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कूष्माण्डा देवी की पूजा से भक्त के सभी रोग हो जाते है नष्ट

मीरजापुर,हिन्दुस्तान की आवाज, संतोष देव गिरी

मीरजापुर। विंध्याचल मां विंध्यवासिनी के चैथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मन्द हंसी से अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्ड, कूम्हड़े को कहा जाता है। कूम्हड़े की बलि भी इन्हें प्रिय है, इस कारण से भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब सृष्टि नहीं थी और चारों ओर अंधकार ही अंधकार था तब इन्होंने ईषत हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। यह सृष्टि की आदिस्वरूपा हैं और आदिशक्ति भी। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। नवरात्रि के चैथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की पूजा की जाती है। साधक इस दिन अनाहत चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन पवित्र मन से मां के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजन करना चाहिए। मां कूष्माण्डा देवी की पूजा से भक्त के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं, ऐसी मान्यता है। मां की भक्ति से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य की वृध्दि होती है। इनकी आठ भुजायें हैं इसीलिए इन्हें अष्टभुजा कहा जाता है। इनके सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिध्दियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। कूष्माण्डा देवी अल्पसेवा और अल्पभक्ति से ही प्रसन्न हो जाती हैं। यदि साधक सच्चे मन से इनका शरणागत बन जाये तो उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो जाती है।
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