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भावी पीढ़ी के लिये शुद्ध जलवायु जनक लक्ष्य प्राप्त करने हेतु समिट
नोयडा ( ओम रतूड़ी )। भावी पीढ़ी के लिये जलवायु जनक लक्ष्य प्राप्त करने हेतु समिट का आयोजन किया गया। इस समिट में परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष और ग्लोबल इण्टरफेथ वाश एलायंस के संस्थापक स्वामी चिदानन्द, मौलाना महमूद असअद मदनी  दिल्ली एवं अलग-अलग क्षेत्रों के विद्वानों ने सहभाग कर जलवायु जनक लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु अपने सुझाव प्रस्तुत किये।
यह कार्यक्रम तीन सत्र में सम्पन्न हुआ जिसमें अनेक विषयों पर चिंतन किया गया यथा जीवन के अनुभव और विकास के साथ बदलते परिवेश और कठिन परिस्थितियों को एक सुरक्षात्मक वातावरण में बदलना, प्रभावी समन्वय के लिये एक एकीकृत क्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता, भोजन, पानी और आजीविका, खाद्य सुरक्षा, लड़कियों और महिलाओं के पोषण की स्थिति में सुधार, मृदा और पादप, आर्द्रभूमि, जल निकायों और जंगल के घनत्व की गुणवत्ता जैसे अनेक विषयों पर चिंतन किया गया।
इस अवसर पर जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव साध्वी भगवती सरस्वती , यूनिसेफ की भारतीय प्रतिनिधि (इंडिया रिप्रेजेंटेटिव) यास्मीन अली हक, मराठवाड़ा से आयी महिला किसान, मध्यप्रदेश के वाटर हार्वेस्टर, साध्वी आदित्यनन्दा सरस्वती , गंगा एक्शन परिवार से गंगा नन्दिनी त्रिपाठी, विभिन्न धर्मो के धर्मगुरू, विशेषज्ञों, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय के अनेेक विद्याथियों ने सहभाग किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने भावी पीढ़ी के लिये जलवायु जनक लक्ष्य प्राप्त करने हेतु आयोजित समिट को सम्बोधित करते हुये कहा कि ’नेल्सन मंडेला’ ने कहा था कि ’बचाव एवं सुरक्षा स्वतः ही संभव नहीं है, यह सामूहिक सर्वसम्मति और सार्वजनिक निवेश का परिणाम है। हमें अपने बच्चों को, जो कि समाज के सबसे कोमल और कमजोर नागरिक है, एक यातना और भय से मुक्त जीवन देना होगा।’ वास्तव में आज हमें इस कथन पर गहराई से चिंतन करने की जरूरत है कि क्या हम अपनी भावी पीढ़ियों और हमारे इन छोटे-छोटे बच्चों को स्वच्छ जल, शुद्ध वायु और पर्याप्त और प्रदूषण रहित खाद्य सामग्री दे पा रहे हैं। स्वच्छ, स्वस्थ, मस्त, सुरक्षित और व्यवस्थित बचपन पर सभी बच्चों का अधिकार है। सुरक्षित और व्यवस्थित बचपन ऐसी नींव तैयार करता है जिस पर हमारे देश के भविष्य की इमारत बुलंद होती है इसलिये नीति निर्माताओं और धर्मगुरूओं की जिम्मेदारी है कि बच्चों को उनके हितों, अधिकारों, सुविधाओं और सुरक्षित माहौल से युक्त जीवन प्रदान करें जिससे उनका सम्पूर्ण विकास हो सके। अगर समाज और सरकार दोनों मिलकर इस ओर कार्य करें तो विलक्षण परिवर्तन हो सकता है।
स्वामी ने कहा कि आज के दौर में हम इकोलाॅजिकल ओवरसूट से गुजर रहे हैं। इकोलाॅजिकल ओवरसूट अर्थात इकोलाॅजिकल फ्रूट प्रिंट का आबादी की जैव क्षमता से अधिक होना है। आईये इन दोनों महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करते हैं कि क्या है इकोलाॅजिकल ओवरसूट या अर्थ ओवरसूट अर्थात भविष्य में आने वाली मानव और अन्य प्राणियों, पीढ़ियों को जीवन यापन के लिये धरा पर जो भू-भाग, जल संसाधन और प्राकृतिक संसाधनोेें की जरूरत पड़ेगी उसको हम कम कर रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो हम अपनी आय