मुंबई। औरंगाबाद, भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक महानगर है। अजंता (अजिंठा) और एलोरा (वेरूळ) विश्व धरोहर स्थलों समेत कई नामी पर्यटन स्थलो के सन्निध होने से यह एक महत्वपूर्ण पर्यटक केंद्र है। औरंगाबाद प्रदेश का एक प्रमुख औद्योगिक शहर तथा शिक्षा केंद्र है। यह एक जिला एवं संभाग मुख्यालय भी है। औरंगाबाद विश्व में अजन्ता और एलोरा की प्रसिद्ध बौद्ध गुफाओं के लिए जाना जाता है। इन गुफाओं का निर्माण 200 ईसा पूर्व से लेकर 650 ई. तक हुआ। इन गुफाओं को विश्व धरोहर (वर्ल्ड हेरिटेज) में शामिल कर लिया गया है।
मध्यकाल में औरंगाबाद भारत में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता था। औरंगजेब ने अपने जीवन का उत्तरार्द्ध यहीं व्यतीत किया था और यहीं औरंगजेब की मृत्यु भी हुई थी। औरंगजेब की पत्नी रबिया दुरानी का मकबरा भी यही हैं। इस मकबरे का निर्माण ताजमहल की प्रेरणा से किया गया था। इसीलिए इसे ‘पश्चिम का ताजमहल’ भी कहा जाता है।
"बीबी का मकबरा"
इस सुंदर इमारत को स्थानीय लोग ताजमहल का जुड़वा रूप मानते हैं। लेकिन बाहर के लोग इसे ताजमहल की फूहड़ नकल मानते हैं। इसे औरंगजेब के बेटे आजमशाह ने अपनी माता रबिया दुर्रानी की याद में बनवाया था। यह इमारत अभी भी पूर्णत: सुरक्षित अवस्था में है। इसी शहर में एक और भवन है जिसे सुनहरी महल कहा जाता है।
"पनचक्की"
इस पनचक्की का निर्माण राजा मलिक अंबर ने करवाया था। इस पनचक्की में पानी 6 किलोमीटर की दूरी से मिट्टी के पाइप से आता था। इसके चैंबर में लोहे का पंखा घूमता था जिससे ऊर्जा उत्पन्न होती थी। इस ऊर्जा का उपयोग आटा के मिल को चलाने में किया जाता था। इस मिल में तीर्थयात्रियों के लिए अनाज पीसा जाता था। इसी स्थान पर कुम नदी के बाएं तट पर बाबा शाह मुसाफिर का मजार है। औरंगजेब बाबा शाह का बहुत आदर करता था। यह मकबरा लाल रंग के साधारण पत्थर का बना हुआ है। यह मकबरा संत के सादगी का प्रतीक है। ध्वंस अवशेष
औरंगाबाद शहर में बहुत से दरवाजों का अवशेष भी हैं। इन ध्वंस अवशेषों में दिल्ली, जालान, पैठन तथा मक्का रा॓शन दरवाजा शामिल है। इसके अलावा बहुत से भवनों के अवशेष भी हैं। नकोंडा पैलेस, किला अर्क तथा दामरी महल आदि का अवशेष यहां है।
"पूजास्थल"
पुराने शहर में फैले ये मस्जिद और दरगाह लगातार उपयोग में आने के कारण अच्छी अवस्था में हैं। इन भवनों में जामा मस्जिद प्रमुख है जो निजाम और मुगल दोनों के शासन काल में अपना महत्व रखता था। जामा मस्जिद के अलावा शाह गंज मस्जिद, चौकी की मस्जिद (इस मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के चाचा ने करवाया था) आदि इमारतें भी देखने के योग्य है। शहर के उत्तर में पीर इस्लाम की दरगाह है। इस दरगाह में औरंगजेब के शिक्षक की समाधि है।
"बानी बेगम बाग"
यह सुंदर बाग औरंगाबाद से 24 किलोमीटर दूर स्थित है। इसी बाग में बानी बेगम की समाधि बनी हुई है। बानी बेगम औरंगजेब की पत्नी थीं। इस मकबरे में भव्य गुंबद, पिलर तथा फव्बारे हैं। यह मकबरा दक्कन प्रभावित मुगल वास्तुशैली का सुंदर नमूना है।
"औरंगाबाद की गुफाएं"
ये गुफाएं शहर से कई किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित हैं। इन गुफाओं में बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रकारी की गई है। यहां कुल दस गुफाएं हैं जो कि पूर्व और पश्चिमी भाग में बटा हुआ है। इन गुफाओं में चौथी गुफा सबसे पुरानी है। इस गुफा की बनावट हीनयान सम्प्रदाय से संबंधित वास्तुशैली में की गई है। इन गुफाओं में जातक कथाओं से संबंधित चित्रकारी की गई है। पांचवी गुफा में बुद्ध को एक जैन तीर्थंकर के रूप में दर्शाया गया है। प्रवेश शुल्क: भारतीयों के लिए 10 रु. तथा विदेशियों के bc लिए 100 रु.। समय: सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक। यही औरंगाबाद शहर है जहां मुस्लिम समुदाय द्वारा तीन दिवसीय एक बड़े इज्तेमा का आयोजन किया गया था, जहां लाखों की संख्या में शद्रालु जमा हुए थे।
