भिवंडी। एम हुसेन । श्री राजस्थान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में भिवंडी के भगवान महावीर रोड स्थित महावीर भवन के गुरु श्रेष्ठ पुष्कर देवेंद्र दरबार में विराजित राष्ट्रसंत दक्षिण सम्राट श्री नरेश मुनिजी म.सा. ने कहा कि जिस मार्ग पर नहीं जाना उसे ही माया कहते हैं। माया बहुत खराब होती है, क्रोध तो ऊपर से भी दिखाई देता है पर माया तो दिखाई भी नहीं देती है। वह तो छिपकर ही वार करती है। उससे बचना बहुत कठिन होता है। इसीलिये माया को मयंकर कहा गया है। मुख राम और बगल में छूरी रखना माया है, मायावी जन मुंह से तो मीठे होते हैं और हृदय में विष से भरे रहते हैं। मायावी जन जो गुप्त रखने की बात होती है उसे बता देता है और जो बताने की बात होती है उसे गुप्त रखता है। पाप और अबगुणों को खुला कभी भी नही छिपाना चाहिए। लेकिन उसे छिपाकर रखता है। दान और पुण्य को गुप्त रखना चाहिए।
प्रखर वक्ता श्री शालिभद्रजी म.सा. ने अंतगढ़ सूत्र को बताया कि यह प्रभु की वाणी है, बेशक शब्द समझ में नहीं आ रहे हैं लेकिन यह वह वाणी है जिस वाणी से जीवन परिवर्तित होता रहता है। मानव मन का यह जो अपूर्व अवसर मिला है उसको समझकर जो उसको सार्थक कर लेता है वह पंडित कहा जाता है। इसी प्रकार साध्वी डॉ. मेघा श्रीजी ने कहा कि मोहनीय कर्म सब कर्मों से बड़ा भयंकर है। वह जीव को फुसला-फुसलाकर मार देता है। जैसे कमरे में धुंआ कर दो मच्छर की कैसी हालत हो जाती है वैसी ही हालत मोहनीय कर्म से आत्मा की हो जाती है। कार्यक्रम का संचालन संघमंत्री अशोक बाफना ने किया तथा उक्त जानकारी लक्ष्मीलाल दोषी ने दिया ।
2 Attachments
Post a Comment
Blogger Facebook