Ads (728x90)

समस्तीपुर, हिन्दुस्तान की आवाज , राजकुमर राइ

पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्म्रति मंच की प्रदेश प्रवक्ता शांति देवी चौहान ने बताया कि आज बीकानेर के बोथरा कॉम्पेक्स में पंडित जी की पुण्य तिथि पर उन्हें तहे दिल से श्रधांजलि दी गई।इस मौके पर वार्ता : पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजनीतिक पटल पर ऐसा नाम है कि राष्ट्र विरोधियों ने उनकी 11 फरवरी 1968 को छुरा घोंपकर हत्या कर दी थी , लेकिन आज भी वह अपनी बातों , व्यवहार , आचरण , सादगी , संवाद व कुशल संगठनकर्ता के रूप में तत्वदर्शी मार्गदर्शक के रुप में हमारे बीच में विद्यमान हैं।
 23 जून 1953 को जब जनसंघ संस्थापक अध्यक्ष डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कश्मीर की अखंडता के लिए बलिदान के बाद जनसंघ का समस्त  दायित्व पंडित जी पर ही था, और पंडित जी ने इस देश की राजनीतिक दशा जो विपरीत मार्ग पर चल रही थी इस को बदलने का कार्य इतने प्रभावी, चुपचाप पर विशेष ढंग से किया कि जब 1967 के चुनाव परिणाम सामने आए तो समूचा देश चौक पड़ा। भारत की राजनीति में कांग्रेस के बाद जनसंघ दूसरे क्रमांक पर था। और इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि पंडित जी ने विपरीत से विपरीत हालातों में भी पूरे देश का भ्रमण किया स्वयं जैसे हजारों दीनदयाल खड़े कर दिए, डॉ मुख़र्जी के सपनों के अनुरूप कांग्रेस का मजबूत विकल्प इस देश को दिया।
 1967 के चुनाव परिणाम के बाद हम यह कह सकते हैं कि दीनदयाल जी देश की राजनीति में तत्कालीन प्रधानमंत्री के बाद दूसरे क्रमांक पर थे वह चाहते तो आज के विपक्ष के नेता की तरह की सुरक्षा व सभी सुविधाएं ले सकते थे । लेकिन उन्होंने ऐसा कठोरतापूर्वक कदापि नहीं किया उन्होंने तय किया कि गरीबी का दंश झेल रहे क्षेत्रों में गरीब , बनवासी की पीड़ा समझने के लिए मैं जैसा हूं जैसे जाता रहा हूं , वैसे ही जाऊंगा और बिना कोई वीआईपी सुविधा व सुरक्षा लिए वह निर्धन, गरीबों , वनवासियों के बीच में गए और वहीं से भारत के नव- निर्माण का अध्याय शुरू हुआ । आज गरीब कल्याण से जुड़ी केंद्र व राज्य सरकारों की सभी योजनाएं अंत्योदय पर ही आधारित है।वर्तमान राजनीती में भाई नरेंद्र मोदी  अंत्योदय के माध्यम से जन जन तक योजनाओं का लाभ पंहुचा रहे है।
 राजस्थान में 1977 के बाद से ही तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री भैरों सिंह जी शेखावत सरकार के कामकाज का आधार भी अंत्योदय  ही रहा ।
25 सितंबर 1916 को जन्मे श्री दीनदयाल जी की हत्या 11 फरवरी 1968 को कर दी गई मात्र 51 वर्ष की आयु में ही वह हमारे बीच से चले गए। लेकिन वह इस देश को इतना कुछ देकर गए कि आने वाले सैकड़ों वर्ष बाद भी देश को उनकी बातें सारगर्भित और युगानुकूल लगेगी और वही मूल आधार होगी ।
 आज का युवा व नवमतदाता यदि देश की राजनीतिक पृष्ठभूमि का आकलन करना चाहे तो वह पंडित जी का राग व द्वेष से विरक्त जीवन रहा,उससेअपने जीवन में उतारे।
अजातशत्रु दीनदयाल जी वास्तव में वह महात्मा हैं जिन्होंने विरोधियों के प्रति भी सम्मानजनक आदरपूर्वक आचरण, व्यवहार किया समस्त राजनीतिक क्षेत्र को विनम्रता व कर्तव्य भाव का ही आग्रह किया ।पंडित जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करने वाले उपाध्यछ सुनील बांठिया व्यपार प्रकोष्ठ के अनिल पाहुजा,मंच की प्रवक्ता शांति देवी चौहान,प्रदेश संगठन मंत्री त्रिलोक सिंह चौहान,व्यपार प्रकोष्ठ के घनस्याम मोदी,व्यापार प्रकोष्ठ के महा मंत्री कैलाश गोयल आदि ने विचार चिन्तन किया।
पंडित जी के बलिदान दिवस पर शत-शत नमन श्रद्धांजलि

Post a Comment

Blogger