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Sumita Dhiman, hindustan ki aawaz

हम मानव ना जाने कितनी सदियों से यह बात अपने दिमाग मे बिठाई बैठे हैं कि हम मानव बाकी दूसरे सभी प्राणियों से सर्वश्रेष्ठ है। पर हमने इस बात को कभी भी जांचा नहीं कि क्या सच में हम सर्वश्रेष्ठ है ? 
अब समय आ गया है कि हम मानव इस बात की अच्छे से और गहराई से पड़ताल करें कि क्या सच में हम सर्वश्रेष्ठ है?
 हमने और जानवरों की अपेक्षा दो टांगों पर चलने की क्षमता को विकसित किया । हमारे पास दुनिया के सब से ज्यादा विकसित दो हाथ है । यह दो हाथ दुनिया में कोई भी ऐसा काम नहीं जो ना कर सकें । हमारे पास दुनिया का सब से ज्यादा उन्नतदिमाग है । यह दिमाग चाँद तक रास्ता बनाने मे सक्षम है । यह दिमाग बड़ी बड़ी मशीने बनाने मे सक्षम है । इस दिमाग ने चिकित्सा, प्रद्योगिकी, खेती बाड़ी, दूर संचार, कला, मनोरंजन, आदि आदि मे अतुल्नीय काम किया है । अभी तक ऐसा करिश्मा और किसी प्राणी ने नहीं किया । इंसान के सिवाय । पर इंसानी श्रेष्ठता को सिद्ध करने के लिए क्या यह खूबियाँ इंसान के लिए पर्याप्त हैं ? 
क्या इन खूबियों के साथ हम और प्राणियों से श्रेष्ठ हो गए ?
 श्रेष्ठता को सिद्ध करने के लिए तुलना या मुकाबला करवाया जाता है । जैसे 40 बच्चों की कक्षा में कौन बच्चा श्रेष्ठ/होशियार है । उनका इम्तिहान ले यह बात सिद्ध हो जाएगी । इसी तरह आज हम इंसानो की और प्राणियों से तुलना कर इस बात को जांचेगे कि क्या हमारी और दूसरे प्राणियों से श्रेष्ठ होने की अवधारणा अवधारणा ही है या हक़ीक़त है । विभिन्न पहलुओं पर इंसानो की दूसरे प्राणियों से तुलना कर हम अपने सर्वश्रेष्ठता की अवधारणा को कसौटी पर परखें गए । और हम पाएँगे कि हम से काम विकसित प्राणी जिन्हे हम जानवर या चौपाया कहते है हम से हर पहलू मे श्रेष्ठ है । और हम तो मात्र खाली पीली, फोकट में सर्वश्रेष्ठ होने का झंडा भर ही लिए घूम रहे हैं । इस तुलनात्मक अध्ययन को हम तीन स्तरों पर करेंगे 

(१) शारीरिक स्तर (२) मानसिक स्तर (३) योन स्तर


(A) शारीरिक स्तर

(1) अनुकूलन : --- 

जो प्राणी/जाति अपने आस पास के वातावरण से अनुकूलन स्थापित नहीं करती वह प्राणी/जाति जीवित नहीं रह पाती. जैसे भालू, सील, पेंगुइन, अंटार्टिका की भयंकर सर्दी (-50 डिग्री सेल्सियस से - 60 डिग्री सेल्सियस) के साथ अनुकूलन स्थापित करते हैं। वह इतनी ठण्ड बर्दाश कर पातें हैं तभी वहां के वातावरण मे जीवित रह पातें है। जैसे सहारा रेगिस्तान मे ऊँठ और वहां पाए जाने वाले दूसरे जानवर, पक्षी, और कीड़े मकौड़े आदि वहां की भयंकर गर्मी (+45 डिग्री सेल्सियस से 50 डिग्री सेल्सियस) से अनुकूलन स्थापित करते हैं। यह जानवर अपने वातावरण की इतनी भयंकर गर्मी सह लेते है। तभी वहां के वातावरण में जीवित रह पातें है। क्या हम पूरी गर्मी और पूरी सर्दी और सर्दियों में होने वाली बरसात और बर्फबारी खुले में अपने दम पर भालू, सील, पेंगुइन, ऊँठ, हाथी, चिड़िया, तोते, गए आदि की तरह सह सकते हैं ? हम गर्म खून वाले प्राणी हैं यह मात्र हमारा वहम है। हमारे हक़ीक़त मे ठन्डे खून वाले प्राणियों जैसे लक्ष्ण है। वातावरण की गर्मी बढ़ने से हमारा शरीर गर्म होने लगता है और वातावरण में सर्दी बढ़ने से हमारा शरीर ठंडा पड़ने लगता है. निर्जीव वस्तुओं और धातुओं की तरह वातावरण की गर्मी सर्दी बढ़ने से हम खतरनाक सीमा तक गर्म या ठन्डे पड सकते हैं। और यह बात इंसान की मौत की भी वजह बन सकती है । जब कि दूसरे प्राणी जैसे गए, बन्दर, घोडा, शेर, चिड़िया, तोता, सूक्षम जीव आदि अपने अपने वातावरण की गर्मी सर्दी बरसात, बर्फ़बारी आदि खुले मे बिना पंखे, शीतलपय, सूती और गर्म कपड़ों, घर और हीटर आदि के बिना बर्दाश कर लेते है। गर्म खून वाले प्राणियों का मतलब ही यही है कि वातावरण के तापमान मे जितना चाहे उतार चढ़ाव हो। इस बात से बेपरवाह गर्म खून वाले प्राणियों के शरीर का तापमान स्थिर रहता है। जैसे हम इंसानो की शरीर का तापमान 98.4 डिग्री सेल्सियस है। चूंकि हम गर्म खून वाले प्राणी है हमारा शरीर अपना 98.4 डिग्री सेल्सियस तापमान बनाए रखेगा। चाहे बाहर का वातावरण का तापमान (- 60 डिग्री सेल्सियस ) हो या (+ 50 डिग्री सेल्सियस) हो। पर ऐसा होता नहीं। अब अनुकूलन की मामले में कौन श्रेष्ठ है ? हम सब से विकसित प्राणी या यह भालू, सील, पेंगुइन, हाथी, घोडा, शेर, चिड़िया, कीड़े मकौड़े, या सूक्षम जीव ?

