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मुम्बई (अमित तिवारी )मुम्बई महानगर पालिका के चुनाव परिणाम आने के बाद बहुमत साबित करने की राजनीति तेज हो गयी है।पिछले 25सालों से लगातार बी एम सी पर काबिज बीजेपी -शिव सेना ने इस बार अलग अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया।कई महीनों से दोनो के बिच नूरा कुश्ती का खेल चल रहा था जिसके बाद एकला चलो की राह पर दोनो पार्टियों ने चुनाव लड़ने का फैसला लिया और एक दूसरे को टाटा बाय बाय कह कर अपनी अपनी मंजिल की ओर निकल पड़े।चुनाव परिणाम को देखकर निश्चित रूप से कहाँ जा सकता है कि सरकार के नोटबंदी का फैसला सही था। दोनो पार्टियों के सीटों में इजाफा हुआ लेकिन बीजेपी के प्रदर्शन ने सबको चौंकाया।महानगर पालिका में हमेशा छोटे भाई की भूमिका निभाने वाली बीजेपी आज बहुमत साबित करने की लाइन में खड़ी है ।वही बीजेपी से तल्खी बढ़ाने वाली शिवसेना की राहें आसान नहीं होगी।अगर सेना को पालिका पर काबिज रहना है तो उसे बीजेपी का सहयोग लेना ही पड़ेगा।मनपा चुनाव परिणाम आने के बाद यू पी कि सियासत भी प्रभावित होगी ऐसा राजनीति के विशेषज्ञों का अनुमान है।क्युँकि मुम्बई में रहने वाले उत्तर भारतीयों ने जीस तरह पालिका चुनाव में बीजेपी को समर्थन दिया।उससे यही कयास लगाये जा रहे है कि उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी को जनता का अच्छा प्रतिसाद मिलेगा। शिवसेना हमेशा ही बीजेपी को चेतावनी देती रहती थी कि वही मुम्बई पालिका किंग है लेकिन भाजपा कि अप्रत्याशित जीत सेना प्रमुख पक्ष उद्धव ठाकरे के गुरूर को तोड़ने में काफी हद तक सफल रही।जिसके परिणाम स्वरूप कहाँ जा सकता है कि भाजपा आगामी चुनावों में मुम्बई समेंत पूरे महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी होगी और अपने दम पर सरकार बनाने कि स्थिति में होगी।सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे कि दोनो चाल फेल हो गयी जो उन्होने मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिये चली थी।जिसमे हार्दिक पटेल को गुजरात में पार्टी का सी एम चेहरा घोषित कर गुजराती वोटों पर हाथ फेरना व मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट देकर मुस्लिम वोटरों को लुभाने कि कोशिश दोनो में सेना को निराशा ही हाथ लगी। बीजेपी के आगे रोड़ा बन बीएमसी पर कब्जा होने का सपना देखने वाली शिवसेना चारो खाने चित्त हो गयी है।अब उसके पास पुराने साथी बीजेपी कि मदद के बीना मेयर का सपना देखना असम्भव सा लग रहा है।वही सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सुर भी बदल गये है और वो अब बीजेपी पर मनोवैज्ञानिक दवाब डालने में जुट गये है।लेकिन शायद वो अपनी पुरानी गलतियों सबक नही ले रहे।बीजेपी 10 में से आठ नगर निगम पर कब्जे के अलावा शिवसेना के गढ़ मुंबई में भी वह दूसरे नंबर पर है। बीएमसी की 227 में से बीजेपी को 82 सीटें मिली हैं। पार्टी अब मुंबई में शिवसेना के नंबर वन के स्टेटस को चुनौती देने के लिए पूरी तरह से तैयार है, जिसे उससे बस दो सीटें ज्यादा (84) मिली हैं।