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लखनऊ, हिन्दुस्तान की आवाज़ आफाक अहमद मंसूरी

लखनऊ |  उत्तर प्रदेश के औधोगिक शहर कानपुर में जन्मे डायरेक्टर इमरान खान से एक खास मुलाकात पर उनकी आने वाली फिल्म और बॉलीवुड कैरियर की शुरुआत व अभी तक के उनके फिल्मी सफर में उतार चढ़ाव पर चंद सवाल करते पत्रकार आफाक अहमद मंसूरी

-डायरेक्टर इमरान खान को अभिनय का शौक स्कूल के दिनों से ही था स्कूल मंच पर नाटक करते करते इमरान खान रूपहले पर्दे पर काम करने का ख्वाब देखा करते थे यही चाहत उन्हें दिल्ली और फिर माया नगरी मुम्बई ले गई इमरान खान के अभिनय के सफर की शुरुआत लखनऊ से हुई, 15 साल पहले 'इप्टा' के नाटक 'मुल्ला नसीरुद्दीन' में अभिनय करके इमरान खान के अन्दर आत्म विश्वास रूपी किरण का उदय हुआ, उसके बाद इमरान खान ने 'गाता चल' से 'विसर्जन'  'हवेली'  'सोल्यूसन'  'बाल भगवान'  'भगवत अजूकम' संस्क्रत नाटक राजा अवस्थी के निर्देशन में किया  'लाइट एंड साइड'  ड्रामा  'अपनी कथा सतरूपा' लखनऊ दूरदर्शन की वर्ष गांठ के प्रस्तुति नाटकों पर अनेक बार अभिनय किया दिल्ली में इमरान ने  'मैला आचल'  'बानों बेगम'  'कहकशा' धारावाहिको में अभिनय किया और  'तीन वर्ष' धारावाहिक में शेखर सुमन जैसे कलाकार के साथ काम किया, दिल्ली से मुम्बई गए इमरान की फिल्म  'चट्टान'  में धर्मेन्द्र के साथ काम करने का मौका मिला,  फिर  'बुड्ढ़ा मिल गया'  में काम करते वक्त उनकी मुलाकात फिल्म रंग के सहायक निर्देशक से  हुई उन्हें फिल्म  'जियो शान'  से और  'हिम्मतवर'  फिल्म प्रोडक्शन में काम करने का मौका मिला, मुम्बई में चार साल रहकर अभिनय और निर्देशन का प्रशिक्षण लिया फिर लंबे अनुभव लेकर इमरान अपनी कर्मभूमि लखनऊ आकर अवध कंबाइंड नाट्य एकेडमी की स्थापना करके सैकड़ों युवाओं को प्रषिक्षण देकर कला के क्षेत्र में एक मिसाल कायम की, इमरान ने टेली फिल्म 'मास्टर जी'  धारावाहिक ऐसा क्यों  'प्रेम दीवाने'  'जरा सुनिए'  का निर्माण किया रंगमंच पर भी इमरान ने चर्चित नाटकों  'बजरंग बली की महिमा'  'बहू का एक दिन'  'फटीचर इन लखनऊ'   'फंटूश'  'विलायती बाबू'  'कहानी परलोक की'  एंव लेखन निर्देशन किया |
 -अब इमरान खान अपनी आने वाली हिन्दी कॉमेडी फिल्म कमाल धमाल में अथक प्रयासों एवं परिश्रम के साथ अपनी कॉमेडी फिल्म कमाल धमाल जो कि अवध कंबाइंड नाटक एकेडमी के बैनर तले बना रहे हैं,   जिसमें लेखक जिसान हैदर जैदी, डायरेक्टर इमरान खान और कास्टिंग डायरेक्टर रईस अहमद हैं, कॉमेडी थीम पर आधारित इस फिल्म का संदेश ये है कि भारत की 80 प्रतिशत आबादी गांवों में निवास करती है, गांव का विकास ही देश का विकास है लेकिन कड़वी सच्चाई ये है कि विकास के मामले में ये असली देश शहरी इंडिया के सामने कंही नही टिकता, सरकार गांवों के विकास के लिए नई नई स्कीमें लाती है लेकिन उनमें से बहुत सी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है, स्वास्थ्य के नाम परक्वैक डाक्टर्स बरसात में दलदल बनी हुई कच्ची सड़कें मिट्टी के मकान की छप्पर से टपकटी बारिश जैसे नजारे हर गांव में दिखाई देते हैं मशीन में कोई छोटी मोटी खराबी हो जाए तो दूर-दूर तक बनाने वाला नही, किसान के पास कर चुकाने के पैसे नही और बैंक वाले उसे जेल भेजने पर तैयार,  ऐसे में एक ईमानदार कोशिश होती है एक सरकार के द्वारा गांव के विकास की जो हमेशा की तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ाना चाहती है लेकिन बीच में एक रुकावट आ जाती है, वो रुकावट दीपक और राहुल नाम के दो व्यक्ति जो पेशे से चोर है, जो चोरी करने की नियत से गांव में प्रवेश करते है लेकिन गांव वाले उन्हें विकास अधिकारी समझ लेते हैं और उनकी पूरी आवभगत शुरू हो जाती है, जबकि असली विकास अधिकारी अपने ही खोदे गए गड्ढे में गिर चुके होते हैं, यानि जिस सड़क को वे कमीशन खोरी की भेंट चढ़ा चुके होते हैं उसका अता-पता ना मिलने पर वो गांव का पता भूल जाते हैं और जंगल में भटकने लगते हैं, तब उन अधिकारियों को एहसास होता है कि इमानदारी से अपना कर्तव्य निभाने में ही उनकी और देश सब की भलाई है, जब विकास होगा तो सभी खुशहाल होंगे, वरना अगर किसी की भी गलती से देश की नैया डूबी तो बच कोई नही पाएगा, वे कसम खाते हैं कि आगे से वो अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी से निभाएंगे, उधर दीपक और राहुल की समझ में आ जाता है कि हालात से लड़ने का नाम ही जिंदगी है और हालात से तंग आकर कभी गलत रास्ता नही पकड़ना चाहिए, यही सन्देश हिन्दी फिल्म कमाल धमाल का दर्शकों के लिए काफी लोकप्रिय साबित होगा |

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