(2) गुरुत्वाकर्षण बल : ----

 हम सदियों से यह मानते आ रहे है कि   गुरुत्वाकर्षण बल के कारण इंसान उड़   नहीं पाते। क्योंकि यह बल इंसान को   धरती की तरफ खींचता है। पर क्या यह  बल सबसे ज्यादा विकसित इंसानो के लिए ही है ? अदने से कीट पतंगों, चींटियों, मकड़ियों, पक्षियों, छिपकलियों, बैक्टीरिया, वायरस के लिए नहीं? शारीरिक और मानसिक स्तर में इंसानो से तुच्छ प्राणी इस बल से बाहर आ जाते है। पर हम अति विकसित हो कर भी इस बल से बाहर नहीं आ पातें। अब यहाँ गुरुत्वाकर्षण के मामले में कौन श्रेष्ठ हुआ ? महाबली इंसान या यह जानवर ? क्या हमे उड़ने जैसे देवीए गुण की जरुरत नही थी ?

जो प्राणी धरती से अपने पैर उठा लेता है। वह गुरुत्वाकर्षण बल से बाहर होता है। जैसे चींटी, छिपकली दीवार चढ़ते वक़्त, पक्षी उड़ते वक़्त।

( 3) पुनरूत्पादन की क्षमता ( regeneration power ) : ----- 

बहुत से प्राणियों मे पुनरुत्पादन की क्षमता होती है। जैसे छिपकली की पूँछ काट जाए तो वह दुबारा आ जाती है। अगर ऑक्टोपस की कोई भुजा कट जाए तो वह वापिस आ जाती है। अगर शार्क/व्हेल का कोई दाँत टूट जाए तो वह दुबारा आ जाता है। जैसे सींग वाले जानवरों के सींग दुबारा आ जाते है। हाथी के हाथी दाँत दुबारा आ जाते हैं । पर अगर महाबली मानव का कोई अंग कट जाए या क्षतिग्रस्त हो जाए तो वह दुबारा नहीं आता। और बाकी सारी ज़िंदगी अति विकसित मानव अपाहिजों की ज़िंदगी बिताता है। अब पुनरुत्पादन की क्षमता मे कौन श्रेष्ठ ? हम जा मानव ?

(4) प्रतिरक्षात्मक प्रणाली ( immune system ) : ----

 शेर जंगल मे कीचड़ मे पड़े सूअर को ज्यों ही मार कर खा जाता है। बिल्ली गंदे चूहे को ज्यों ही खा जाती है। अजगर सीधे मेमने को ज्यों ही निगल लेता है। सूअर, चूहे और मेमने के शरीर पर कितने बैक्टीरिया और वायरस होंगे। उमके खुरों और नाखूनों मे कितनी गंदगी होगी। पर शेर, बिल्ली और अजगर को कोई संक्रमण और infection नहीं होती। छिपकली मक्खियों और मच्छरों को बड़े चाव से खाती है। छिपकली को मक्खियों और मच्छरों से infection क्यों नहीं होती ? हम इंसान अगर किसी खाने वाली चीज पर मक्खि या मच्छर बैठा हो तो उसे खाना गुनाह मानते है। मक्खियाँ सीधे बैक्टीरिया, वायरस खा जाती हैं। इन्हें infection क्यों नहीं होता ? मच्छर तो रहते ही गंदगी मे है।

हम इंसानो को कितनी छोटी छोटी छोटी बातों पर जुकाम, गर्मी सर्दी, बुखार, दस्त, टी.बी , एड्स, कुष्ट रोग, टाइफाइड, मलेरिया, डेंगू, चेचक, प्लेग, और खसरा आदि जैसे संक्रमित रोग हो जाते हैं। जबकि इन रोगों से लड़ने के लिए इंसानो के पास सबसे अच्छी प्रतिरक्षात्मक प्रणाली है। अब प्रतिरक्षात्मक प्रणाली और immune system के मामले मे कौन श्रेष्ठ है ? शेर, बिल्ली, अजगर, छिपकली, मक्खि, मच्छर या हम इंसान ?