मुंबई बीजेपी के नेता श्रीकांत पांडेय ने कहा, 'शुरुआती सालों में हम बीएमसी में मुश्किल से 12 से 15 सीटें जीतते थे। सेना के राज में हम दोयम दर्जे की पार्टी के तौर पर शापित थे। पीछे रहने वाले अब आगे से अगुआई करने के लिए तैयार हैं।' बीजेपी के एक मंत्री ने गुरुवार को संकेत दिए कि पार्टी बीएमसी पर काबिज होने के लिए तैयार है। इसके लिए वह शिवसेना नहीं, बल्कि एनसीपी, एमएनएस और अन्य छोटे ग्रुप्स की 'रणनीतिक' मदद लेगी। एनसीपी को नौ जबकि एमएनएस को सात सीटें मिली हैं।दूसरी तरफ बीजेपी ने एक बेहद चतुराई भरा कदम उठाने की तैयारी भी कर ली है। इसके तहत, वह शिवसेना के लिए अपने दरवाजे खोलने को तैयार है। हालांकि, इसकी वह एक कीमत भी वसूलेगी। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष राव साहेब दनवे ने साफ कर दिया है कि दोनों पार्टियों के पुनर्मिलन की पहल शिवसेना को करनी चाहिए। उन्होंने हाल ही में मीडिया से बातचीत में कहा, 'उन्होंने खुद से जल्दबाजी में हमसे नाता तोड़ा था। अब यह उन पर निर्भर करता है कि वे दोबारा से विचार करें और हमारे पास आएं।' हालांकि, यह स्थिति शिवसेना के लिए सहज नहीं होगी क्योंकि इससे उसके पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच बीजेपी के सामने झुकने जैसा नकारात्मक संदेश जाएगा।और तो और, ये भी खबरें हैं कि शिवसेना की पहल के बाद दोबारा से दोनों पार्टियों के जुड़ने की स्थिति में बीजेपी ढाई साल के लिए मुंबई के मेयर की कुर्सी और अहम पदों पर अपने नेताओं की नियुक्ति की मांग रखेगी। सीएम फडणवीस यह साफ कर चुके हैं कि चुनाव के बाद किसी तरह के गठबंधन की स्थिति में पारदर्शिता बरतने को सबसे ज्यादा तरजीह दी जाएगी। राजनीतिक एक्सपर्ट मानते हैं कि उद्धव ठाकरे के लिए ऐसी शर्तों को मानना आसान नहीं होगा।महाराष्ट्र बीजेपी में इस बात को लेकर एकराय है कि राज्य निकाय चुनाव में सीएम फडणवीस नायक के तौर पर उभरे। कई का मानना है कि फडणवीस ने अपने राजनीतिक दांवपेच और संगठनात्मक कौशल से अन्य समकक्ष नेताओं को बहुत पीछे छोड़ दिया। उन्हें इस बात का एहसास था कि बीजेपी से नाता तोड़ने के बाद शिवसेना उनकी पार्टी के खिलाफ जोरदार अभियान छेड़ेगी। ऐसे में सीएम ने दूसरे नेताओं पर भरोसा न करते हुए प्रचार-प्रसार की कमान खुद अपने हाथों में ले ली और उद्धव से सीधी टक्कर ली। और तो और, बीएमसी प्रशासन में पारदर्शिता के मुद्दे को बार-बार दोहराकर शिवसेना को सीधे निशाने पर लिया। जानकार मानते हैं कि फडणवीस ने जिस तरह से प्रचार में खुद को पेश किया, उससे साफ है कि वे ठाकरे कुनबे को मुंबई की जमीन पर सियासी चुनौती देने के लिए अब पूरी तरह से तैयार हैं। कहते है राजनीति में भाग्य का भी अहम रोल होता है।और भाग्य इस समय बीजेपी पर मेहरबान है।जिसका ज्वलंत उदाहर मुम्बई निकाय चुनाव के वार्ड क्रमांक 220 में देखने को मिला जब भाजपा और शिवसेना के प्रत्याशी के प्राप्त मतों कि संख्या बराबर हो गयी।उसके बाद पहली बार मनपा चुनाव में लाटरी पद्धति को अपनाना पड़ा।तत्पश्चात एक बॉक्स में दोनो प्रत्याशी के नाम कि पर्ची डाली गयी और अबोध बालिका से एक पर्ची निकलवाया गया जिसमे भाजपा प्रत्याशी हितेश शाह का नाम था।जिसके आधार पर मनपा आयुक्त अजोय मेहता ने बीजेपी प्रत्याशी को वार्ड क्रमांक 220 से विजयी उम्मीदवार घोषित किया।आशय स्पष्ट है कि बीजेपी कि बढ़ती लोकप्रियता शिवसेना के लिये गले कि हड्डी बन रही है।कभी मुम्बई को अपनी जागीर समझने वाली शिवसेना को अब पैरों तले ज़मीन खिसकती नज़र आ रही है।

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