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कन्नौज,हिन्दुस्तान की आवाज़,अनुराग चौहान

कन्नौज। बदलते आर्थिक मंदी के इस दौर में शादी समारोहो पर आयोजित होने वाले विभिन्न संस्कार इन दिनों विलुप्त से हो गए है। समयाभाव के कारण तीन दिन की बारात मात्र 12 घण्टे की रह गयी है अन्य जो भी रस्म है अतिशीघ्र निपटा लिए जाते है चूंकि शादी समारोह पर होने वाली तेज लगनो पर पंण्डित और नाऊ भी कई बारात के लिए बुक रहते है। जल्दी-जल्दी काम निपटाकर सभी को अपना अमूल्य समय देते है।
गौर तलब है कि दो दशक पूर्व ज्यादातर शादियों में सेकडा के ऊपर बारात आती थी बारात में गैस, बैलगाडी, डोली व घोडी का प्रयोग किया जाता था। दो दशक के बाद शादी समारोह में ऐसे आर्थिक युग का प्रवेश हुआ है कि 24 घण्टे खाली रहने वाला व्यक्ति भी व्यर्थ के कार्यो में अपने आप को व्यस्त रखता है। मेहमान नबाजी का तो कोई मतलब ही नहीं रह गया गांवो में आज भी कुछेक ही गांव बचे है जहां दो दिन की बारात अभी भी होती है पहले दिन का खाना वर पक्ष के लोग करते थे गांव के बाहर वर्गद की छांव में जनवासा देकर बडी-बडी हौदी को जमीन में गढढा कर रखते थे शाम को बारात आने का इंतजार होता था बाराती और घराती पानी पेठा बूंदी आदि का नास्ता देकर स्वागत करते थे बीते दो दशक पहले खास कर गांवो में फ्रिज कूलर मिनरल वाटर एसी जनरेटर आदि का प्रचलन नहीं था और ज्यादातर लोग इनको जानते भी नहीं थे बैण्ड बाजे की जगह स्लाट, वीन वाजा का प्रयोग किया जाता था उन दिनो महिलाऐं और पुरूष कुछ खास किस्म का नृत्य भी करती थी जो आज के इस दौर में संस्कारो के साथ नाच भी बदल गया है ग्रामीण नृत्य की जगह डिस्को व डीजे ने लेली है मिटटी केे तेल वाली गैस बत्ती का स्थान जनरेटर रोट लाइट ने ले लिया है अब लोगों को बैण्ड की आवश्यकता भी नहीं होती डीजे से ही काम चला लिया जाता है दूल्हे को बैठने के लिए घोडी की जगह हाई स्टैंडर्ड कारो ने ले ली है चूल्हे की जान एल्पीजी गैस ने निकाल दी कडाईदारो का स्थान हलवाइयों ने लिया है पूर्व में कडाई से निकलने वाली पूडियों की महक 3 गांवो तक जाती थी और कददू की सब्जी लोगों को बहुत भाती थी गांव में दूध घी की वयार थी इस वयार की जगह देशी विदेशी मदिरा के अलावा गांव में आसानी से मिल जाने वाली कच्चे महुवे की शराब ने ले ली है। दो दशक पहले बारात में सायद ही कोई एक बेबडा मिल जाये लेकिन बदलते आर्थिक दौर के शादी समारोहो में दूल्हे से लेकर घराती बाराती सभी नशे में टुन्न नजर आते है शराब पीकर हर्ष फायर करना आज का स्टन्ट सिंबल बन गया है जो पूर्व में यह आतिशबाजी के रूप में दिखाई देती थी। शादी समारोह में होने वाले संस्कारो में इन दिनो सिर्फ औपचारिकताऐं निभाई जाती है। पूर्व एक बारात में तीन दिन तक पंण्डित नाऊ व्यस्त रहते थे रात में टीका और भोजन का कार्यक्रम, दूसरे दिन सुबह भौरी के साथ पैर पुजी होती थी, तीसरे दिन दूध में पूडिया मीस कर दूल्हे को कलावा कराकर बारात विदा कर दी जाती थी। हाथी घोडा पालकी लोगों के लिए अब दिवा स्वप्न बन गयी है। उल्लेखनीय है कि गांव में ठहरने वाले 3 दिन की बारात के मनोरंजन के लिए नाटक नौटंकी और पहलबानी का प्रदर्शन किया जाता था अब यह प्रदर्शन दूर-दूर तक देखने को नहीं मिलता रात भर चलने वाली नौटंकी में बाराती व्यस्त रहते थे पूर्व में शादी समारोह में वीडियो के माध्यम से फिल्म दिखाकर मनोरंजन किया जाता था यह सारी बातें गुजरे जमाने की हो चुकी है।
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