(5) प्राकृतिक जैविक हथियार (natural biological weapon) : ----

 हर जानवर के पास बेहद जरुरी बुनियादी काम जैसे खाना ढूँढ़ना और अपनी जान बचाने के लिए कोई ना कोई प्रकृति की तरफ से जन्मजात प्राकृतिक जैविक हथियार है। सिवाय अति विकसित इंसान को छोड़ कर ! हद है। अब हथियार किसके पास ज्यादा अच्छे होंगे ? भारत, अमेरिका या श्रीलंका और नेपाल के पास ? अति विकसित कौन है ? कुत्ते की पास नुकीले दाँत और सूँघने की जबरदस्त क्षमता है। हाथी की पास सूँड और विशाल शरीर है। गेंडे और घोड़े जैसे जानवर अपने मजबूत शरीर और बल को प्राकृतिक जैविक हथियार की तरह इस्तेमाल करते है। शेर के पास फुर्तीलापन, लचीलापन, तेज़ी, गति, पंजें, और दाँत है। बाज़ के पास अति तेज़ दृष्टि/नजर, पंख और पंजें हैं। हिरणों के पास तेज दौड़ने की क्षमता। शिकार और सुरक्षा के लिए कुछ मछलियाँ बिजली के झटके तक पैदा करती हैं। गाय जैसा शरीफ प्राणी और भेड़ जैसा मूड़ प्राणी भी अपनी रक्षा के लिए सींग रखते हैं। मधुमक्खियों के पास डंक है। साँप के पास जहर है। साही और मच्छलियों के पास काँटे हैं। कुछ छोटे प्राणी झुंड मे रह कर उसे दुश्मन के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल करते है और बड़े झुण्ड की वजह से शिकार करने में भी आसानी रहती है। शिकार बड़ा झुण्ड देख डर जाता है। मकड़ी के पास उसका खुद का ही बनाया जाल होता है। अब प्राकृतिक जैविक हथियारों के मामले मे कौन श्रेष्ट ? कितने ताज्जुब की बात है कि सबसे ज्यादा विकसित इंसान के पास एक भी ऐसा प्राकृतिक जैविक हथियार नहीं जिससे वह अपनी रक्षा कर सके ?! जब कि मानव को लगातार कुत्ते, हाथी, घोड़े, शेर, मधुमक्खियों, साँप, बिच्छू आदि से खतरा है। बड़े बड़े जानवरों की तो बात छोड़ो। इंसान को तो अति सूक्षम जीव जैसे बैक्टीरिया और वायरस से भी जानलेवा खतरा है। प्रकृति में ऐसा कोई जानवर नहीं जिससे महाबली, अति विकसित इंसान को खतरा ना हो। पर बचाव के नाम पर उसके पास कोई प्राकृतिक हथियार नहीं !!!

(6) आवास की समस्या : ----- 

हर वो जानवर जिसे घर की जरुरत है वह अपनी इस जरुरत को पूरा करने में सक्ष्म और आत्मनिर्भर है। जैसे पक्षी, चींटी, मधुमक्खि, ततईऐ, मकड़ी, साँप, चूहे, केंचुए, दीमक, सीप, घोंघे, कछुआ आदि। हम तो बंदरों, गाय, भैंसों की तरह खुले मे भी नहीं रह सकते। क्योंकि हम गर्मी सर्दी, बारिश, बर्फ, आंधी आदि नहीं सह सकते। और हमे रात दिन विभिन्न प्रकार के जानवरों से खतरा है।

क्या हम अपने दम पर, बिना किसी की मदद लिए अपनी आवासीय समस्या का समाधान कर सकते हैं ? जैसे यह पक्षी, मकड़ी, साँप, कछुआ आदि कर लेते है ? अब यहाँ घर की समस्या को हल करने मे कौन सक्ष्म ? हम या दूसरे प्राणी ?

(7) शारीरिक शक्ति : ---- 

घोड़े किसी भी व्यक्ति को अपनी पीठ पर बिठा कितनी देर तक, कितनी तेज गति से, बिना रुके, बिना थके दौड़ सकते है। चींटियाँ अपने शरीर के भार से 50 X गुणा ज्यादा भार उठा सकतीं हैं ? और हम इंसान अपने शरीर के भार से कितने गुणा ज्यादा भार उठा सकतें हैं? चींटी बिना थके, बिना रुके, 24 घंटे लगातार, भयंकर गर्मी मे भी काम कर सकती हैं। हाथी की शक्ति के बारे मे हम सब जानते हैं। यह एक पेड़ तक उखाड़ सकते हैं। अब शारीरिक शक्ति के मामले मे हाथी, घोडा, शेर, गेंड़ा, चींटी या हम ?

(8) दृष्टि शक्ति : --- एक बाज 4000 से 5000 फ़ीट की ऊँचाई से धरती पर चाहे जैसे प्राणी को साफ़ देख लेता है। 4 से 5000 फ़ीट की ऊँचाई से बाज के देखने का दायरा 30 km से भी ज्यादा फैला हो सकता है। आसमान से शिकार को देख लेने पर बाज 100 - 250 km / h की रफ़्तार से धरती की तरफ आता है। बाज गर्मियों में भी बड़े आराम से 4 से 5 हजार फ़ीट की ऊँचाई पर भी उड़ लेता है। उसे कोई तापदाह ( sunburn or sun stroke ), लू, निर्जलीकरण नहीं होता. जब की हम इंसान गर्मी की दिनों मे धरती पर हा हा कार करने लगते है। कई बार तो गर्मी की वजह से इंसान की मौत तक हो जाती। है बाज इतनी ऊँचाई से देख लेते है। इतनी ऊँचाई पर इतनी गर्मी को सेह लेते हैं, और इतनी तेज गति (100 - 250 km / h ) से धरती की तरफ आ सकतें हैं। क्या इन मे से किसी भी पहलू पर हम बाज को मात दे सकतें हैं ? नदारद मख्खियॉँ भी सूक्षम जीव जैसे बैक्टीरिया और वायरस देख लेटिन है। उनके पास compound eyes होतीं हैं। जो उनकी जान बचाने में उनकी सहायता करतीं हैं. बहुत से जानवर अँधेरे मे भी देख लेते हैं। तुच्छ चींटियाँ भी अँधेरे मे देख लेती है। ऊँठ की आँख मे एक विशेष झिल्ली होती है। जो उसकी धुल भरी आंधी में रक्षा करती है। हम मानव सबसे श्रेष्ठ होने का बस वहम भर ही पाली बैठें हैं। जीवन को कायम रखने का गुण एक भी नहीं। हर जानवर से हमें खतरा, हर परिस्थिति जैसे गर्मी, सर्दी, बरसात, बर्फ़बारी, तूफ़ान आदि मे बेबस। हाथी, घोडा, गेंडा, चूहा या सूक्षमदर्शी प्राणी जैसे बैक्टीरिया और वायरस की तो बात छोड़ो इंसान पर तो चीनी और नमक जैसे घटक भी विजय पा लेते हैं। इनसे इंसान को शुगर और बीपी की समस्या हो जाती है और कभी कभी यह पदार्थ इंसान की मौत की भी वजह बन जातें है।

