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पटना : बिहार से बाहर पढ़ने वाले छात्रों की शिक्षा पर आज बिहार शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा द्वारा लाखों विद्यार्थियों के सपनों को अंधकार में चला  गया। वैसे तो बिहार के छात्र भारत के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में नामांकन नहीं मिलता क्योंकि बोर्ड परीक्षा का परिणाम समय पर जारी नहीं किया जाता है जिसके कारण   मेधावी छात्रों को बिहार से बाहर सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों मे  पढ़ने की इच्छा रखने वालों छात्रों का सपना सपना ही रह जाता हैं ।शुरू से आ रही परंपरा को बिहार शिक्षा मंत्री के द्वारा देर से परीक्षा परिणाम जारी करने की आदत सी बन गई है। CBSE की परीक्षा जो बिहार बोर्ड के एक महीने के बाद ली गई लेकिन उसका परिणाम बिहार बोर्ड के परिणाम जारी करने से पहले ही  जारी कर दिया गया है। देर से परिणाम जारी होने से  छात्रों का सपना टूट जाता जाता है।परिणाम यह होता है कि बिहार के मेधावी छात्र बिहार से बाहर जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने में पीछे रह जाते हैं। इस घटना को दोहराते हुए बिहार शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा परीक्षा परिणाम की तिथि को बढ़ाकर अप्रैल और मई  पुनः ज़ून कर दिया गया है। जबकि दिल्ली विश्वविद्यालय में ग्रेजुएशन के लिए पंजीकरण की तिथि 7 जून निर्धारित है और इन्टर परीक्षा का परिणाम 6जून को आना हैं ऐसे मे छात्र कैसे पंजीकरण करा सकतें है।इन  सबका खामियाजा बिहार के मेधावी छात्रों को भुगतना पड़ता है। उसे क्वालिटी होने के बावजूद देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं। बिहार की शिक्षा व्यवस्था ऐसी है की प्राथमिक विद्यालय से विश्वविद्यालय तक शिक्षकों की  इतनी कमी है  कि नामांकन तो विद्यालयों में होता है लेकिन छात्रों को पढ़ाई के लिए निजी कोचिंग संस्थानों में जाना पड़ता है। कुछ  मेधावी छात्र  है लेकिन इतने गरीब हैं कि वह पैसे के अभाव में निजी कोचिंग संस्थान में पढ़ नहीं पाते हैं और उनकी मेधावी उनकी उम्मीद सिर्फ रह जाती है जिसके कारण देश के विकास में योगदान नहीं दे पाते हैं। पैसे वाले परिवार नीजि कोचिंग संस्थानों में शिक्षा ग्रहण कर उच्च पदों पर आसीन होकर शासन व्यवस्था को हाथों की कठपुतली बना देते हैं। इसका असर बिहार के समस्त जिलों में दिखाई पड़ रहा है अगर ऐसा होता है तो वह दिन दूर नहीं के यहां के लोग सिर्फ साक्षर होंगे शिक्षित नहीं।  शिक्षित होने के लिए बिहार सरकार को ससमय परीक्षा परिणाम घोषित कर छात्रों को देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में ग्रहण का मौका दिया जाए ताकि देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में नामांकन कर उच्च शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिले। अगर ऐसा नहीं होता है तो बिहार तो वैसे भी शिक्षा में पीछे है और नीतीश कुमार के सरकार में इतना पीछे चला जाएगा जो पुनः ऊंचे उठने का नाम तक नहीं लेगा । आपको बताते चलें कि बिहार विधालय परीक्षा समिति अध्यक्ष आनंद किशोर स्वयं आइएस अधिकारी है आश्चर्य की बात है कि एक उच्च अधिकारी के नेतृत्व में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति इतनी बदतर है।इससे तो साबित होता है कि अध्यक्ष श्री मेहनत से पदाधिकारी बने है या नहीं।
          अगर बिहार में शिक्षा व्यवस्था को सुधारना है तो हमें समय पर परीक्षा दे और समय पर परिणाम घोषित कर राज्य के मेधावी छात्रों को देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने का मौका दिया जाए।

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