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मुम्बई ( अमित तिवारी ) यदि आप पीले रंग के किसी भी तेल को शुद्ध सरसों का तेल समझकर खरीद रहे हैं तो सावधान रहें, इस समय बाजार में त्यौहार की खलबली में नकली सरसों का तेल धड़ल्ले से बिक रहा है। असली सरसों के तेल की तरह ही एकदम पीले और चमकीले रंग का यह मिलावटी तेल बाकायदा ब्रांडेड कम्पनी की बोतल और टीन में रैपर लगाकर उपलब्ध है। तेल माफिया सरसों के तेल में मिलावट करके जहां लाखों का खेल खेल रहे हैं वहीं जनता की जेब में डाका और स्वास्थ्य से सरेआम खिलवाड़ हो रहा है। इसका एक कारण सरसों के तेल महंगा होना भी माना जा रहा है। इसलिये इस जहर से सबसे अधिक नुकसान गरीब जनता को हो रहा है, जो धीरे धीरे घातक बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। त्यौहारों को नजदीक आता देख ये कारोबारी अपने कारोबार को तेज गति देना शुरू कर देते हैं। हिंदू धर्म के त्योहारों के नजदीक आने के साथ मिलावटी खाद्य तेल के कारोबारियों ने सक्रियता बढ़ा दी है। अफसरों की अनदेखी में बिना लाइसेंस धड़ल्ले से स्पेलरों का संचालन हो रहा है। मिलावटी तेल को देखते हुये त्योहार पर लोगों को विशेष ध्यान रखना होगा। हालाँकि समय समय पर अन्न सुरक्षा अधिनियम कानून के तहत छापेमारी कर विभाग द्वारा कार्यवाही भी की जाती है ।लेकिन कोई ठोस कार्यवाई न किये जाने से इनके हौंसले बुलंद है ।

ऐसे होता है मिलावटी तेल का कारोबार

पाम ऑयल व राइसब्रान की मिलावट कर माफिया बड़ा मुनाफा कमा रहे हैं। बाजार में पाम ऑयल का तेल 55 से 60 रुपये प्रति लीटर है। जबकि राइसब्रान करीब 45 रुपये लीटर मिलता है। कारोबारी राइसब्रान या पाम आयल में आधा से एक तिहाई तक सरसों का तेल मिलाते हैं। इन तेलों में खुशबू नहीं होती है। इसलिये ये मिलावट करने के बाद तेल में सरसों की खुशबू के साथ कडुवाहट भी देता है। असली तेल दिखने के लिये इसमे पीले रंग का एक केमिकल मिलाया जाता है। इसके बाद तेल को बाजार में सप्लाई कर दिया जाता है। यमुना सेंगुर नदी के तटवर्ती गांवों में बड़े पैमाने पर होने वाली आर्जीमोन के बीज लाही के साथ पिराई कर तेल बनाया जाता है। इस तेल के सेवन से ड्राप्सी का खतरा रहता है। जबकि राइसब्रान में पीला रंग, केमिकल, ग्लिसरीन तथा सेंट मिलाकर बनने वाला कडुआ तेल का भी भंडारण जारी है।

इस तेल के सेवन से होती हैं ये गंभीर बीमारियां

स्वास्थ्य विभाग के जानकारों का कहना है कि केमिकल व ग्लिसरीन युक्त तेल स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। इससे लीवर सम्बंधी बीमारियों की सम्भावना रहती है। उन्होंने बताया कि ड्राप्सी पीड़ितों के शरीर में सूजन के साथ फेफडों में पानी जमा होने का खतरा रहता है। तेल के अधिक प्रयोग करने पर फूड प्वायजनिंग व आंतों में इंफेक्शन सहित अन्य पेट की गम्भीर बीमारियां जन्म लेने लगती हैं। अधिक समय बीतने पर लीवर डेमेज होने का खतरा बढ़ जाता है और ड्राप्सी की चपेट में आने पर सेवन करने वाले व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।

आम जानता के सामने यह समस्या होती है की आखिर नकली तेल की पहचान कैसी की जाय तो हम आपको कुछ टिप्स बता रहे है जिससे आप इसकी पहचान बड़े ही आसानी से कर सकते है।घरों में प्रयोग करने वाले असली व नकली तेल की पहचान करने के लिये आसान तरीका है। इसके लिये हाथ साफ करके तेल की मालिश करें। यदि त्वचा पर तेल रंग छोड़ता है तो समझिये मिलावट है। तेल को फ्रिज में रखने पर वह जम जाये, तो समझिये कि यह मिलावटी तेल है। मिलावटी तेल को गर्म करने पर खाना बनाने वाले व्यक्ति को चक्कर आने जैसी स्थिति या छींके आने लगती है। मिलावटी तेल से बना भोजन करने पर एसिडिटी बनने लगती है तथा पेट फूलने की शिकायत बन जाती है।

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