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-दलालों और बंद लिफाफे के आगे असहाय हो जाता है कायदा कानून
-भ्रष्टाचार का केन्द्र बना हुआ है केराकत तहसील
-अनहोनी को चुटकी बजाते ही किया जाता है होनी में


जौनपुर,हिन्दुस्तान की आवाज,संतोष देव गिरी 

जौनपुर। तसीलदार केराकत की पिछले दिनों हुई पिटाई ने केराकत तहसील की न्यायिक व्यवस्था को लेकर तमाम सवाल खड़े कर दिए है। वहीं लोगों को इस बात पर भी सोचना पड़ जा रहा है कि आखिरकार नौकरशाह पर हमले की हिकामत भला कोई क्यों, वह भी अनायास करेगा? दूसरी बात यह कि इस प्रकार की घटना का होना गंभीर है तो उससे भी कहीं ज्यादा यह गंभीर है कि घटना हुई क्यों। बेशक घटना निंदनीय होने के साथ कहीं से भी उचित नहीं कही जायेगी, लेकिन सोचने की बात है कि इसके पीछे वजह क्या हो सकती है, आखिर इस प्रकार के कृत्य को करने का साहस क्यों किया गया। कहना गलत नहीं होगा कि केराकत तहसील भ्रष्टाचार का केन्द्र बन चुका है। पिछले कई वर्षो से कई ऐसे मामले है जो तहसील के अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाही व मनमानी के कारण लटका रखे गए है। दलालों का वर्चस्व पूरी तरह से   यहां साफ दिखलाई देता है। बात करे वरासत, नामांतरण, खतौनी आदि में  नाम दर्ज कराने आदि का तो यहां सबकुछ बंद लिफाफे और दलालों के इशारे पर सहजता से सम्पन्न कराया जा सकता है। कायदे-कानून का तो दूर-दूर तक पता नहीं चलता। पिछले कई वर्षो से कुछ ऐसे ही मामले अपने निस्तारण की बाट जो रहे है। लम्बित मामलों के त्वरित निस्तारण को कौन कहे उन्हें लटका का फाईलों को धूल फांकने के लिए छोड़ दिया गया है। ऐसे में सुदूर ग्रामीण अंचलों से चलकर अपने वाद के निस्तारण की उम्मीद पाल आने वाले फरियादियों को जैसे ही यह पता चलता है कि साहेबान तो अपने कार्यायल में बैठे ही नहीं है या अगली तारिख तय हो गई तो वह बुझे मन से निस्तारण की उम्मीदों को अपने जेहन में ही दबाये वापस हो जाता है। समझा जा सकता है उसकी परेशानियों को तो कहीं न कहीं से साहेबान द्वारा उत्पन्न की गई व्यवस्था में लापरवाही और मनमानी पन की बूं भी आने लगती है। कुछ ऐसी ही बूं पिछले दिनों घटित घटना में भी आ रही है जिसकी यदि निष्पक्ष ढंग से जांच कराई जायेगी तो खुद ब खुद सच्चाई सामने होने के साथ कईयों की कलई भी खुल जायेगी। सूत्रों की माने तो केराकत तहसीलदार की पिटाई का मामला भी कुछ ऐसा ही होना बताया जा रहा है। चर्चा है कि स्टे शुदा एवं कोर्ट में विचाराधीन एक भूमि का विपक्षी के पक्ष में तारीख से पहले तहसीलदार न्यायिक के यहां से फाईल मंगाकर एक ही दिन में नामांतरण आदेश व खतौनी में नामदर्ज करा दिया गया। मजे कि बात है कि उक्त मामले की 17 जून को सुनवाई के लिए तारिख मुर्कर की गई थी, बावजूद इसके 3 जून को फाईल मंगाकर नियमों को ताक पर रख विपक्षी के पक्ष में आदेश कर दिया गया। बताया जाता है कि इस बारे में पूछे जाने पर तहसीलदार इधर-उधर की बाते करने के साथ भड़क उड़े थे उल्टे फरियादी को ही फंसाने की धमकी देने लगे थे, बस इसी बात को लेकर मामला बिगड़ उठा और जो हुआ वह सभी के सामने है। आश्चर्य की बात है कि पुलिस और प्रशासन ने आनन-फानन में तहसीलदार के उपर हुए हमले में तुरंत केराकत कोतवाली में विभिन्न धाराओं में मुकदमा तो दर्ज कर ही लिया और आरोपित किए गए लोगों की गिरफ्तारी के लिए उनके घरो पर भी धावा बोल दिया। वह न मिले तो परिवार की महिलाओं से ही दुव्र्यवहार करते हुए बच्चों को थाने उठा लाया गया। यह कहां का न्याय है और कहां तक इसे उचित कहा जा सकता है। जबकि होना यह भी चाहिए था कि इस मामले की निष्पक्ष ढंग से जांच कराते हुए मामले की तह तक जाना चाहिए था कि आखिरकार ऐसा क्यों और किस लिए किया गया? लेकिन नहीं ऐसा न कर प्रशासन भी तहसीलदार के कृत्यों पर मानों पुरी तरह से पर्दा डालने में जुटा हुआ है। गौरतलब हो कि तहसीलदार केराकत पीके राय इसके पूर्व जिले के ही बदलापुर तहसीलदार रहे है जहां इनके उपर कई आरोप लगे है। वहां भी इनकी कारगुजारियों से लोगों तस्त्र रहे है ऐसा सूत्र बताते है। दुसरी ओर इस मामले को लेकर कुछ संगठनों ने मुख्यमंत्री से मिलकर तहसीलदार केराकत पीके राय का सम्पूर्ण काला चिट्ठा और केराकत तहसील में व्याप्त भ्रष्टाचार, राजस्व मामलों में होने वाली हेराफेरी, दलालों द्वारा कराये जाने वालें कार्यो की जानकारी से अवगत कराने के साथ इस मामले की निष्पक्ष ढंग से जांच कराने का मन बनाया है।

                

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