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आरके राय, जेटी न्यूज।
पटना। मुफ्त कम्प्यूटर शिक्षा केन्द्र खोलने के नाम पर लाखो रुपये बटोर कर केन्द्र संचालकों को अंगूठा दिखाये जाने का मामला सामने आया है। जी हाँ! रश्मि सॉफ्टेक कॉरपोरेशन प्राईवेट लिमिमिटेड नामक एक कम्पनी द्वारा प्रस्तावित मुफ्त कंप्यूटर शिक्षा केन्द्र खोलने के इच्छुक केन्द्र संचालक स्वयं को ठगा महसूस कर रहे हैं। बताते चलें कि मुफ्त शिक्षा केन्द्र को लेकर पूरे बिहार में सेंटर खोलने की प्रक्रिया आरएससीपीएल के द्वारा फरवरी 2018 से आरम्भ है।  दरभंगा के मिश्रा टोल मे मुख्यालय बताने वाली इस कम्पनी ने दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, सीवान, गोपालगंज, बेगुसराय, पटना, अररिया, सहित विभिन्न जिलों में 300 से अधिक शिक्षा केन्द्र खोलने हेतु प्रति केन्द्र 5 हजार की जमानत राशि लेकर रजिस्ट्रेशन कराया गया। पंजीयन के समय अप्रैल माह से सेंटर प्राम्भ कर प्रशिक्षण की शुरुआत कराने का आश्वासन दिया गया था। होटल चाणक्या के सभागार में केन्द्र व्यवस्थापको व जिला समन्वयको के पहले सम्मेलन मे उद्घाटन करते हुये प्रबंध निदेशक अभिषेक वत्स ने बेहद भावुक संबोधन किया था और अपने इस प्रयास को डिजीटल इंडिया की ओर एक कदम और अपनी दिवंगत माँ को श्रद्धांजली बताया था। परंतु उसके बाद से कंपनी की कथनी व करनी का फर्क दिखने लगा। कम्पनी द्वारा निश्चित शर्त के मुताबिक जरूरी संसाधन व उपस्कर उपलब्ध कराना था।जो उपलब्ध नही कराया गया फलत: सात माह हो गये मगर अब तक किसी सेंटर पर प्रशिक्षण प्रारंभ नहीं हो पाया है। केन्द्र संचालकों को बताया गया था कि दो कमरे वाले मकान का किराया, दो प्रशिक्षक व केन्द्र संचालक को मानदेय कम्पनी भुगतान करेगी। प्रशिक्षण देने केलिए दो कम्प्यूटर कुर्सी टेबल भी कम्पनी को ही देना था। सामग्री व मानदेय तो दूर कम्पनी मकान का किराया भी देती नजर नही आ रही है। जिससे कम्पनी का तथाकथित उद्देश्य जमीन पर साकार होता  नहीं दिख रहा। कार्यालय से इस बाबत पूछे जाने पर कोई संतोषप्रद सकारात्मक जवाब नही मिल पाता है। परिणाम है कि केन्द्र संचालक अब स्वयं को ठगा महसूस करने लगे हैं। एक तरफ प्रशिक्षु आये दिन सेंटर इंचार्ज को झूठा आश्वासन देने के लिये प्रताड़ित करते हैं, वही दूसरी तरफ मकान मालिक भी मकान खाली करने का दवाब दे रहे है।  कम्पनी को इस सन्दर्भ मे बताये जाने पर कुछ लोगों को जून महीने में प्रति सेंटर तीन माह का किराया कह कर 15 हजार का चेक पकड़ा दिया गया। मगर वह चेक बाउंस हो गया है। कम्पनी के रवैये से क्षुब्ध हो कर पटना के एक कम्प्यूटर आपुर्तिकर्ता ने तो अपना अनुबंध तोड़ लिया। बताते हैं समस्तीपुर के वितरक से नमूने के तौर पर एक लैपटॉप व एक डेस्कटॉप मंगवा कर 100 लैपटॉप का अनुबंध किया था। मगर भूगतान नही किया गया। भुगतान के बदले उनको भी चेक ही दिया गया जो बाउन्स हो गया। कुछ क्न्द्र संचालकों की माने तो अब कम्पनी के निदेशक सहित पदाधिकारियों से सम्पर्क करना भी मुश्किल हो गया है। क्योंकि अव्वल कि फ़ोन लगता नही, या फिर फोन ऑफ मिलता है। यदि फोन लग भी जाये तो कोई नये बहाना बना कर अगले दो तीन दिन में भुगतान करने की बात कह दी जाती है। इससे एक तरफ सेंटर इन्चार्ज का हाल बहुत ही दयनीय हो चला है। रेसिस्ट्रेशन कराने के बाद सात महीने से कंपनी ने सिर्फ आश्वासन ही दिया है। केन्द्र संचालक मकान मालिक, ट्रेनर और प्रशिक्षुओं के दवाब मे स्वयं को छला महसूस कर रहे हैं। एेसे में एक सवाल कौंधता है कि मां के नाम पर डिजिटल इंडिया की ओर एक कदम बढाने का वादा कहीं प्रान्तीय स्तर पर किया गया छलावा तो नहीं था? केन्द्र संचालको से 5000 रुपये लेकर कम्पनी कौन सा खेल खेल रही है? केन्द्र संचालक बेवजह बढ़ते मकान किराये और ट्रेनर के मानदेय के बोझ तले लगातार दबते जा रहे हैं इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? बिहार  पटना से राजकुमार राय हिंदुस्तान की आवाज़ के लिए 9431406262

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