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युगो-युगिन तप, कर्म, त्याग और बलिदान से अटल बिहारी वाजपेयी जैसे राष्ट्रनेता के दीदार देश को होते है। हम खुशनसीब हैं कि हमें ऐसे महामना का साया मुनासिब हुआ। अटल जी का समर्पण, नेतृत्व, राजनीति, समरसता, कर्तव्यनिष्ठा, राष्ट्रवादिता और भाषा-भाषण की अटूता सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा का गुंजायमान करता है। इस मंत्रमुग्धता के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश ने पक्ष विपक्ष की दीवारों से परे राजनीति के अजातशत्रु अटल जी को अपना सर्वमान्य नेता माना। जो अजर, अमर और अटल होकर क्षितीज पर सदा-सर्वदा दैदीप्यमान होते रहेंगा।
शायद ही जगत में ऐसे बिरले उद्वरण देखने को मिले जहां अपने राष्ट्रनेता के प्रति अथाह प्रेम और विश्वास हो। ये तो अर्पण की भूमि है, तर्पण की भूमि है, वंदन की भूमि और अभिनंदन की भूमि है इसीलिए यहां राष्ट्रनेता कहा गया एक-एक वाक्य कथनी भी है और करनी भी हैं।
अब, बारी हमारी व आने वाली पीढी की है कि राष्ट्रनेता की अमिट छाप को अपने मानस पटल पर स्मरणित रखकर अंगीकार या ओझल करते हैं। विषाद २६ अगस्त २०१८ की घड़ी को हमसे हमारे राष्ट्रनेता जुदा होकर जिदंगी का पाठ पढ़ाकर चले गए। सहगमन हम सीखे राजनीति के अटल पथ पर कितना चल पाते हैं। चल पढ़े तो समझो अपने जननायक को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर दी। नहीं तो यादों के पन्ने पुन: दोहराने की जरूरत आन पड़ेगी। निर्विवाद जय-जयकार से काम नहीं चलने वाला ये तो बिदाई है, अशेष स्मरण हैं और श्रृद्धा हैं यह अपनी जगह जायज है असलियत में तो वंचित, पीडि़त, शोषित, दलित और देश की रक्षा व विकास में जुटना ही मूल मकसद हैं, तभी हम अटल भारत रत्न के सच्चे उत्तराधिकारी साबित होंगे।
वीभत्स काल की काली छाया ने हमसे हमारे युगपुरूष को छीन लिया, ना चाहते हुए भी हमने उन्हें पंचत्तव में विलिन कर दिया। निस्पृह करते क्यां यह तो विधि का विधान है, आखिर! ईश्वर को भी उनकी सेवा का लोभ था। फलवक्त वहां भी बड़ी रौनक रही होंगी जब परवर दीगार के  दरबार में एक फरिश्ता पहुंचा होगा जमीं से आसमान पर। ऐसी अपूरणीय छति पं. अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म ग्वालियर में १९२४ को कृष्णादेवी-कृष्णा बिहारी वाजपेयी के घर हुआ। पिता एक कवि और स्कूल मास्टर थे। अटल जी ने यही के गोरखी शासकीय उच्च्तर विद्यालय से स्कूल और विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक की शिक्षा ग्रहण की। बाद में कानपुर के दयानंद साइंस वैदिक महाविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्रथम श्रेणी प्राप्त की। १९४७ में संघ के पूर्णकालिक स्वयंसेवक बनकर विभाजन के दौर में विधि की पढ़ाई अधर में छोड़ कर प्रचारक के रूप उत्तरप्रदेश चले गए । वहां पं. दीनदयाल उपाध्याय के साथ राष्ट्रधर्म ,पांचजन्य, स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे तत्कालिन ख्यातिलब्ध अखबारों का संपादन किया। लेखनी की धार से लिखी गई मेरी ५१ कविताएं का मधुर गुंजार आज भी घर-घर में होता हैं।
 कविमन, अटल जी पहली बार बलरामपुर से सांसद चुने गए और विभिन्न ६ जगहों से १० बार लोकसभा के सदस्य निर्वाचित होते रहे। आपने दो बार राज्यसभा का भी प्रतिनिधित्व किया है। साथ ही जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य और अध्यक्ष के रूप में कुशल नेतृत्व किया। बानगी में २ से १८२ तक का सफर पार्टी ने तय किया जो २८२ तक आ पहुंची है। इस दौर में १९७७ में जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री का यादगार कार्यकाल आज भी कालजयी बना हुआ है। दरम्यान संयुक्त राष्ट्र संघ में दिया गया हिंदी का भाषण हृदयंगम हैं। आपके सुशासन और कार्यपालन से वशीभूत होकर आपको १९९२ में पदम् विभूषण, १९९३ डी-लिट, १९९४ लोकमान्य तिलक पुरस्कार, बेस्ट संसद, भारत रत्न पं. गोविन्द वल्लभ पंत पुरस्कार,२०१५ भारत रत्न और बंग्लादेश का सर्वोच्च लिबेरेशन वॉर सम्मान इत्यादि से सम्मानित किया गया।
आगे बढ़ते हुए १९९६, १९९८  और १९९९ से २००४ तक प्रधानमंत्री के तौर पर देश का उल्लेेखनीय व ऐतिहासिक नेतृत्व किया जिसका अनुसरण बरसों बरस तक होना नामुमकिन लगता हैं। स्तुत्य, देशहित में प्रत्युत कार्यो की ओर देखे तो पोखरण परमाणु परीक्षण, कावेरी जल विवाद निपटारा, स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना, प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक़ योजना, सूचना प्रौद्योगिकी का संजाल और कोकर्ण रेल्वे समेत अन्य महत्वाकांक्षी योजनाओं व अभियानों की बेहिताशा श्रृखंला हैं जिनके बारे में जितनी बात की जाएं उतनी ही कम हैं। ये ही राजनीति का अटल पथ और सत्य हैं। अब युगऋषि के बारे में लिखना सूरज को रोशनी दिखाने के समान हैं अंतत: अटल जी की एक ओजस्वी कविता के साथ.....बाधा आती हैं आघिरें प्रलय की घोर घटा पॉवों के नीचे अंगारे सिर पर बरसें यदि ज्वाला निज हाथों में हंसतें-हंसतें जलना होगा कदम मिलाकर चलना होगा।     

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