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मीरजापुर का एक ऐसा कांलेज जहां पढ़ने आते हैं सिर्फ तीन छात्र

मीरजापुर,हिन्दुस्तान की आवाज, संतोष देव गिरी

मीरजापुर। जिले का इकलौता सांस्कृतिक महाविद्यालय बदहालियों के आसू रो रहा है। जहां 203 छात्रों को पढ़ाने के लिए सिर्फ एक अध्यापक है। वहीं यहां पढ़ाई करने के लिए सिर्फ तीन छात्र आते हैं। देवो की भाषा कहीं जाने वाली संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति की पहचान है। देश के बड़े प्रसिद्ध ऋषि मुनियों ने संस्कृति में ही बड़े-बड़े महाकाव्य की रचना कर भारतीय समाज को गौरवमयी स्थान दिलाया। मगर आज इसी संस्कृति भाषा के महाविद्यालय अपनी पहचान खोते जा रहा हैं। उक्त विद्यालय समाप्त होने के कगार पर है। ऐसे ही जिले में स्थित मात्र एक संस्कृति महाविद्यालय हैं इस महाविद्यालय में संस्कृति की पढ़ाई की जाती है। यहां से छात्रों को संस्कृति में ग्रेज्यूएशन और पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री दी जाती है। इस संयुक्त संस्कृति विद्यालय बनाने के लिए चार विद्यालय सनातन, भैरव, शंकर, ब्रह्मा को मिला कर संस्कृति का महाविद्यालय बनाया गया है। बतादें कि इससे पहले चारो विद्यालय अलग-अलग चलते थे। मगर इन्हें अब एक ही बिल्डिंग में लाकर संस्कृति की एक बड़े महाविद्यालय की नींव रखी गई है। कक्षा 8 से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक चलने वाले इस महाविद्यालय में कुल 203 छात्र पढ़ते है। पिछले कई सरकारो में उपेक्षा का शिकार रहे इस महाविद्यालय की तस्बीरे भाजपा की योगी सरकार में भी नही बदली। हालत यह है कि कक्षा 8 से लेकर पोस्ट ग्रेजुएट तक के छात्रो को पढ़ाने के लिए एक मात्र अध्यापक की नियुक्ति की गई है, जो इन छात्रो को पढ़ाने के अलावा इस महाविद्यालय का प्रधानाचार्य भी है। महाविद्यालय के प्रशासनिक दायित्व निभाने की जिम्मेदारियां भी इन्ही के कंधों पर है। महाविद्यालय की हालत इतनी खराब है कि इक्का दुक्का छात्रो को छोड़ कर कोई भी छात्र यहां पढ़ने नही आता। छात्र महाविद्यालय में एडमिशन करा कर सिर्फ परीक्षा के समय ही आते है। संस्कृत की डिग्री लेकर चले जाते है। समाचार पत्र के पत्रकार’ कि टीम जब महाविद्यालय में पहुची तो वहां सिर्फ तीन छात्र ही पढ़ाई करते हुए मिले। महाविद्यालय की दुर्व्यवस्था पर खुद यहां के प्रधानाचार्य नरेंद्र पांडेय भी दुःखी है। उनके अनुसार 10 वर्ष पहले तक यह महाविद्यालय अच्छा चल रहा था। मगर, धीरे-धीरे शिक्षकों की कमी के कारण विद्यालय की पढ़ाई का माहौल खराब होता गया। आज महाविद्यालय सिर्फ खानापूर्ति के लिए चलाया जा रहा है। नरेंद्र पांडे ने खुद कई बार अधिकारियों से शिक्षकों की नियुक्ति करने के लिए पत्र भी लिखा मगर अभी तक किसी पत्र का जबाब नही आया। महाविद्यालय को संस्कृति भाषा को बढ़ावा देने और संस्कृति भाषा को जन- जन में लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से दशकों पहले बना यह महाविद्यालय अब सिर्फ विद्वानों की डिग्री बाटने का केंद्र भर रह गया है। भारतीय संस्कृति के इस महाविद्यालय आज पूरी तरह से खत्म होने के कगार पर है।

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