(9)सूँघने की क्षमता : ---- 

हम सब कुत्ते और बिल्ली की सूँघने की क्षमता से वाकिफ हैं। बड़े बड़े देशों की बड़ी बड़ी जाँच एजेंसियाँ और बड़ी बड़ी hi tech आर्मी अपना मामला हल करने की लिए कुत्तों का सहारा लेतीं हैं। कितने शर्म की बात है कि जिस गली के कुत्ते को हम तुच्छ प्राणी मानते है। सबसे ज्यादा विकसित इंसान को उसी की ही सहायता लेनी पड़ती है। चींटी की भी सूँघने की क्षमता इंसान से ज्यादा है। भालू अपने शिकार की गंध 30 km से भी सूँघ लेता है। शार्क और व्हेल समुन्द्र में आधे किलोमीटर के दायरे मे मात्र एक खून की बूँद को सूँघ लेती है। अब देखो कि समुन्द्र मे आधे किलोमीटर दायरे मे पानी की कितनी बूँदें होंगीं और यह मछलियाँ उन अनगिनत पानी की बूंदों मे मात्र अपने काम की एक बूंद सूँघ लेती है !! और क्या इंसान पास पड़े खाने के बंद डिब्बे में कुछ खाने के लिए पड़ा है या नहीं ? सूँघ कर बता सकता है ? अब यहाँ कौन श्रेष्ठ ? कुत्ता, बिल्ली, चींटी, शार्क और व्हेल, ध्रुवीय भालू या हम ?

(10) चमड़ी : --

 इंसानी चमड़ी बाकी सब प्राणियों से ज्यादा विकसित है। क्योंकि इसपास सब से ज्यादा विकसित इलास्टिन (elastin ) और कोल्लेजन (collegen ) है। जो क्रमशः इसे लचीलापन और मजबूती देतें हैं। फिर भी इंसानी चमड़ी पर समय की मार साफ़ दिखाई पड़ती है। क्या कोई कुत्ते, सील बन्दर को देख उसकी उम्र के बारे में बता सकता है ? अंटार्टिक में सील और पेंगुइन की चमड़ी उन्हें वहाँ की भयंकर, जानलेवा ठण्ड (- 60 डिग्री सेल्सियस ) से बचाती है। क्या हमारी चमड़ी हमें इतनी भयंकर ठण्ड से बचा सकती है ? पानी में रहने वाले जानवर 24 घंटा पानी में रहते है। पर उनकी चमड़ी लगातार पानी मे रहने से नहीं गलती और 10 20 मिनट पानी मे काम करने से इंसानो के हाथ कैसे हो जातें है ?

(B) मानसिक स्तर


मानसिक स्तर पर भी हम बुरी तरह से अपाहिज है। वैज्ञानिक भी मानते है कि इंसानी दिमाग अपनी कुल क्षमता का सिर्फ 1 % ही इस्तेमाल कर रहा है। बाकी 99 % क्षमता सुप्त अवस्था मे रहती है। अभी तक ऐसा कोई भी सुपर कंप्यूटर नहीं बना जो इंसानी दिमाग की गति का मुकाबला कर सके। और न ही कोई भी सुपर कंप्यूटर एक समय मे इतने ढेरों काम कर सकता है। जितने ढेरों काम इंसानी दिमाग एक ही समय मे बड़ी आसानी से सम्भाल लेता है। यह ध्यान देने जोग्य बात है कि इंसानी दिमाग अभी अपनी कुल क्षमता का सिर्फ 1 % ही इस्तेमाल कर रहा है।

इंसानी दिमाग VS कंप्यूटर : ---- 
इंसानी दिमाग प्रकृति के, क्रमिक विकास के और भगवन जी के करोड़ों सालों के अनुसंधानों, अनुभवों और मेहनत का नतीजा है । कंप्यूटर को बने अभी कुछ ही दशक हुए है और हम कंप्यूटर की गति, सटीकता, स्मरण शक्ति, गणना, स्कैनिंग क्षमता, पूर्वानुमान, डाटा उत्थान, आंकड़ा प्रकलन और इसके द्वारा किए जाने वाले बाकी के सारे कामों के सही होने पर विश्वास करते है । तो क्या प्रकृति की इंसानी दिमाग को बनाने की करोड़ों सालों की उठा पटक , मेहनत इंसानी कंप्यूटर के आगे कम पड़ गई ? इंसान ने प्रकृति से , भगवान जी भी ज्यादा उत्तम चीज बना डाली !!

