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जिदंगी जिंदादिली का नाम हैं। अपने लिए तो सब जीते है, जो दूसरों के लिए जीये उसे जीवन कहते है। जब इंसान का जन्म होता है तब जान रहती है, पर नाम नहीं। मरण होता है तो नाम रहता है पर जान नहीं। जान और नाम की यात्रा को जीवन कहते है। जो ना तो किसी के अभाव में हो, ना प्रभाव हो, हो तो सिर्फ और सिर्फ अपने स्वभाव में हो। सही मायनों में यही जीवन संघर्श है। सामना करने वाला कर्मवीर कहलाता है। ऐसी षख्सियत के विलक्षण दर्षन दुलर्भ होते है, मामले में हम सौभाग्यषाली है कि हमें महामना, पूरन कुमार आडवानी जैसे कीर्ति स्तंभ का आवरण मिला। लालच से विद्याता भी अछूते नहीं रहे और चतुर-चतुरे और ज्ञानी श्री आडवानी को अपनी अगुवानी में 19 जनवरी को असमयक बुला लिया। याद में रोते-बिल्कते बालाघाट जिला ने नम आंखों से अपने पैरोपकार  को 20 जनवरी की दरम्यिानी षाम पतित पावन वैनगंगा के सुरम्य तट भावांजली अर्पित की।
स्मृति षेश! पल्कों की छांव में साहरा देने वाले पूरनकुमार आडवानी आज जन-जन की वाणी बन गए है। वे आज इस दुनिया से बिदा होने के बाद भी हमारे अंतस अजर अमर है। ये व्यक्ति नहीं अपितु संस्था थे, विचार नहीं बल्कि विचारधारा थे। अभिभूत इनकी कहीं एक-एक अक्षर वाणी नीलगगन में चिरायु है। जनसेवा का इतना जूनून सवार था कि खूद का परिवार ही नहीं बसा पाए। आजीवन अविवाहित रहकर अपना सर्वस्य दीन-दुखियों और अपनी मां यानि भारतीय जनता पार्टी को न्योछावर कर दिया। जब देहत्यागा तो हजारों का हुजूम चित्कार करते थका नहीं। दुनिया का दस्तुर है कि, जो आएगा वह जाएगा जरूर किन्तु जिसके जाने से स्थान खाली रहकर कदापि पूर्ण नहीं हो पाता वह मिषाल बन जाते है।
अभिभूत, बेमिसाल कृत्तिव व व्यक्तिव के धनि जेठामल के सुपुत्र पूरनकुमार आडवानी का जन्म अखण्ड भारत के शहदाद कोर्ट जिला, लालकाना सिंघ प्रांत में 15 अगस्त 1940 को सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। देष विभाजन की त्रासदी में उनका परिवार अब के छत्तीसगढ प्रांत में मौजूद कांकेर में आकर बस गया। यहीं आडवानी जी षिक्षा-दिक्षा अपने 9 भाईयों व 2 बहनों के साथ संपन्न हुई। पश्चात् आपने रायपुर के सांईस काॅलेज से बीएससी के उपरांत एमएससी की उपाधि प्रथम श्रेणी में गोल्ड मेडल अर्जित कर प्राप्त की। समकालीन शोहरत और दौलत के अनेकों अवसरों को धता बताकर अपनी बहुयामी प्रतिभा को षिक्षा का अलख जगाने में झोंक दिया। कांरवा में ग्रामीण अंचलों की हट्टा, लामता और खैरलांजी के शासकीय हायर सेकण्डरी स्कूलों में व्याख्यता के रूप अपनी अदम्य सेवाएं दी। प्रतिफलन उनके पढाये विद्यार्थी नव क्षतिज पर आसिन है। दौरान आपके द्वारा षिक्षक संघ गठन का रौंपा गया पौधा आज वटवृक्ष के रूप लहलहा रहा है।
अंत्योदय से सर्वोदय के धुनी श्री आडवानी का मन यहां कहां थमने वाला था, वह तो भारत मां के परम् वैभव के लिए अवतरित हुए थे। अनुरिती में शासकीय सेवा को अलविदा कहकर राष्ट्रीय सेवक संघ के सानिध्य में सारा जीवन राष्ट्र निर्माण के लिए समर्पित कर दिया। बेला में भारतीय मजदूर संघ की जिला बालाघाट में स्थापना करके भरवेली, तिरोडी, उकवा, कामठी, रमरमा, चिखला और मलाखण्ड मांइसोंदि क्षेत्रों में श्रमषक्ति को संगठित करके उनके अधिकारों और न्याय की लडाई लडी। उद्घृत क्षमता से प्रभावित भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक दंत्तोपन थेंगडी व जुमुडे जी ने आपकों कोयला खदान संघ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के साथ राज्य सभा में भेजने का प्रस्ताव रखा जिसे आपने बालाघाट जिले की सेवा के आगे नकार दिया। आपातकाल के दौर में भूमिगत रहते हुए एक सिपाही की भांति मीसाबंदियों के परिवार की हरदम सेवा की।
आगे बढकर, राजनीति में पद नहीं सेवा के लिए आए श्री आडवानी ने सीमित संसाधनों से बालाघाट जिले के चप्पे-चप्पे का दौरा कर जनसंघ का बिगुल बजाया। बाद में जब पार्टी का नाम लेने में लोगों को भय लगता था, तब दो बार भारतीय जनता पार्टी के जिलाघ्यक्ष की बखूबी जवाबदारी निभाकर पितृपुरूष कहलाए। यह निर्विवाद कटु सत्य है कि आप चलती-फिरती कार्यषाला के अलावे एक मानवषिल्पी थे। बानगी सम्यक् अभेद्य किला विधानसभा क्षेत्र परसवाडा से तीन बार चुनाव लडकर पार्टी का जनाधार बढाया, परणिती 2008 का चुनाव परिणाम जगजाहिर है। इतना ही नहीं बालाघाट जिले के साथ-साथ महाकौषल प्रांत में भी भाजपा की जीत के सूत्रधार रहे। दृश्टिगत् सौंपी गई प्रदेष भाजपा चुनाव अभियान प्रभारी की जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निर्वहन की। विडंबना कहें या दुर्भाग्य आप जातिगत राजनीति के षिकार बने अन्यथा आम जनमानस की यह ख्वाहिष अवष्य पूरी हो जाती कि आडवानी जैसा कोई नेता नहीं। खैर! इस कमी को आपने अपनी कर्मठता, लग्न और समर्पण से पूरा कर दिया। ऐसे श्रमसाधक, षुचिता के पक्षधर और राजनीतिक पुरोधा को मध्यप्रदेष षासन ने दो बार राज्य योजना आयोग का सदस्य नियुक्ति किया। निभाते हुए जीवन के अंतिम पथ पर गरीब, मजदूर-किसान और नवजवान की आवाज बनकर दैदीप्यमान हो गए।

                         








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