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इसी दिन पृथ्वीराज चैहान की हत्या के चलते मनाते हैं शोक

मीरजापुर,हिन्दुस्तान की आवाज, संतोष देव गिरी


मीरजापुर। कहा जाता है कि भगवान राम लंका विजय के बाद जिस दिन वापस अयोध्या लौटे नगर वासियों की खुशी का ठिकाना नहीं था। पूरे नगर को रोशन कर खुशियों के दीप जलाए गए थे। इस खुशी को आज भी दीपावली के रूप में मनाया जाता है। जनपद में दर्जन भर ऐसे गांव हैं जहां दिवाली के दिन खुशी नहीं बल्कि शोक मनाया जाता है। इन गांवों में चैहान वंश के राजपूतों की संख्या ज्यादा है। इनके दिवाली न मनाने के पीछे एक बड़ी वजह है। इसी वजह के चलते वह आराध्य भगवान राम से जुड़े इस त्योहार के दिन खुशी के बजाय शोक मनाते हैं। यह कहानी जिले के मड़िहान और राजगढ़ इलाके के कुछ गांवों की है। इन गांवों में क्षत्रिय चैहान वंश के राजपूतों का निवास है। दोनों क्षेत्रों के विशुनपुरा, लालपुर, मटियारी, धुरकर, सरसौ और सत्तेसगढ़ सहित दर्जन भर गांवों के क्षत्रिय चैहान वंश के राजपूत परिवार के लोग दिवाली के दिन को काले दिवस के रूप में याद करते हैं। इस दिन कोई न तो नए कपड़े पहनता है और न ही घरों में या बाहर दिये रोशन किये जाते हैं। फुलझड़ियां और पटाखे तो दूर की बात है। दरअसल इन गांवों के राजपूत खुद को पृथ्वीराज चैहान का वंशज बताते हैं और उन्हीं की याद में दिवाली नहीं मनाते। उनके मुताबिक दिल्ली की गद्दी पर बैठे अंतिम हिन्दू राजा का गौरव पृथ्वीराज चैहान को हासिल है। दिवाली के दिन ही मुहम्मद गौरी ने दिल्ली फतह की और पृथ्वीराज चैहन की आंख फोड़कर छल से उनकी हत्या कर दी, तभी से चैहान वंश के लोग इस दिन को शोक के रूप में मनाते हैं। जिले के कई गांवों में ऐसे हजारों राजपूत परिवार रहते हैं जो खुद को चैहान वंश का कहते हैं। दिवाली के दिन क्या करते हैं दिवाली को लेकर इन गांवों में कोई तैयारी नहीं की जाती, न तो घरों में दीप जलाए जाते हैं और न ही पटाखे फोड़े जाते हैं। घरों और गांव में शोक का माहौल होता है। दिवाली के दिन समाज के सभी लोग गांव में एक जगह इकट्ठा होते हैं और शोक मनाते हैं। गांव के रहने वाले गोरखनाथ सिंह, महेश सिंह, पूर्व प्रधान मीना सिंह चैहान व महेश सिंह आदि लोगों के मुताबिक इलाके में चैहन क्षत्रिय वंश के लोगों की तादाद बहुत अधिक है। स्थानीय लोगों के आंकड़ों पर विश्वास करें तो यह संख्या 30 हजार के आस-पास है।

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