महान दार्शनिक अरस्तु जी ने कहा है कि इंसान जब भी कोई चीज, काम और कला सीखता है तो वह नक़ल कर के ही सीखता है । जैसे खाना, पीना, चलना, बोलना, पढ़ना, लिखना और कोई भी काम या कला आदि। ऐसे ही अगर इंसान ने कंप्यूटर बनाया तो वो इंसानी दिमाग की नक़ल थी। जब हम नक़ल करके कोई चीज बनाते है तो उसके तीन तरह के परिणाम हो सकते हैं। मान लो हमने वस्तु "X " की नक़ल कर के कोई चीज बनाई। तो उसके निम्न लिखित परिणाम आएंगे :

(1) हमने वस्तु "X" से ज्यादा अच्छी चीज बनाई ।

(2) हमने वस्तु "X" जैसी ही कोई चीज बनाई ।

(3) हमने वस्तु "X" से घटिया चीज बनाई ।


ब सोचने वाली बात यह है कि इंसानी कंप्यूटर और कैलकुलेटर ज्यादा बढ़िया है या इंसानी दिमाग ? 
कोई भी कंप्यूटर इंसानी दिमाग की जगह नहीं ले सकता। ठीक जैसे कोई भी रोबोट इंसानी शरीर की जगह नहीं ले सकता। इंसानी दिमान कंप्यूटर की अपेक्षा हर पहलू मे कहीं ज्यादा बढ़िया काम करता है।

(1) भूलना : --- 
भूलना वैज्ञानिक इंसानी स्वभाव का एक गुण मानते है। स्मरण शक्ति का फेल होना हार्ट फेल होने जैसा ही है। दिल की ही तरह दिमाग भी एक अंग है। सारी उम्र हाथ पाँव, गुर्दे, फेफड़े, आँखें, दाँत, आँत, जीभ, नाक, कान आदि अंग अपना काम नहीं भूलते। तो अब तक की सब से ज्यादा विकसित मशीन इंसानी दिमाग अपने हिस्से आए "याद" रखने के काम को कैसे भूल सकता है ? हाथी कभी जरुरी बातें नहीं भूलते तो अति विकसित मानव का दिमाग अपने हिस्से आए याद रखने के काम को भूल सकता है ?
(2) नक़ल और समन्वय : ---- सभी जानवर आत्म निर्भर और अपने हर काम को खुद करने मे सक्ष्म है। सिवाय इंसान को छोड़ कर। इंसान अपने छोटे छोटे कामों के लिए भी औरों पर आश्रित रहता है। पक्षी अपना घर आप बनाने मे सक्ष्म है। अभी पक्षियों के पास हमारी तरह अति विकसित हाथ और पाँव नहीं। और न ही वह किसी स्कूल और पाली टेक से ट्रेनिंग लेते है अपना घर/घोंसला बनाने की। और हम इंसान आर्किटेक्ट की डिग्री ले कर भी अपना घर खुद बनाने मे अस्मर्थ है। पक्षियों के शरीर और दिमाग मे पूर्ण समन्वय/तालमेल है। पक्षी के दिमाग को पता है कि ऐसे ऐसे घोंसला बनाना है। और वह अपने शरीर को उचित निर्देश दे शरीर से मन चाहा काम निकलवा लेता है । पता हमारे दिमाग को भी है की ऐसे ऐसे घर बनाना है पर हमारा दिमाग अपने शरीर से मन चाहा काम नहीं ले पाता। क्योंकि हमारे शरीर और दिमाग मे पूर्ण तालमेल नहीं है पक्षियों की तरह। और वहीं पक्षी अपनी आवासीय समस्या का हल हींग लगे न फिटकरी को चरितार्थ करते हुए कर लेते है।

(3) जन्मजात कुशलता : ---- 


मधुमक्खियों मे चार तरह की मदहीमक्खियाँ पाई जातीं है - क्वीन, सोल्जर, स्वीपर और वर्कर । मधुमक्खियों का जीवनकाल कोई 1 - 2 महीने का होता है । चारों तरह की मधुमक्खियों का काम अलग अलग है। जो इन मधुमक्खियों के नाम से ही पता चलता है। चारों तरह की मधुमक्खियां बिना किसी स्कूल, कॉलेज और ट्रेनिंग अपने अपने काम मे जन्मजात ही निपुण होती हैं। जैसे मछली के बच्चे को तैरना नहीं सिखाया जाता। इंसान जन्मजात किस गुण मे निपुण होता है ? अब यहाँ कौन श्रेष्ठ ?

(4) बुद्धिमत्ता : ---


 प्रकृति ने सभी इंसानो को एक सा ही बनाया है । सब के गुर्दे, फेफड़े, आँख, नाक, कान, दाँत, आँत, हाथ पाँव, जीभ, जिगर आदि एक से ही काम करते है। इसीतरह सब इंसानो का दिमाग भी एक सा ही काम करता है। सब इंन्सानो का दिमाग एक से ही जैविक पदार्थ से बना है। जो सब मे एक सी ही क्षमता से कार्य करता है। कोई भी व्यक्ति किसी विषय काम, विषय और कला मे गॉड गिफ्टेड नहीं हो सकता। जैसे हम कहते है कि किसी का दिमाग गणित मे बहुत तेज है। किसी का अर्थशास्त्र मे और किसी का जीवविज्ञान मे । जैसे हमारा पाचन तंत्र सब कुछ पचाता है । फिर वह चाहे सेब केला हो, आलू गोभी हो, बादाम पिस्ता हो, आचार चटनी हो, चाय कॉफी हो, शिकंजवीं शरबत हो, जूस रस हो, मुर्गा बकरा हो। हमारा पाचन तंत्र यह नहीं कह सकता कि मैं सेब तो पचा लूँगा पर केला नही। आलू तो पचा लूँगा पर गोभी नही। पाचन तंत्र सब कुछ पचाता है सब कुछ । इसी तरह हमारा दिमाग भी हर विषय और कला मे निपुण होना चाहिए। जैसे सभी कंप्यूटर एक सी गति और सटीकता से काम करते है। इसीतरह सभी दिमाग भी एक सी गति और सटीकता से कार्य करेंगे। कोई भी बुद्धू नही हो सकता और न ही कोई अति चतुर बीरबल। इंसानी दिमाग अपने हिस्से आए हर काम को कंप्यूटर से ज्यादा सटीकता और तेज गति से करेगा। फिर चाहे वह काम कुछ याद रखने का हो, स्कैनिंग का, गणना का या फिर कोई कला या कोई विषय ही क्यों न हो ।

