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लखीमपुर खीरी -- मोहम्मद रिजवान


आइऐ आपको मोहमदी के बस अडडे के हालात से रूबरू कराता हू मुझे तो किसी शायर का एक शेर याद आ गया
एक दिया अधेरे मे अब कोई जला जाऐताकि हर छुपा चेहरा रोशनी मे आ जाऐ
मुझे इसलिऐ इस शेर को लिखना पडा कयूकि इस बस अडडे को अधेरे मे देखकर अगर विभाग यहा उजाला कर देता तो शायद ऐसे चेहरे रोशनी मे आ जाते जो इस जगह रात के अधेरे मे अपने जुर्म को अनजाम देते है पता नही उस जुर्म को छिपाने के लिऐ या जुर्म को फलने फूलने या कोई और मजबूरी रही हो वो मुझे तो पता नही आपको अगर जानकारी हो तो चलिऐ आईऐ आपको एक खूबसूरत तस्वीर मोहमदी बस अडडे की दिखाना चाहता हू आप शायद पहचान जरूर लेगे
ये तस्वीरें किसी जंगल की नहीं हैं, और ना ही किसी सूनसान इलाके की, ये मोहम्मदी है भइया, अपनी मोहम्मदी, अच्छा सुनिए...... आपने दुधवा इंटर नेशनल पार्क का नाम तो सुना ही होगा, जी....जी...लखीमपुर खीरी वाला...जी साब वो ही, चलिए अब आपको उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े इसी ज़िले लखीमपुर खीरी की सबसे बड़ी तहसील मोहम्मदी जहा आजकल जिला बनाओ मुहिम मे सभी जनता से लेकर विधायक तक लगे है आपको लेकर चलते हैं..... चलिए उतरिए, आ गया मोहम्मदी का बस अड्डा, टार्च हो तो जला लीजिए, वर्ना चंदा मामा ज़िन्दाबाद, सुना है यहां सब कुछ है, नगर पालिका, चैयरमैन, अधिषासी अधिकारी, एस डी एम सब, लेकिन हैं कहां, सब यहीं हैं, बस इतना ही सुना हमने, लेकिन कहा जाता है हुकूमत अंधेरों की चलती है यहां, रोडवेज़ की जिन्दगी चांद, सितारों के रहमोकरम पर है, वैसे आती जाती गाड़ियां भी कुछ देर को रोडवेज़ की ज़िन्दगी रौशन कर जाती हैं, मेरे फोन के कैमरे ने अपनी पूरी आंखें खोल कर ये तस्वीर ली हैं, जिसे देख कर शायर बसों के अन्धे दरकते घर की तकलीफ़ लिख सकता है साहित्यकार लिख सकता है किताब में इस बेनूर इमारत की तकलीफ़ की तफ़सील.... तो मदारी अपने नाटक से एक साफ़ तस्वीर खींच सकता है....सड़क के किनारे खड़े इन मुसाफ़िरों के दर्द की.....महिलाओं की हिफ़ाज़त की कसम खाने वालों तुम्हें कसम है इस बूढ़े बस घर की, क़सम है इस काली रात की, कि निकलो अपने पक्के मकानो से
ओर देखो ये तस्वीर की महिलाएं अपने बच्चों के साथ अंधेरों की निगरानी में बस का इंतज़ार कर रही हैं, किस कलाम से लिखू की विकास को किस रास्ते पर दोड़ाया जा रहा है .... ये अलग बात है, कि मेरी मोहम्मदी

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