ या आओ आजी के आशीर्वाद को लेना नहीं भूलता। द्वारिका आजी की सबसे अच्छी दोस्त है तो वह है  ४ साल की मायरा जो बच्चों जैसी शरारती तो हैं मगर दिल से आजी को इतना मानती है जैसे दोस्त। आजी आज भी वह सब करती मिल जाती है जैसे चावल साफ करना ,झाड़ू मारना ,साफ सफाई वाली बाई को काम बताना और न करे तो गुस्सा प्रकट करना  भले ही आज आजी कान बहुत कम सुनती हैं सजने सवरने का आजतक भी उनका शौक जैसे का तैसे ही है   सामने  वाले की भाषा की सार पकड़ लेती हैं अपनी दिनचर्चा  में आजी बहुत कड़क है अधिक समय तक विस्तर पर लेटना तो बिलकुल गलत मानती है शरीर को जितना हो सके काम पर लगाये रखना कोई सीखे तो आजी से सीखा जा सकता है   

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