(5) सुरक्षात्मक पहलु : ---

 हमारा दिमाग हमारी सुरक्षा मे कोई भी भूमिका अदा नही करता। कितने ताज्जुब की बात है। अगर इंसान तरह तरह के खतरों से सुरक्षित रह पाएगा तभी तो वह अपने करिश्माई शरीर और दिमाग का इस्तेमाल कर पाएगा। हमारा दिमाग किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा से, बड़े बड़े जानलेवा रोगों से, जानवरों से और खाने संबंधी किसी भी मामले मे हमारी कोई भी मदद नही करता। चींटी के ही दिमाग की तरह यह गर्म है, ठंडा है, आग है, पानी है बताता है। पर इन सब से इंसान को बचाने मे कोई भूमिका अदा नही करता। जैसे हिरण को खतरा होने पर वह तेज भागता है। पक्षी उड़ जाते है। गिरगिट रंग बदल लेता है। कुछ जानवरों को बारिश, तूफ़ान आदि का पूर्वानुमान हो जाता है। कुछ जानवर infra or ultra sound सुन खतरा भाँप जातें है। कुछ जानवर गंध द्वारा खतरा भाँप जाते है। हमारा दिमाग हमारे बचाव मे किसी भी तरह की भूमिका अदा करता है। अगर इंसान के आगे शेर आ जाए ? भागने की बजाए, शेर का मुकाबला करने की बजाए इंसान वहीं जड़वत्त हो जाता है। वहीं खतरा महसूस होने पर कुछ समुंद्री जीव बिजली तक पैदा करते है । एक nakkra कुत्ता भी भौंक कर (sound power as a natural biological weapon ) सबसे ज्यादा विकसित और महाबली इंसान की ऐसी तैसी कर देता है।

( C) योन स्तर


शारीरिक और मानसिक स्तर की ही तरह योन स्तर मे भी इंसान मे बहुत सी कमियाँ है। कहते है कि क्रमिक विकास हुआ। मतलब कि बंदरों मे धीरे धीरे (क्रमिक) विकास हुआ और वह इंसानो मे विकसित हुए। आखिर विकास का क्या मतलब है ? विकास की क्या परिभाषा है ? विकास का सीधा सा मतलब है कि जिस मे विकास हुआ उस मे अच्छे गुणों का बढ़ना और जमा होते जाना और जो बातें हमारे काम की नही हैं उनका निकास। जैसे क्रमिक विकास के दौरान बंदरों से इंसान मे विकास होते वक़्त पूँछ की कोई जरुरत नही रह गई थी । सो पूँछ का निकास हो गया। और इस क्रमिक विकास के दौरान हाथ पाँव, शरीर और दिमाग मे जो बदलाव हुए। वह फायदे वाले थे। वह गुण इंसानो मे कायम रहे और जमा होते गए। आइए अब देखते है कि इस क्रमिक विकास मे योन स्तर पर क्या बदलाव हुए ? और क्या सच मे इस स्तर पर विकास हुआ ?

(1) वीर्य के हर निकास मे शुक्राणुओं की संख्या : --- वीर्य के हर निकास मे शुक्रणओं की संख्या लाखों मे होती है !! आखिर क्यों ? अंडाणु के निषेचन के लिए सिर्फ एक ही शुक्राणु की जरुरत होती है । तो फिर पुरुष पर हर बार इतनी बड़ी तादाद मे शुक्राणु पैदा करने का बोझ क्यों ? जैसे स्त्री का एक ही अंडाणु उम्दा किस्म का होता है तो फिर पुरुष का एक ही शुक्राणु इतना समर्थवान क्यों नही होता की पुरुष हर निकास के वक़्त एक ही उम्दा शुक्राणु पैदा करे जो अंडाणु को निषेचित करने मे कामजाब रहे ।।अगर अंडाणु एक है । दिल, दिमाग, पेट , जिगर आदि जैसे इतने महत्तवपूर्ण अंग एक एक है तो शुक्राणु एक क्यों नही ? इतनी तादाद मे शुक्राणुओं को संभालना खाला जी घर है क्या ?

बन्दर, वनमानुष भी एक बार मे लाखों शुक्राणु पैदा करते हैं। और पुरुष भी ! हद है ! क्या यह विकास है ? आखिर विकास का क्या तात्पर्य है ? एक गाड़ी जो 20 किलोमीटर /घंटा के हिसाब से चलती है। करोड़ों सालों के विकास, उठा पटक, के बाद भी 20 km / h की ही रफ़्तार से चलेगी या 2000 km / h की रफ़्तार से ?

इंसान बंदरों से ही विकसित हुआ है और बंदरों की ही तरह काम कर रहा है । तो विकास कहाँ हुआ ? क्या हम कह सकते है कि इन करोड़ों सालों के क्रमिक विकास मे पुरुषों मे शुक्राणुओं की संख्या के मामले मे कोई विकास हुआ ?