से अधिक रूपये खर्च कर रहे हैं। हमें जितने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना चाहिये हम उससे कहीं अधिक मात्रा में कर रहे हैं यही है अर्थ ओवरसूट। अर्थ ओवर सूट अर्थात पृथ्वी एक वर्ष में जितने संसाधन उत्पादित करती है उसे विश्व की आबादी वर्ष के पहले दिन ही खर्च कर देती है। वर्ष 2018 की बात करें तो पृथ्वी द्वारा उत्पादित संसाधन जो 365 दिनों के लिये थे उसे हमने 212 दिन मैं ही समाप्त कर दिया शेष बचे 153 दिन हमने पृथ्वी के संसाधनों का अति दोहन किया। अब हमारी स्थिति ऐसी है कि हमें जितने संसाधनों की जरूरत है उसके लिये हमें 1.7 पृथ्वी की जरूरत पड़़ेगी।
 इकोलाॅजिकल फ्रूट प्रिंट ( मानवीय मांग का एक मापक है जो मनुष्य के मांग की तुलना पृथ्वी की पारिस्थितिकी के पुनरूत्पादन करने की क्षमता से करता है। अर्थात जनसंख्या बढ़ रही है तो प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग भी अधिक हो रहा है साथ ही अपशिष्ट की भी भारी मात्रा में वृद्धि हो रही है। वर्तमान में जितनी प्राकृतिक संसाधनों की मांग है उतना धरा पर मौजूद नहीं है । इन मुद्दों पर चितंन करने की जरूरत है ताकि भावी पीढ़ियों को सुरक्षित जीवन प्रदान किया जा सके।
यूनिसेफ इंडिया रिप्रेजेंटेटिव यास्मीन अली हक ने कहा कि जलवायु परिवर्तन मानव गतिविधियों के कारण होता है। यह बच्चों के जीवन पर विशेष रूप से प्रभाव डाल रहा है। यथा कहीं पर बाढ़, सूखा, गर्मी की लहर से बड़ों की तुलना में बच्चों का जीवन अधिक प्रभावित हो रहा है। उन्होने बताया कि यूनिसेफ के अनुसार जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय गिरावट के कारण ये छह क्षेत्र यथा स्वास्थ्य, पोषण, पानी, स्वच्छता, बाल संरक्षण, सामाजिक समावेश और शिक्षा प्रभावित हुये है। उन्होने कहा कि मेरा विश्वास है कि मानव प्राकृतिक संसाधनों के साथ जीना सीख जाये तो जलवायु परिवर्तन की गतिविधियों को कम किया जा सकता है। इस कार्यक्रम के माध्यम से हम ’’पारिस्थितिक रणनीतियाँ’’ तैयार कर सकते है। उन्होने कहा कि हम मनुष्य और अन्य जीवित प्रणालियों के मध्य एक सहज बंधन है। हमारा पूरा जीवन पौधों, जानवरों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है फिर भी हम अपने आप को प्रकृति के अलग देख रहे हैै, जबकि हम प्रकृति को मानव डिजाइन करने वाला और विकास की प्रेरणा के रूप में देख सकते है और मानव के स्थायी जीवन के सह-निर्माता बन सकते हैं।
यास्मीन अली हक ने बताया कि मध्यप्रदेश सरकार ने 29 डार्क ब्लाॅक जो गंभीर भूजल स्तर से गुजर रहे है उस पर कार्य कर रही हैं। साथ ही देश के विभिन्न भागों से आये लोगों ने भी अपने अनुभवों को साझा किया।
इस कार्यक्रम के तीसरे सत्र में विभिन्न धर्मो के धर्मगुरूओं ने हमारे ग्रह और हमारे बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिये नीति बनाने के उच्च सोपानों पर चर्चा की। सभी ने कहा कि पर्यावरण के प्रति संवेदनशील परिणामों के लिये मजबूत नेतृत्व तैयार होना चाहिये। इस हेतु यूनिसेफ उचित समय पर विभिन्न धर्मो के प्रमुख हितधारकों के बीच परिणाम और परिणाम उन्मुखीकरण का निर्माण करेंगे।
धर्मगुरूओं की पावन उपस्थिति में सभी ने मिलकर एक स्वर में वैश्विक मानदंडों के अनुरूप जलवायु परिवर्तन, सूखा, पर्यावरणीय स्थिरता और सुरक्षा, पानी, भोजन, पोषण, आजीविका, मानव आवास और खाद्य सुरक्षा को सुचारू करने का संकल्प लिया।

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