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- बोल बेबस प्रधान शौचालय निर्माण में बाधक बना हुआ है बालू
-बालू खनन पर रोक से आसमान छू रहा है बालू का दाम - घश्याम ओझा


मीरजापुर,हिन्दुस्तान की आवाज, संतोष देव गिरी

मीरजापुर। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता अभियान को धार देने का काम ठप्प सा हो गया है। अभियान को गति देने के क्रम में वृहद पैमाने पर बनाये जा रहे शौचालयों का काम रूका पड़ा है। कहीं काम शुरू होने के बाद अधर में लटका हुआ है तो कहीं नींव रख कर छोड़ा गया है। वजह बालू का न मिलना बताया जा रहा है। सूबे में बालू खनन पर लगे रोक का असर यह है कि जो बालू आ भी रहा है तो उसका दाम आसमान को छूता नजर आ रहा है ऐसे में कोई बालू को छूना क्या देखना तक नहीं चाह रहा है। ग्राम प्रधानों का स्पष्ट शब्दों में कहना है कि आखिरकार शौचालयों का कार्य कैसे पूर्ण कराया जाय जब बालू ही नहीं मिल पा रहा है, बगैर बालू के निर्माण कार्य संभव नहीं हो पा रहा है। जो बालू मिल भी रहा है वह काफी मंहगा है। ऐसे में शौचालय निर्माण का कार्य पूरी तरह से अवरूद्व हो गया है। शौचालय निर्माण का कार्य अवरूद्व होने से स्वच्छता अभियान की हवा निकलती दिखलाई दे रही है। बालू की निकासी न होने से कोई एक दो गांव नहीं बल्कि जिले के सभी गांव प्रभावित हो उठे है। यह समस्या किसी एक गांव की नहीं सभी गांवों में कमोवेश एक जैसी देखने को मिल रही है। सीटी विकास खंड़ के सरैया गांव की प्रधान शांति देवी कहती है कि 76 स्वीकृत शौचालयों में से 60 का तो किसी प्रकार निर्माण करा दिया गया है, लेकिन शेष का निर्माण कार्य बालू न मिलने के कारण अवरूद्व पड़ा हुआ है। वह बताती है कि बालू खनन पर रोक लगने से जो बालू आ भी रहा है तो उसका दाम ही आसमान छू रहा है ऐसे में शौचालय निर्माण कराना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। बालू के अभाव में गांवों में शौचालय का निर्माण कार्य ठप्प होने से स्वच्छता अभियान की भी हवा निकलती हुई दिख रही है। लोग खुले में शोच करने को विवश हो रहे है। इससे न केवल गंदगी को बढ़ावा मिल रहा है बल्कि महिलाएं भी खुले में शौच जाने को विवश हो रही है। लोगों में नाराजगी इस बात को लेकर देेखी जा रही है कि बालू खनन पर रोक होने के कारण बालू नही मिल पा रहा है जो मिल भी रहा है तो उसका दाम आसमान छू रहा है। ऐसे में सोचने की बात है कि बगैर बालू के कैसे शौचालय का निर्माण होगा? दूसरी ओर ग्रामीण स्वच्छता अभियान को धार देने के लिए नित्य नए अभियान चलाया जा रहे है, लेकिन बालू कैसे मिले ताकि शौचालयों के निर्माण का ठप्प पड़ा कार्य प्रारंभ किया जा सके इस पर न तो प्रशासन सोच रहा है और ना ही सरकार इसकों लेकर प्रधानों में भी आक्रोश देखा जा रहा है। प्रधानों का कहना है बात-बात पर तथा छोटी सी शिकायत पर प्रधानों का उत्पीड़न शुरू कर दिया जाता है जांच बिठा दी जाती है, लेकिन ग्रामीण विकास के कार्यो में कौन सी परेशानियां आड़े आ रही है इस पर कभी भी खुल कर चर्चा करने के साथ इसे दूर करने का प्रयास कदापि नहीं किया जाता है। ‘‘हिन्दुस्तान की आवाज’’ टीम ने जिले के सीटी विकास खंड़, पहाड़ी, छानबे, कोन विकास खंड़ों के दर्जन भर गांवों का भ्रमण करते हुए शौचालय निर्माण के प्रगति के बारे में जानकारी एकत्र की तो सर्वाधिक शिकायत बालू न मिलने की रही। पूछे जाने पर प्रधानों ने बूझे मन से बताया कि जब बालू ही नहीं मिल पा रहा है तो कहां से निर्माण हो पायेगा और किस प्रकार से यह समझ से परे है।

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