(2) औरतों मे गर्भ काल का लम्बा समय : --- 

एक औरत बच्चे को पैदा करने मे 9 10 महीनें का समय लगाती है और गाय भैंस भी लगभग इतना ही समय लेती है तो इन करोड़ों सालों के इतने लम्बे क्रमिक विकास मे गर्भकाल के समय मे विकास कहाँ हुआ ? औरत शारीरिक और मानसिक स्तर मे गाए, भैंस से कहीं ज्यादा विकसित है तो फिर योन स्तर पर क्या विकास हुआ ?
 आखिर विकास शब्द का क्या मतलब है ? 
करोड़ों सालों के विकास के बाद परिणाम तो वो ही हैं । ढाक के तीन पात।

विकास के मामले मे हम यहाँ कंप्यूटर का उदाहरण लेते है। सबसे पहले कंप्यूटर एक कमरे जितने बड़े होते थे और गर्मी इतनी छोड़ते थे कि उन्हें ठंडा करना पड़ता था । और अब कंप्यूटर तारों के झंझाल से मुक्त इतने छोटे हो गएँ है कि उन्हें जेब मे रख कहीं भी ले जाऊ ।कंप्यूटर यह सब बदलाव कुछ ही दशकों मे हुए हैं। यह हुआ विकास या जो आदमी और औरत के साथ करोड़ों सालों के क्रमिक विकास मे हुआ उसे विकास कहते है ?

(3) उत्तेजना : --- 

सेक्स के मामले मे इंसान इतना उत्तेजित क्यों हो जाता है ? यह बात मेरे दिमाग से बाहर है । अगर ध्यान सर और गहराई से देखा जाए तो सेक्स का क्या काम है ? सेक्स का काम है सिर्फ एक बच्चा पैदा करना । तो फिर इसके लिए इंसान का पागलपन की हद तक पहुँच जाने का और कपड़ों से बहार हो जाने का क्या फायदा ? दुसरे जानवर भी सेक्स के लिए लड़ मरते हैं और इंसान भी इस मामले मे कितना बेबस हो जाता है ! शारीरिक और मानसिक स्तर पर इतने विकसित हो चुके इंसान के लिए योन स्तर पर ऐसी प्रतिक्रिया शोभनीय है ?  इन करोङों सालों के क्रमिक विकास मे इंसान ने इस पाशविक वृत्ति मे क्या विकास किया ?

(4) प्रसव वेदना : ----

 जिस तन लागे सो तन जाने । अब बच्चे के जन्म का और दर्द का क्या सम्बंद है ? यह बात भी मेरी समझ से बाहर है ।दिल सारा दिन और साड़ी रात खून पंप करता है । क्या इस मे थकावट या किसी और वजह से दर्द होता है ? हम दिन मे कितनी बार नाजुक सी पलकें झपकाते हैं । क्या इन मे दर्द होता है ? सांस लेने मे सहायक माँस पेशियाँ दिन मे कितनी बार सिंगुड़त्ती ती और फैलती है । क्या इन मे दर्द होता है ? तो बच्चे को जन्म देने मे सहायक माँस पेशियों और हिस्से मे ही क्यों दर्द होता है ?

हमारे द्वारा खाया गया खाना मुँह से ले कर मल द्वार तक मीटरों लम्बा सफर तय करता है । खाने को मुँह से ले कर मल द्वार तक जाने मे कोई परेशानी नही तो बच्चे को गर्भाश्य से योनि द्वार तक जाने मे इतनी परेशानी क्यों ? आखिर गर्भश्य से योनि द्वार तक का रास्ता कितना है ? दिल, फेफड़े, गुर्दे, जिगर, आँखें, नाक, कान, आँत, दाँत आदि सारे अंग सारी उम्र आराम से, शांति से काम करते है तो बच्चे को जन्म देने वाले अंग और माँस पेशियाँ क्यों शांति से काम नही कर सकते ?

(5) लम्बाई चौड़ाई और बल : ---

 पुरुष लम्बाई चौड़ाई और बल मे स्त्रियों से बेहतर होते है। आखिर क्यों ? वैज्ञानिक इसका एक बहुत ही बेतुका स्पष्टीकरण देतें है कि क्रमिक विकास के दौरान जब इंसान अभी जंगलों मे ही रह रहा था। तब पुरुषों को परिवार के पालन पोषण के लिए शिकार पर जाना पड़ता था। और औरतें बच्चों सहित घरों मे ठहरती थीं। शिकार पर जाने से पुरुषों को लगातार खतरों का सामना करना पड़ता था। सो इसीलिए पुरुष क्रमिक विकास मे लम्बाई, चौड़ाई और बल मे श्रेष्ठ हो गए ।

हमारे बुद्धिमान वैज्ञानकों से मुझे ऐसे सपष्टीकरण की उम्मीद नही थी । क्या खतरा शिकार पर गए मर्दों को ही था ? पीछे रह गए बच्चों और औरतों को नही ? क्या तब के शेर, हाथी, मधुमक्खि, सांप, बिच्छू, कीड़े मकोड़े आदि इतने समझदार थे कि वो यह सोच लेते थे कि यहाँ कमज़ोर बच्चे और औरतें हैं इन पर हमला नही करना ? जंगल मे लगातार हर जानवर से इंसान को खतरा और घर भी पक्के नही।

