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सुमित मलिक ने लालची क्षत्रिय को फटकारा



सेवानिवृत्त होते ही 15 दिन में मुख्य सचिव के लिए आरक्षित अ-10 शासकीय बंगला रिक्त करने के सरकारी निर्णय को नजरअंदाज कर स्वाधीन क्षत्रिय ने की हुई मनमानी पर शिकंजा कसने का स्वयं मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को करना पड़ा था। जबकि इस पूरे मामले में क्षत्रिय को शर्मिंदा होने पड़ा था क्योंकि सुमित मलिक ने स्पष्ट किया था कि मुख्य सेवा गारंटी आयुक्त यह पद मुख्य सूचना आयुक्त के समान हैं और सुप्रीम कोर्ट के जज के समान दर्जा होने का क्षत्रिय का दावा साफ गलत होने के पत्र पर फटकार लगाई और मुख्यमंत्री के आदेश से और 1 महिना बंगले में रहने का सपना चूर हुआ। बंगला रिक्त करने को लेकर स्वाधीन क्षत्रिय और सुमित मलिक में हुआ विवाद की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को दी गई जानकारी से सामने आई हैं।


आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने सर्वप्रथम स्वाधीन क्षत्रिय का लालच सामने लाते हुए सरकारी जमिन पर बनी सहूलियत वाली बिल्डिंग में 2 फ्लैट का 20 लाख रुपए का किराया क्षत्रिय कमाने की जानकारी को उजागर किया। सामान्य प्रशासन विभाग के अवर सचिव शिवदास धुळे ने गलगली को दिए दस्तावेज में क्षत्रिय का लालच सामने आया हैं। सेवानिवृत्ती के बाद मुख्य सेवा गारंटी आयुक्त पद पर नियुक्त हुए क्षत्रिय को सुरुची में फ्लैट वितरित किया गया लेकिन उन्हें सारंग में 2 फ्लैट की आस थी। सारंग इस बिल्डिंग में सभी जज रहने से इसके पूर्व जिन 2 मंत्रियों को फ्लैट दिए गए थे उनकी कालावधि खत्म होने के बाद इसे भी जज को देने का निर्णय लिया गया।


मुख्य सेवा गारंटी आयुक्त इस पद के लायक निवासस्थान वितरित करने तक अ-10 बंगले में रहने की अनुमति मांगी थी। सारंग में फ्लैट उपलब्ध न होने पर अन्य स्थान पर 2 फ्लैट देने की मांग भी की थी। क्षत्रिय के इस बचपने की क्लास लेते हुए सुमित मलिक ने 2 पन्ने वाले पत्र में स्पष्ट किया हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जज की हैसियत होने का स्वाधीन क्षत्रिय का दावा साफ़ गलत हैं और 2 फ्लैट की मांग अयोग्य और अस्वीकार्य हैं, इसलिए अंबर में एक फ्लैट वितरित कर मुख्य सचिव के लिए आरक्षित बंगला छोड़े क्योंकि इसके पहले ही 15 दिन की डेडलाइन समाप्त हो चुकी हैं। मलिक की फटकार के बाद क्षत्रिय ने उनसे बरते बर्ताव पर नाराजगी जताते हुए अंबर में विधानपरिषद सभापती द्वारा रिक्त किया 2 फ्लैट ( फ्लैट क्रमांक 20 आणि 21 ) मांगने की हिम्मत जुटाई।


31 मार्च 2017 को अंबर-22 निवासस्थान कक वितरण करने के बाद 15 अप्रैल 2017 तक बंगला रिक्त करने का आदेश जारी तो हुआ लेकिन क्षत्रिय ने चालाकी दिखाते हुए मरम्मत के नाम पर 2 महीने का एक्सेंटशन मांगा था। मुख्यमंत्री ने वर्तमान मुख्य सचिव को भी निवास की जरुरत होने की बात स्पष्ट करते हुए 15 जून 2017 के बजाय 15 मई 2017 तक एक्सेंटशन दिया। मुख्य सचिव की फटकार और मुख्यमंत्री के हस्तपेक्ष से स्वाधीन क्षत्रिय को बंगला छोड़ना पड़ा। स्वाधीन क्षत्रिय ने सरकारी निर्णय को नजरअंदाज कर 15 दिन में बंगला रिक्त करने के बजाय अतिरिक्त 61 दिन बंगला अपने कब्जे में रखा। सरकारी निर्णय और नियम को उल्लंघन करनेवाले ऐसे मुख्य सेवा गारंटी आयुक्त राज्य की जनता को सेवा की गारंटी कैसे देगी? इसपर अनिल गलगली ने संदेह व्यक्त किया। बंगला कब्जे को लेकर वर्तमान औऱ भूतपूर्व मुख्य सचिव में हुए विवाद से स्वाधीन क्षत्रिय को लालचीपणा उजागर हुआ हैं।

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