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उपेक्षित है नगवंषीय राजाओं द्वारा स्थापित नागकुंड

-कुंड में स्नान करने वाला एक वर्श तक सर्प दंड से हो जाता है मुक्त

मीरजापुर,हिन्दुस्तान की आवाज, संतोष देव गिरी

मीरजापुर। स्थानीय विन्ध्य क्षेत्र से जुडे़ कंतित स्थित नागकुंड में नाग पंचमी के दिन कभी भक्तों का लगता था रेला और लोग इस कुंड में स्नान करने के बाद एक वर्श तक सर्प दंड से मुक्त हो जाया करते थे। इसके लिए दूर-दूर से लोग इस कुंड का जल अपने घर पर ले जाकर रखते थे। इस कुंड की यह मान्यता है कि इसका सम्बन्ध सीधे पाताल लोक से होने के कारण यह कभी नहीं सुखता है। इस कुंड का पानी और इस कुंड के पास भोजन आदि बनाने वाले यात्रियों के लिए इस कुंडों से खाना बनाने का बर्तन थाली आदि उपर आ जाता था। लोगों का कहना है कि एक बार कोई यात्री आया और बर्तन लेकर भोजन आदि बनाने के पष्चात् बर्तन को भी अपने साथ उठा ले गया तभी इस अधभुत् क्रिया का लोप हो गया। यह कुंड आज षासन व प्रषासन सहित पर्यटक विभाग के अव्यवस्थाओं और अपेक्षाओं का दंष झेल रहा है, इस ओर न तो पर्यटक विभाग अपना ध्यान केन्द्रीत कर रहा है और ना तो पुरातन विभाग जिससे इसका अस्तित्व आज खतरे में पड़ गया है। यहां पर प्रत्येक वर्श नाग पंचमी के दिन नागकुंड का दर्षन करने के लिए भक्तों का जमावड़ा लगता था आज यही नागकुंड अपने हाल पर कराह रहा है। ना जाने कब इस ऐतिहासिक नागवंषीय राजाओं द्वारा स्थापित नागकुंड पर लोगों का ध्यान जायेगा। ताकि इसकों संरक्षित करने के साथ इसका विकास कराया जा सके ताकि यहां आने वालने दूर दराज के लोग इसे इतिहास से रूबरू होते रहे। एक ओर जहां प्रदेष के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विन्ध्य क्षेत्र को विन्ध्य पर्यटक के रूप में सजाने संवारने की बात करते है वहीं पर्यटक विभाग के अनदेखी के चलते जनपद के विन्ध्यक्षेत्र की संस्कृति और धरोहर खतरे में है जो किसी को दिखाई नहीं पड़ रहा है। यही हाल विन्ध्याचल मीरजापुर मार्ग पर स्थित ओझला सेतु का है, जो विन्ध्याचल धार्मिक तीर्थ स्थल व मीरजापुर को जोड़ रखा है। इसका भी हाल बद से बदतर होता जा रहा है, आये दिन ओझला पुल का एक-एक भाग टूटकर धरासाही हो रहा है, लेकिन उस पर ध्यान देने और निरीक्षण करने के लिए किसी के पास भी समय नहीं है। बताते चले कि इस पुल पर ऐतिहासिक दो दिवसीय निशाद मेला भी लगता है। जिसमें कई हजार की संख्या में बूढ़े, नौजवान, बच्चे, महिला, पुरूश सहित भारी संख्या में लोग जुटते है। जिसमें बड़े-बड़े षहरों से नामी-गिरामी पहलवानों के बीच कुस्ती, दंगल, नौका रेस, तैराक रेस आदि खेलों का प्रदर्षन होता है। ओझला का मेला ऐतिहासिक और पुरानी परम्पराओं के आधार पर प्रतिवर्श होता चला आ रहा हैै, लोग बताते है कि यह मेला अंग्रेजी सरकार की हूकूमत के समय से लगता चला आ रहा है। लेकिन कालांन्तर में इन ऐतिहासिक धरोहरों पर प्रषासन सहित जनप्रतिनिधयों का ध्यान केन्द्रीत न होने के चलते आज विन्ध्य क्षेत्र के कई ऐतिहासिक धरोहर खतरे में है। जिस पर किसी का ध्यान केन्द्रीत नहीं हो पा रहा है। 
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