अब बात हम महाबली पुरुषों और मर्दों कि करते हैं । क्या पुरुष इस क्रमिक विकास मे इतने बलिष्ठ और समर्थवान विकसित हुए कि वो हर खतरे का सामना कर सके ? क्या औरतों की तरह आदमियों को भी गर्मी, सर्दी, बाढ़ , तूफ़ान, बर्फ, हाथी, घोड़े, गेंडे, साँप, चूहे, कुत्ते, मच्छर, मक्खि आदि से उतना ही खतरा नही ? बड़े बड़े जानवरों, बाढ़, तूफानों की तो बात छोड़ो महाबली पुरुष तो सूक्ष्मदर्शी बैक्टीरिया वायरस से भी अपनी रक्षा नही कर पाता।

तो अब सोचने वाली बात यह है कि क्रमिक विकास ने इंसान मे क्या विकास किया ? इन करोड़ों सालों कि प्रकृति की, भगवन जी की म्हणत का इंसान को क्या फायदा हुआ ? इंसान को कौन से जानवर, और प्राकृतिक अवस्था से खतरा नही ? गर्मी, सर्दी, बारिश, तूफ़ान, बर्फ, हाथी, घोडा, साँप, चूहा, कुत्ता, मधुमक्खि, कीड़े मकौड़े और यहाँ तक कि बैक्टीरिया, वायरस सब इंसान को डराते हैं । ऐसे मे इंसान कि सर्वश्रेष्ठ कहा जा सकता है ? इंसानो मे शारीरिक, मानसिक और योन स्तर पर इतनी सारी कमियाँ है कि अगर यह जानवर और बैक्टीरिया, वायरस बोल पाते तो बता देते कि सर्वश्रेष्ठ कौन है ?

इंसान को प्रकृति ने ही बनाया है । जो सटीकता का ही पर्याय है । प्रकृति जो जाने कब से ब्रह्माण्डों मे फैलीं अनगिनत गैलेक्सियों, ग्रहों, उपग्रहों को बिना कोई गलती किए चला रही है । इन भरी भरी विशाल ग्रहों को आसमान में टिकाए हुए है । यह ग्रह उपग्रह लगातार एक सत्तेक गति से अपने अपने पथों (orbits ) मे घूम रहे हैं । अगर इनकी गति या पथ मे जरा भी बदलाव हुआ तो यह आपस मे टकरा भयंकर प्रलय ला सकतें हैं । पर क्या खरबों सालों मे ऐसा कभी हुआ ? प्रकृति ने तरह तरह के पेड पौधों को बनाया है । क्या कभी ऐसा हुआ कि सेब के पेड़ पर अँगूर और अँगूर की बेल पर सेब उग आएं? नही... तो प्रकृति और भगवन जी भी इंसान बनाने मे कोई गलती नही कर सकतें । इंसानो मे कोई कमी नही है । इंसान शारीरिक , मानसिक और योन स्तर पर पूर्ण रूप से स्वस्थ और सर्वश्रेष्ठ ही है ।

दरअसल इस धरती पर एक युद्ध चल रहा है । यह युद्ध सुपर पावर्स द्वारा रचा गया है । यह सुपर पावर्स किसी भी इंसान के genes को नियंत्रित कर सकतीं हैं । genes और गुणसूत्र का शरीर के साथ वही सम्बन्घ है जो टीवी और रिमोट का । किसी भी इंसान के जीन्स को नियंत्रित कर के उस के शारीरिक, मानसिक और योन स्तर पर कोई भी कमी भरी जा सकती है ।

शारीरिक, मानसिक और योन स्तर पर इतनी सारी कामियों के होने के बावजूद इंसानो के के लिए सब से बड़ी त्रासदी कि बात यह है कि उसे पता ही नही कि वह किसी भयंकर , जानलेवा युद्ध मे फंसा है । इस युद्ध को मैंने नाम दिया है : ----

(1) जैविक परमाणु युद्ध और biotic nuclear war

(2) कोशिका युद्ध और cellular war

(3) ब्रह्मांडीय युद्ध और universal war


लेखिका - सुमिता धीमान 
उपरोक्त विषय पर phd के लिए चुना है
Email: dhiman1975@gmail.com

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  1. Very Nice article

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  2. Achha Likha hai Ji.. Nice one

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  3. Best one topic point covered are very interesting

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  4. मनुष्य प्राणी होने के नाते कितना कमजोर होते जा रहा है यह बात आपने शाबीत की है , अनुकूलन के अभाव का सारा परिणाम है !

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  5. सत्य 100% जी

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  6. Wonderful information keep it up...

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  7. अति सुन्दर

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  8. बहोत खुप

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  9. Sunita
    You are the next Einstein!👌👌👌🕉️

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  10. You are a genius!👌👌👌🕉️

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  11. Really its useful data for today's lifestyle . Appreciating work mam keep it up 🙏

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  12. बहुत सही आर्टिकल लिखा है आपने

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  13. Replies
    1. Very Nice Article

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    2. Amazing and unbelievable
      Great thoughts and thus is
      Warm wishes for research

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    3. आप जो लिखी हो बहुत सुंदर लिखी हो आप के जैसे सब सोचे और समझें 100%

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  14. Kya BAAT batai ha Aapne waah
    Good knowledge

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    1. jo aap ne likha hai Ji very nice ji

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  15. Bahut hi umada logo me jagruti lane k liye

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  16. DECENT APPROACH

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  17. विषय अच्छी हैं।
    सराहनीय प्रयास।

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  18. Very nice 👍 interesting article

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  19. Really appreciate ,

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  20. Very logically and beautifully described and explained... Congratulations Sumita

    Dr Shri Niwash Jangir

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