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-आइये जाने मां दुर्गा के नौ स्वरूप और केसे करें उनकी साधना


मीरजापुर,हिन्दुस्तान की आवाज, संतोष देव गिरी

मीरजापुर। नवरात्र संस्कृत शब्द है, नवरात्रि एक हिंदू पर्व है, जिसका अर्थ होता है नौ रातें। यह पर्व साल में दो बार आता है। एक शारदीय नवरात्रि, दूसरा है चैत्रीय नवरात्रि। नवरात्रि के नौ रातों में तीन हिंदू देवियों-पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ में स्वरूपों पूजा होती है, जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। नवदुर्गा और दस महाविधाओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविधाएं अनंत सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा के बिना पंगु हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा-प्रसाद के लिए लालायित रहते हैं। चैमासे में जो कार्य स्थगित किए गए होते हैं, उनके आरंभ के लिए साधन इसी दिन से जुटाए जाते हैं। क्षत्रियों का यह बहुत बड़ा पर्व है। इस दिन ब्राह्मण सरस्वती-पूजन तथा क्षत्रिय शस्त्र-पूजन आरंभ करते हैं। विजयादशमी या दशहरा एक राष्ट्रीय पर्व है। अर्थात आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल तारा उदय होने के समय विजयकाल रहता है।

कैसे बनी मां पार्वती नवदुर्गा 

मीरजापुर। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दुर्गा अपने पूर्व जन्म में प्रजापति रक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं, जब दुर्गा का नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में सभी देवताओं को भाग लेने हेतु आमंत्रण भेजा, किन्तु भगवान शंकर को आमंत्रण नहीं भेजा। सती के अपने पिता का यज्ञ देखने और वहां जाकर परिवार के सदस्यों से मिलने का आग्रह करते देख भगवान शंकर ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। सती ने पिता के घर पहुंच कर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बातचीत नहीं कर रहा है। उन्होंने देखा कि वहां भगवान शंकर के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। पिता दक्ष ने भी भगवान के प्रति अपमानजनक वचन कहे। यह सब देख कर सती का मन ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। वह अपने पिता का अपमान न सह सकीं और उन्होंने अपने आपको यज्ञ में जला कर भस्म कर लिया। अगले जन्म में सती ने नव दुर्गा का रूप धारण कर जन्म लिया, जब देव और दानव युद्ध में देवतागण परास्त हो गये तो उन्होंने आदि शक्ति का आवाहन किया और एक-एक करके उपरोक्त नौ दुर्गाओं ने युद्ध भूमि में उतरकर अपनी रणनीति से धरती और स्वर्ग लोक में छाए हुए दानवों का संहार किया। इनकी इस अपार शक्तिको स्थायी रूप देने के लिए देवताओं ने धरती पर चैत्र और आश्विन मास में नवरात्रों में इन्हीं देवियों की पूजा-अर्चना करने का प्रावधान किया। वैदिक युग की यही परम्परा आज भी बरकरार है। साल में रबी और खरीफ की फसलें कट जाने के बाद अन्न का पहला भोग नवरात्रों में इन्हीं देवियों के नाम से अर्पित किया जाता है। आदिशक्तिदुर्गा के इन नौ स्वरूपों को प्रतिपदा से लेकर नवमी तक देवी के मण्डपों में क्रमवार पूजा जाता है। यह सभी कार्यों को सिद्ध करता है। आश्विन शुक्ल दशमी पूर्वविद्धा निषिद्ध, परविद्धा शुद्ध और श्रवण नक्षत्रयुक्त सूर्योदयव्यापिनी सर्वश्रेष्ठ होती है। अपराह्न काल, श्रवण नक्षत्र तथा दशमी का प्रारंभ विजय यात्रा का मुहूर्त माना गया है। दुर्गा-विसर्जन, अपराजिता पूजन, विजय-प्रयाग, शमी पूजन तथा नवरात्र-पारण इस पर्व के महान कर्म हैं। इस दिन संध्या के समय नीलकंठ पक्षी का दर्शन शुभ माना जाता है। क्षत्रिय व राजपूतों इस दिन प्रातरू स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर संकल्प मंत्र लेते हैं। इसके पश्चात देवताओं, गुरुजन, अस्त्र-शस्त्र, अश्व आदि के यथाविधि पूजन की परंपरा है।

........यहां रावण का दहन नहीं सरेआम किया जाता है सिर कलम 

-मीरजापुर के हलिया ब्लाक में एक ऐसी जगह जहां रावण के पुतले का दहन नहीं बल्कि किया जाता है सरेआम सिर कलम

मीरजापुर,हिन्दुस्तान की आवाज, संतोष देव गिरी

मीरजापुर। देश में हर जगह विजयदशमी के दिन रामलीलाओं में राम और रावण के युद्ध में रावण के पुतले का दहन होता है। मगर जनपद के हलिया में एक स्थान ऐसा भी है, जहां दशहरा पर्व पर रावण के पुतला दहन के बजाय सरेआम उसके सिर को कलम किया जाता है। हालिया ब्लांक के ड्रमंडगंज बाजार में आयोजित रामलीला का मंचन किया जाता है। दशमी के दिन मैदान में आयोजित विशाल मेले में राम और रामण का युद्ध चलता है। भीषण युद्ध के दौरान राम अपने बाणों से रावण का सिर काट के युद्ध पर विजय हासिल करते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग के पास स्थित इस मैदान पर सुबह से रात्रि नौ बजे तक मेला लगता है। वहीं रामलीला कमेटी के अनुसार चूंकि राम ने रावण का दसों सिर काटा था। इसलिए ड्रमंडगंज मे दशहरा पर्व पर रावण का सिर कलम करने की परंपरा चली आ रही है। रावण का सिर कलम हो जाने के बाद रामलीला कमेटी के सदस्य पुतले को ले आकर रामलीला भवन मे अगले वर्ष के लिए सुरक्षित रख देते हैं। दरसल, इसके लिए एक तर्क यह भी दिया जाता है कि, रावण के दश सिर वाले पुतले को जलाना संभव नहीं है। इसलिए यह तरीका इस्तेमाल होता है। फिलहाल ड्रमडगंज रामलीला कमेटी द्वारा दशहरा मैदान में रावण वध का कार्यक्रम पिछले कई वर्षों से होता चला आ रहा। यहां पर आस पास के ग्रामीणों ने मेला देखने आती है। इसी भारी भीड़ के बीच रावण का बध सिर कलम करके किया जाता है। लगभग बाइस फीट ऊंचे रावण के लोहे के पुतले को रामलीला कमेटी और स्थानीय कारीगर मिल कर अपने हाथों से तैयार करते हैं। लोगों का कहना है कि ड्रमंडगंज की तरह का रावण का पुतला कहीं देखने को नहीं मिलता है। युद्ध के दौरान जैसे ही राम के बाणों से रावण का सिर कलम हो जाता है। इसके बाद उसके सिर का भाग धड़ मे पीछे की ओर लटक जाते हैं। बता दे कि ड्रमंडगंज की रामलीला प्रसिद्ध है, यहां राम और रावण युद्ध को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार दशकों से यहां पर आयोजित रामलीला में रावण के पुतला दहन की जगह रावण के सिर कलम करने की परंपरा चली आ रही है।
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