मध्यकाल में औरंगाबाद भारत में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता था। औरंगजेब ने अपने जीवन का उत्तरार्द्ध यहीं व्यतीत किया था और यहीं औरंगजेब की मृत्यु भी हुई थी। औरंगजेब की पत्नी रबिया दुरानी का मकबरा भी यही हैं। इस मकबरे का निर्माण ताजमहल की प्रेरणा से किया गया था। इसीलिए इसे ‘पश्चिम का ताजमहल’ भी कहा जाता है।
"बीबी का मकबरा"
इस सुंदर इमारत को स्थानीय लोग ताजमहल का जुड़वा रूप मानते हैं। लेकिन बाहर के लोग इसे ताजमहल की फूहड़ नकल मानते हैं। इसे औरंगजेब के बेटे आजमशाह ने अपनी माता रबिया दुर्रानी की याद में बनवाया था। यह इमारत अभी भी पूर्णत: सुरक्षित अवस्था में है। इसी शहर में एक और भवन है जिसे सुनहरी महल कहा जाता है।
"पनचक्की"
इस पनचक्की का निर्माण राजा मलिक अंबर ने करवाया था। इस पनचक्की में पानी 6 किलोमीटर की दूरी से मिट्टी के पाइप से आता था। इसके चैंबर में लोहे का पंखा घूमता था जिससे ऊर्जा उत्पन्न होती थी। इस ऊर्जा का उपयोग आटा के मिल को चलाने में किया जाता था। इस मिल में तीर्थयात्रियों के लिए अनाज पीसा जाता था। इसी स्थान पर कुम नदी के बाएं तट पर बाबा शाह मुसाफिर का मजार है। औरंगजेब बाबा शाह का बहुत आदर करता था। यह मकबरा लाल रंग के साधारण पत्थर का बना हुआ है। यह मकबरा संत के सादगी का प्रतीक है। ध्वंस अवशेष
औरंगाबाद शहर में बहुत से दरवाजों का अवशेष भी हैं। इन ध्वंस अवशेषों में दिल्ली, जालान, पैठन तथा मक्का रा॓शन दरवाजा शामिल है। इसके अलावा बहुत से भवनों के अवशेष भी हैं। नकोंडा पैलेस, किला अर्क तथा दामरी महल आदि का अवशेष यहां है।
"पूजास्थल"
पुराने शहर में फैले ये मस्जिद और दरगाह लगातार उपयोग में आने के कारण अच्छी अवस्था में हैं। इन भवनों में जामा मस्जिद प्रमुख है जो निजाम और मुगल दोनों के शासन काल में अपना महत्व रखता था। जामा मस्जिद के अलावा शाह गंज मस्जिद, चौकी की मस्जिद (इस मस्जिद का निर्माण औरंगजेब के चाचा ने करवाया था) आदि इमारतें भी देखने के योग्य है। शहर के उत्तर में पीर इस्लाम की दरगाह है। इस दरगाह में औरंगजेब के शिक्षक की समाधि है।
"बानी बेगम बाग"
यह सुंदर बाग औरंगाबाद से 24 किलोमीटर दूर स्थित है। इसी बाग में बानी बेगम की समाधि बनी हुई है। बानी बेगम औरंगजेब की पत्नी थीं। इस मकबरे में भव्य गुंबद, पिलर तथा फव्बारे हैं। यह मकबरा दक्कन प्रभावित मुगल वास्तुशैली का सुंदर नमूना है।
"औरंगाबाद की गुफाएं"
ये गुफाएं शहर से कई किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित हैं। इन गुफाओं में बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रकारी की गई है। यहां कुल दस गुफाएं हैं जो कि पूर्व और पश्चिमी भाग में बटा हुआ है। इन गुफाओं में चौथी गुफा सबसे पुरानी है। इस गुफा की बनावट हीनयान सम्प्रदाय से संबंधित वास्तुशैली में की गई है। इन गुफाओं में जातक कथाओं से संबंधित चित्रकारी की गई है। पांचवी गुफा में बुद्ध को एक जैन तीर्थंकर के रूप में दर्शाया गया है। प्रवेश शुल्क: भारतीयों के लिए 10 रु. तथा विदेशियों के bc लिए 100 रु.। समय: सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक। यही औरंगाबाद शहर है जहां मुस्लिम समुदाय द्वारा तीन दिवसीय एक बड़े इज्तेमा का आयोजन किया गया था, जहां लाखों की संख्या में शद्रालु जमा हुए थे।
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